नई दिल्ली. मृत्यु जीवन का अटल सत्य है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मृत्यु के पश्चात शरीर से आत्मा निकल जाती है और शरीर निष्क्रिय हो जाता है। मेडिकल साइंस भी यह मानता रहा है कि मृत्यु के पश्चात शरीर के अंग कार्य करना बंद कर देते हैं, सांस रुक जाती है, रक्त का प्रवाह शांत हो जाता है और कुछ घंटों के बाद स्वाभाविक रूप से शरीर का विघटन होने लगता है। सीधे शब्दों में समझें तो मत्यु के पश्चात शरीर पूरी तरह से निष्क्रिय हो जाता है।

क्या मेडिकल साइंस में ऐसा कोई उपाय है, जिससे मृत शरीर में दोबारा से जान फूंकी जा सके या फिर मृत्यु के पश्चात शरीर के अंगों को दोबारा से सक्रिय बनाया जा सके? यह निश्चित ही असंभव प्रतीत होने वाली बात लगती है, हालांकि हाल ही में हुए एक शोध में वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसा हैरतअंगेज कर डाला है, जिसने पूरी दुनिया को चकित कर दिया है।

अमेरिकी वैज्ञानिकों की एक टीम ने मौत की अपरिवर्तनीय प्रकृति में बदलाव करने का दावा किया है। एक प्रयोग के दौरान वैज्ञानिकों ने मृत व्यक्ति की आंखों में प्रकाश-संवेदी न्यूरॉन कोशिकाओं को पुनर्जीवित करने का दावा किया है। यूटा विश्वविद्यालय स्थित जॉन ए मोरन आई सेंटर में शोधकर्ताओं ने यह अनूठा प्रयोग किया है। इस प्रयोग की रिपोर्ट के बाद अब सवाल उठने लगे हैं कि क्या वास्तव में मृत व्यक्ति के अंगों को दोबारा से सक्रिय बनाया जा सकता है?

नेचर जर्नल में प्रकाशित इस शोध के अनुसार, शोधकर्ताओं की टीम ने ऑर्गन डोनर आंखों में प्रकाश-संवेदी न्यूरॉन्स के बीच दोबारा से कम्यूनिकेशन स्थापित करने में सफलता प्राप्त की है। शोधकर्ताओं ने बताया कि केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में अरबों न्यूरॉन्स, संवेदी सूचनाओं को विद्युत संकेतों के रूप में प्रसारित करते रहते हैं। आंख के इन न्यूरॉन्स को फोटोरिसेप्टर के रूप में जाना जाता है जो प्रकाश को महसूस करते हैं। शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने इन्हीं न्यूरॉन्स को दोबारा से सक्रिय करने की कोशिश की है।

शोधकर्ताओं की टीम ने चूहे और मनुष्यों, दोनों में मृत्यु के तुरंत बाद रेटिना कोशिकाओं की गतिविधि को मापा। प्रारंभिक प्रयोगों से पता चला कि मृत्यु के पश्चात शरीर में ऑक्सीजन की कमी के कारण रेटिना कोशिकाओं के साथ फोटोरिसेप्टर का संबंध टूटने लग जाता है। अध्ययन और प्रयोग के लिए वैज्ञानिकों की दो अलग-अलग टीमों ने काम किया।

रेटिना को उत्तेजित करने में सफलता
शोध के दौरान स्क्रिप्स रिसर्च में एसोसिएट प्रोफेसर ऐनी हेनेकेन के नेतृत्व वाली पहली टीम ने मृत्यु के बाद 20 मिनट से भी कम समय में अंग दाता की आंखें प्राप्त कीं। वहीं दूसरी ओर जॉन ए. मोरन आई सेंटर के सहायक प्रोफेसर फ्रैंस विनबर्ग की टीम ने अंग दाता की आंखों में ऑक्सीजन और अन्य पोषक तत्वों को दोबारा से प्रसारित करने के लिए प्रयास करते हुए उन उपकरणों का प्रयोग किया जो रेटिना को उत्तेजित करके उसकी विद्युत गतिविधि को मापने में मदद करती हैं।

क्या कहते हैं वैज्ञानिक?
अध्ययन और प्रयोग के बारे में बायोमेडिकल वैज्ञानिक और प्रमुख लेखक डॉ फातिमा अब्बास बताती हैं, “हम मृत्यु के बाद मानव मैक्युला में फोटोरिसेप्टर कोशिकाओं को दोबारा से एक्टिव करने में सफल रहे हैं। मैक्युला, रेटिना का एक हिस्सा है जो सेंट्रल विजन और रंग देखने की हमारी क्षमता के लिए जिम्मेदार होता है। इससे पहले के अध्ययनों में अंग दाता की आंखों में बहुत सीमित मात्रा में विद्युत गतिविधि को प्रसारित किया गया है, लेकिन मैक्युला में ऐसा पहली बार किया गया है।

मृत्यु के समय ब्रेनवेव्स पर अध्ययन
सिमेक्स जर्नल में प्रकाशित एक अन्य शोध में वैज्ञानिकों ने मृत्यु के समय व्यक्ति के ब्रेनवेव्स पर अध्ययन किया। एमरजेंसी युनिट में भर्ती 87 वर्षीय व्यक्ति पर यह शोध किया गया। व्यक्ति को निरंतर इलेक्ट्रोएन्सेफलोग्राफी (ईईजी) दिया जा रहा था। इस बीच रोगी को दिल का दौरा पड़ा और उसकी मृत्यु हो गई। हालांकि निरंतर ईईजी मॉनिटर ने मृत्यु के दौरान मानव मस्तिष्क गतिविधि की पहली रिकॉर्डिंग प्रदान की।

कई स्तर पर किए गए अध्ययन के आधार पर वैज्ञानिकों ने मृत्यु से कुछ क्षण पहले व्यक्ति के मस्तिष्क में अलग-अलग प्रकार की तरंगों की सक्रियता को देखा, उनमें गामा तरंगें अधिक प्रभावशाली थीं। शोधकर्ताओं का मानना है कि ये तरंगें संभवतः जीवन के अंतिम क्षणों के दौरान मेमोरी फ्लैशबैक से जुड़ी होती हैं। जिसके कारण आखिर समय में मस्तिष्क अति सक्रिय हो जाता है और व्यक्ति के सामने जीवन की कई महत्वपूर्ण गतिविधियां मेमोरी फ्लैशबैक के रूप में बहुत तेजी से चलने लगती हैं।

अध्ययन का निष्कर्ष?
अध्ययन के परिणाम के बारे में प्रोफेसर फ्रैंस विनबर्ग बताते हैं, इस शोध के परिणाम निश्चित ही काफी हैरान करने वाले हो सकते हैं। मृत्यु के बाद अंगों को दोबारा सक्रिय करने की दिशा में यह बड़ा अनुभव रहा है। इस शोध की रिपोर्ट के आधार पर वैज्ञानिक समुदाय अब मानव दृष्टि का उन तरीकों से भी अध्ययन कर सकता है जो प्रयोगशाला में जानवरों के साथ संभव नही था। हमें उम्मीद है कि इस प्रकार के शोध नई दिशा में काम करने को प्ररित करेंगे। इसके विस्तृत परिणाम के बारे में जानने के लिए और विस्तार से परीक्षण जारी है।