मुंबई। मैं यहां पैदा हुई, पली बढ़ी और खेली लेकिन अब मैं यह नहीं पहचान सकती कि मेरा घर कहां हैं। रायगढ़ जिले के तुलाई गांव में भूस्खलन से दफन हुए अपने परिजनों के लिए अंकिता के आंसू नहीं रुक रहे हैं। उसके परिवार के छह लोगों की मौत हो गई है। उसकी तरह दर्जनों ऐसे लोग हैं जो भूस्खलन से हुई तबाही का मंजर देख गांव के एक छोर पर बैठे बिलख रहे हैं।

शनिवार सुबह जब राहत व बचाव दल के जवानों ने तुलाई गांव में सात महीने के बच्चे के शव को मलबे से बाहर निकाला तो लोगों के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमों के बचावकर्मियों ने महाड के पास स्थित तुलाई गांव में तलाशी, बचाव और राहत अभियान चलाया, जबकि रिश्तेदार गांव के किनारे रोते और बिलखते देखे गए।

अंकिता ने कहा कि यहां का मुख्य स्थान कोंडेकरवाड़ी में लोगों का जीवन काफी खुशहाल था। अपने माता-पिता की तलाश में वहां आई महिलाओं में से एक संध्या ने कहा कि हम उस जगह को नहीं पहचान सकते। यह वह जगह है जहां मैं पली बढ़ी हूं। उसने रोते हुए कहा कि मैंने अपनी मां, पिता और छह रिश्तेदारों को खो दिया। महेंद्र पोल ने बताया कि अचानक भूस्खलन हुआ और पूरा गांव श्मशान बन गया। ऐसा हमने कभी नहीं सोचा था। पोल ने कहा कि मेरे परिवार के सदस्य बच गए हैं लेकिन यह हमारे लिए बड़ी त्रासदी है।

बारिश के दौरान भूस्खलन में प्रकृति की गोद में बसे तुलाई गांव में चारों तरफ मातम छाया है। लोगों में उदासी साफतौर पर देखी जा सकती है। जहां कभी 35 से अधिक घर थे वहां अब दो-चार घर ही मलबे में दिखाई दे रहे हैं। बाकी के घर भूस्खलन के मलबे के नीचे आ गए हैं और नामोनिशान मिट गया है। इस त्रासदी में तुलाई गांव में 50 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई है जबकि 30 से ज्यादा लोग लापता हैं।