जयपुर. राजस्थान में अब बीजेपी ओबीसी कार्ड खेलने की तैयारी में जुट गई है. पार्टी ने ओबीसी मोर्चे को अगले तीन महीनों में इस वर्ग की हर जाति तक पहुंच बढ़ाने के लिए नये सिरे से कार्ययोजना बनाने का टास्क दिया है. बीजेपी को लग रहा है कि कृषि कानूनों के बाद उपजी नाराजगी को जल्द दूर करने की जरूरत है नहीं तो पार्टी के लिए मिशन-2023 की राह मुश्किल हो सकती है. बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया खुद ओबीसी से आते हैं. इसलिए उन पर ओबीसी को बीजेपी के साथ जोड़े रखने के लिए पार्टी का अतिरिक्त दबाव भी साफ महसूस किया जा सकता है.
बीजेपी देश और प्रदेश के सबसे बड़े वोट बैंक को अपने और करीब लाने की कवायद में जुटी है. राजस्थान की 53 फीसदी ओबीसी आबादी किसी भी पार्टी को सत्ता में लाने और बाहर करने में सक्षम है. लिहाजा बीजेपी ने ओबीसी का स्थायी आशीर्वाद हासिल करने के लिए ओबीसी मोर्चा को टास्क दिया है. प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया का कहना है कि ओबीसी के कल्याण की दिशा में केंद्र सरकार की ओर से उठाये गये कदम उसे पार्टी के और नजदीक लायेंगे.
मोदी सरकार ने जब मंत्रिमंडल में फेरबदल किया था तब ओबीसी की जातियों को बंपर प्रतिनिधित्व देने का दावा किया गया. मंत्रिमंडल के 61 फीसदी मंत्री ओबीसी, एससी और एसटी से होने के दावे किये गये. ओबीसी आयोग को मोदी सरकार ने संवैधानिक दर्जा दिया. बजट का बड़ा हिस्सा ओबीसी से जुड़ी योजनाओं पर खर्च किये जाने के भी दावे किये गये. लेकिन कृषि कानूनों से उपजी नाराजगी अब भी बीजेपी के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है.
बीजेपी को भले ही यूपी समेत दूसरे राज्यों के चुनाव में इसका कोई राजनीतिक नुकसान नहीं हुआ हो लेकिन पंजाब की हार की असली वजह किसान जातियों की नाराजगी के रूप में ही गिनी जाती है. इसलिए बीजेपी हर कदम संभल संभलकर रख रही है. पंजाब के राज्यपाल जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति पद के लिए नामित कर बीजेपी की ओर से बड़ा ओबीसी कार्ड खेला गया है.
दूसरी तरफ कड़वी सच्चाई यह भी है कि ओबीसी की जातियों में राजनीतिक एकजुटता कम और बिखराव ज्यादा है. इसी का नतीजा है कि सबसे बड़ा वोट बैंक होने के बावजूद ओबीसी वर्ग की प्रभावशाली जातियां अब भी सत्ता के शिखर पर पहुंचने के लिए बेचैन हैं. इसलिए पूनिया अगले चुनाव में ओबीसी को एकजुट कर बीजेपी को बड़ी जीत दिलाने के मंसूबे पाल रहे हैं ताकि सत्ता में उसकी भागीदारी को और बढ़ाया जा सके.