दुनिया के बाजार में भारतीयों के बाल ‘काला सोना’ बताकर बेचे जाते हैं। इसकी वजह है। मार्केट में सबसे ज्यादा पूछ है ‘वर्जिन हेयर’ और ‘रेमी हेयर’ की। आप पूछेंगे ये क्‍या हैं! लंबे और केमिकल से दूर रहे बालों को ‘वर्जिन हेयर’ कहा जाता है। जिन बालों का टॉप से लेकर बॉटम तक, नैचरल डायरेक्‍शन मेंटेन रहता है, वे ‘रेमी हेयर’ कहलाते हैं। भारत के मंदिरों और हमारे-आपके घरों की कंघियों से निकलने वाले बाल इन दोनों पैमानों पर खरे उतरते हैं। भारतीय बालों का टेक्‍सचर काफी फाइन होता है, उनमें हल्‍की लहरें होती हैं और यूरोपियन लोगों के बालों से मेल खा जाते हैं। भारतीय बालों पर ब्रिटिश एंथ्रोपॉलजिस्ट एम्मा टारलो ने अपनी किताब ‘Entanglement: The Secret Lives of Hair’ में विस्तार से लिखा है। बिलियन डॉलर से ज्यादा की बालों की ग्लोबल इंडस्ट्री में भारत का अहम योगदान है। 2023 में भारत से 682 मिलियन डॉलर मूल्य के बाल निर्यात हुए। हैरान करने वाले यह आंकड़े तब बेमायने लगते हैं जब आप बाल बीनने वालों की जिंदगी में झांकते हैं।

बेंगलुरु का कमला नगर। यहां लो-इनकम परिवारों वाली कई कालोनियां हैं। मल्‍लीश (21), परशुराम (21) और रवि (24) कुछ तलाश रहे हैं। कंधे पर एक जाल टिकाए हैं जिसमें बर्तन भरे हैं। घरों के सामने आवाज लगाते हैं, ‘कुदालु पतरे कसू’ मतलब बाल के बदले बर्तन ले लो! उन्‍हें चाहिए आपके टूटे हुए बाल। कुछ महिलाएं बाहर निकलती हैं। बालों के गुच्‍छे पकड़ाती हैं और बदले में बर्तन लेकर चली जाती हैं। यह तीनों सुबह के निकले हैं, लेकिन पांच घंटों में केवल 100 ग्राम बाल ही जुटा पाए हैं।

यहां के लोग अब कम बालों के बदले बड़े बर्तन की डिमांड करते हैं। ऊपर से बारिश उनकी दुश्‍मन अलग बन गई है। वे घर लौटने का फैसला करते हैं। कल फिर नए जोश के साथ आएंगे। नए घरों के कूड़ेदान खंगालेंगे, टूटे हुए बालों की तलाश में, कटे हुए बाल नहीं चाहिए। रवि ने हमारे सहयोगी ‘टाइम्‍स ऑफ इंडिया’ से बताया, ‘एक किलो काले बाल बेचकर हमें 3,000 रुपये कैश मिलता है। बदले में 2,000 रुपये के बर्तन एक्‍सचेंज में देने पड़ते हैं। एक किलो बाल इकट्ठा करने में हफ्ता भर लग जाता है। सफेद बालों का हमें 1,000 रुपये प्रति किलो मिलता है।’

रवि इस धंधे में नए हैं मगर उनके साथी कई पीढ़‍ियों से यह काम कर रहे हैं। वह बताते हैं, ‘कंस्‍ट्रक्‍शन में या डॉमिस्टिक हेल्‍प का काम करने वाले मेरे कई दोस्‍त और रिश्‍तेदार हैं, मुझपर हंसते हैं लेकिन बाल बीनना पेपर, प्‍लास्टिक या लोहे का कबाड़ बीनने से ज्‍यादा फायदेमंद है। उनके 3 रुपये से 20 रुपये प्रति किलो ही मिलते हैं।’ रवि उस ग्‍लोबल इंडस्‍ट्री की पहली कड़ी है जिसकी कहानी आप अगले स्‍लाइड में पढ़ेंगे।

रवि जैसे लोगों के जुटाए बाल फिर कई हाथों से गुजरते हैं। उनका आखिरी ठिकाना होती हैं विग और एक्सटेंशन कंपनियां। यूरोप और अमेरिका में भारतीय बालों का बड़ा बाजार है। Statista के अनुसार, 2021 में दुनिया में सबसे ज्यादा इंसानी बालों का निर्यात भारत ने किया। ग्लोबल एक्सपोर्ट में भारत की हिस्सेदारी 92% रही। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के अनुसार, 2023 में भारत ने 682 मिलियन डॉलर के बाल एक्सपोर्ट किए। इनमें से ज्यादातर बाल मंदिरों के दान से आए।

तिरुपति के तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर से हर साल करीब 600 टन बाल निकलते हैं। आपके बाल धोने या कंघी करने के दौरान जो बाल टूटते हैं, उनका भी एक्‍सपोर्ट में बड़ा हिस्सा है। दिल्‍ली में रहने वाली सोशल एंथ्रोपॉलजिस्ट दीप्ति बापत कहती हैं कि भारतीयों बालों में नैचरल ब्लैक ह्यू होता है। दीप्ति ने डिनोटिफाइड ट्राइब्स पर पीएचडी कर रखी है। महाराष्‍ट्र का वद्दार समुदाय और गुजरात का वाघरिस समुदाय ऐसे ही दो डिनोटिफाइड ट्राइब्स हैं जो दशकों से खिलौनों, गुब्बारों, बर्तनों, सोनपापड़ी जैसी चीजों के बदले घर-घर जाकर बाल कलेक्ट करते रहे हैं।

रवि और मल्‍लीश जैसे लोग ग्लोबल हेयर मार्केट का अहम हिस्सा हैं, लेकिन उनके हाथ ज्यादा कुछ नहीं लगता। बापत के अनुसार, ‘वे शहर के पिछड़े इलाकों में रहते हैं ताकि गांव और शहरी स्‍लमों तक आसानी से पहुंच बना सके। वहां उनका कस्टमर बेस स्ट्रॉन्ग है। शहर के फैंसी रेजिडेंशियल कॉम्‍प्‍लेक्‍स उनकी पहुंच से दूर हैं। वे चोर समझे जाने के डर के साथ जीते हैं।’ रवि उन 700 बाल बीनने वालों में से एक हैं जो बेंगलुरु के सब-अर्बन इलाकों में रहते हैं। कर्नाटक के अलग-अलग जिलों में करीब 3,000 हेयर वेस्ट पिकर्स का नेटवर्क है। अधिकतर अनुसूचित जातियों से आते हैं।

कर्नाटक के कोप्पल में या बनिबन, जगदीशपुर और सुंदरबन जैसे बंगाल के गांवों में बालों को सुलझाने वाली वर्कशॉप लगती है। मजदूर बेकार बालों को अपने नंगे हाथों से सुलझाते हैं, शैम्पू करते हैं और बालों को एक-एक करके अलग करते हैं, जूं और सफेद बालों को हटाते हैं और उन्हें साफ गुच्छों में व्यवस्थित करते हैं।

फिर इन बालों को चीन, अफ्रीका या अमेरिका भेज दिया जाता है। चीन के पास इंसानी बालों को प्रोसेस करने वाली फैक्ट्रियों का तगड़ा नेटवर्क है। वहां बालों को केमिकली ट्रीट किया जाता है और फिर विग्‍स और एक्सटेंशन बनाए जाते हैं। टारलो के अनुसार, यूरोप और अमेरिका हेयर प्रॉडक्‍ट्स के लिए सबसे बड़ा मार्केट हैं।

विग और एक्सटेंशन के अलावा, बालों का इस्‍तेमाल इंडस्ट्रियल ब्रश बनाने, शैंपू, कंडीशनर, तेल और रंगों के टेस्‍ट स्‍वाच बनाने, कॉस्मेटिक प्रोडक्‍ट्स से अमीनो एसिड निकालने के लिए ब्रश बनाने में भी होता है।​