पिछले महीने से कोरोना संक्रमण का जोखिम वैश्विक स्तर पर तेजी से बढ़ रहा है। चीन और जापान में ओमिक्रॉन के BF.7 वैरिएंट के कारण हालात बिगड़ गए हैं, तो वहीं अमेरिका में ओमिक्रॉन के एक नए सब-वैरिएंट का कहर देखा जा रहा है। भारत में भी कोरोना वायरस से बचाव के लिए विशेषज्ञ सतर्क रहने की सलाह दे रहे हैं। इस बीच दिल्ली एनसीआर में एक नए वायरस के मामले सामने आए हैं। पिछले दिनों H3N2 वायरस के कई मरीज भारत में मिले, जिससे स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चिंता बढ़ी है। H3N2 वायरस फिलहाल नियंत्रण में है। लेकिन बहुत से लोगों को इस वायरस के बारे में जानकारी नहीं है।
डॉ डांग लैब के सीईओ डॉ अर्जुन डांग ने जानकारी दी कि भारत में एच3एन2 वायरस के कुछ पॉजिटिव मरीज मिले हैं। डॉ अर्जुन डांग एच3एन2 वायरस के बारे में बताते हैं कि एच3एन2 वायरस एक प्रकार का इन्फ्लूएंजा ए है। यह फ्लू एक संक्रामक श्वसन वायरस है जो नाक, गले, ऊपरी श्वसन पथ और कुछ मामलों में फेफड़ों को भी प्रभावित करता है। ये वायरस आमतौर पर हर सर्दी या फ्लू के मौसम में इन्फ्लूएंजा की मौसमी महामारी का कारण बनते हैं।
उन्होंने आगे कहा, ‘पिछले कुछ हफ्तों में लगभग 100 से अधिक परीक्षण मिले हैं जिनमें से कई H3N2 पॉजिटिव के रोगी हैं। भारत में अभी H3N2 वायरस की स्थिति गंभीर नहीं है लेकिन इससे सावधानी जरूरी है। वहीं यह दिलचस्प बात है कि देश में H1N1 वायरस के कम पॉजिटिव रोगी मिल रहे हैं। आइए जानते हैं H3N2 वायरस क्या है, इसके लक्षण, कारण और बचाव के तरीके, वहीं H1N1 वायरस और H3N2 वायरस में ज्यादा गंभीर क्या है।
सर्दी का मौसम आते ही ठंड के कारण फ्लू के मामले बढ़ने लगते हैं और फ्लू का मौसम शुरू हो जाता है। फ्लू एक श्वसन बीमारी होती है, जो इन्फ्लूएंजा वायरस के कारण होती है। इन्फ्लूएंजा वायरस चार प्रकार के होते हैं- ए, बी, सी और डी। इन्फ्लूएंजा ए, बी और सी मनुष्यों में फैलता है। हालांकि केवल इन्फ्लूएंजा ए और बी प्रतिवर्ष मौसमी महामारी के तौर पर फैलता है।
अब इन्फ्लूएंजा ए वायरस दो प्रोटीनों के आधार पर दो अलग उपप्रकारों में विभाजित होता है। यह दो प्रोटीन हैं- हेमाग्लगुटिनिन (HA) और न्यूरोमिनिडेस (NA)। HA के 18 अलग अलग उपप्रकार हैं, जिन्हें H1 से H18 तक क्रमांकित किया गया है। वहीं NA के 11 अलग उपप्रकार हैं, जिन्हें N1 से N11 तक क्रमांकित किया गया है।
सबसे पहली बार H3N2 वायरस इंसानों में 1968 में पाया गया। H3N2 के कारण होने वाले फ्लू के लक्षण अन्य मौसमी इन्फ्लूएंजा वायरस के कारण होने वाले लक्षणों के समान हैं। डॉ अर्जुन डांग बताते हैं कि एच3एन2 वायरस के एक प्रकार का इन्फ्लूएंजा ए है। यह फ्लू एक संक्रामक श्वसन वायरस है जो नाक, गले, ऊपरी श्वसन पथ और कुछ मामलों में फेफड़ों को भी प्रभावित करता है। ये वायरस
इस फ्लू की कुछ लक्षण अन्य बीमारियों के समान ही है, जैसे सर्दी जुकाम होना। इसलिए केवल लक्षण देखकर पता लगा पाना मुश्किल होता है कि रोगी H3N2 वायरस के कारण फ्लू से पीड़ित है।
हालांकि स्वास्थ्य विशेषज्ञ लैप टेस्ट के जरिए इस बात की पुष्टि कर सकते हैं कि रोगी को फ्लू हुआ है या कोई अन्य बीमारी है। हालांकि अगर आप परंपरागत फ्लू सीजन में इस तरह के लक्षणों को महसूस कर रहे हैं तो विशेषज्ञ बिना लैब में जांच किए भी इसका इलाज फ्लू के तौर पर ही करेंगे।
मौसमी सीजन में होने वाले फ्लू सामान्यतः घर पर ही आराम करने और कुछ एहतियात बरतने से ठीक हो सकता है। हालांकि अगर रोगी को सांस लेने में दिक्कत हो, छाती में दर्द या पेट में दबाव महसूस करें, अचानक चक्कर आए, लगातार उल्टियां हों या फिर बार-बार खांसी और बुखार आता हो तो तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए।
कुछ लोगों में फ्लू के कारण गंभीर जटिलताओं के विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है। इन जटिलताओं में निमोनिया या अस्थमा की शिकायत बढ़ जाती है, जिससे मौजूद चिकित्सा स्थिति बिगड़ सकती है।
मौसमी फ्लू के उपचार के लिए इसके लक्षणों को दूर करना होता है। फ्लू होने पर भरपूर आराम करना चाहिए और पर्याप्त तरल पदार्थ का सेवन करना चाहिए। बुखार, सिरदर्द और शरीर के दर्द आदि लक्षणों से राहत पाने के लिए जरूरी दवाओं का सेवन करें।
कुछ मामलों में चिकित्सक ओसेल्टामिविर (टैमीफ्लू) जैसी एंटीवायरल दवा दे सकते हैं। फ्लू के लक्षण विकसित होने के 48 घंटों के भीतर एंटीवायरल दवा बीमारी की अवधि को कम करने और जटिलताओं को विकसित होने से रोकने में मदद कर सकती है।
65 और उससे अधिक उम्र के लोगों, पांच साल से छोटे बच्चों और गर्भवती को H3N2 वायरस के कारण होने वाले फ्लू का जोखिम अधिक होता है। इसके अलावा जो लोग अस्थमा, डायबिटीज और हृदय रोग से पीड़ित हैं या जिन लोगों का इम्यून सिस्टम कमजोर हैं, वह भी फ्लू से जल्दी संक्रमित हो सकते हैं।
प्रतिवर्ष सर्दी के मौसम में फ्लू होने की संभावना बढ़ जाती है। बचाव के लिए हर वर्ष फ्लू वैक्सीन लगवाएं। हो सके तो अक्तूबर के अंत तक टीकाकरण करवा लें।
अपने हाथों का साफ रखें। खासकर खाना खाने से पहले, शौचालय के दौरान, अपने चेहरे, मुंह और नाक को छूने से पहले हाथों को धो लें। हो सके तो इस मौसम में भीड़ भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचें। यहां आसानी से फ्लू फैलने की संभावना रहती है। बीमारी लोगों से दूरी बनाए ऱखें।
अगर आप फ्लू से पीड़ित हैं तो संक्रमण को दूसरों तक फैलने से रोकने के लिए बुखार उतरने के 24 घंटे बाद तक घर पर ही रहें। ध्यान रहे कि खांसते या छींकते समय मुंह को ढक लें।