लखनऊ| लोकसभा चुनाव को लेकर उत्तर प्रदेश की राजनीति दो ध्रुवों में सिमट रही है, ऐसे में तीसरे ध्रुव पर अकेली खड़ी मायावती की रणनीति पर सबकी नजर टिकी है। राजनीतिक पंडितों का आकलन है कि बसपा की चाल से पश्चिम उप्र के सियासी ग्रह नक्षत्र तय होंगे।

पार्टी नए सिरे से मुस्लिम और दलित वोटों को एकजुट करने के प्रयास में है, वहीं आइएनडीआइए और एनडीए में कद के मुताबिक तवज्जो न पाने वाले जाट, गुर्जर, ओबीसी व दलित वर्ग के चेहरों पर भी डोरे डालने की रणनीति है। उधर, कई सीटों पर आइएनडीआइए और बसपा के सियासी समीकरण टकराएंगे, जिसका भाजपा लाभ उठाना चाहेगी।

2014 लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बीच बसपा का खाता भी नहीं खुला और 2017 विधानसभा चुनाव में पश्चिम में मायावती को भारी नुकसान हुआ। हालांकि कोर दलित वोट पार्टी के साथ बंधा रहा। 2019 में सपा और रालोद के साथ चुनाव लड़ते हुए बसपा ने सहारनपुर, नगीना, बिजनौर व अमरोहा की लोकसभा सीटों पर कब्जा किया और मेरठ में बेहद नजदीकी मुकाबले में हारी।

स्थानीय निकाय चुनावों में भी ठोस वोटबैंक के बावजूद बसपा संघर्ष करती नजर आई। 2024 के लोकसभा चुनाव में आइएनडीआइए से दूर रहने का एलान कर चुकी मायावती के लिए अकेले चुनाव लड़कर जीतना आसान नहीं होगा, ऐसे में पार्टी जातीय समीकरणों का नट बोल्ट कसने में जुटी है। आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर की काट भी बसपा खोज रही है। पार्टी ने पश्चिम में दो दर्जन ऐसे नेताओं की सूची बनाई है जिन्हें एनडीए और आइएनडीआइए से टिकट न मिलने पर अपने खेमे में कर सके।