नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण फाइनेंशियल ईयर 2022-23 का आम बजट पेश किया उन्होंने टैक्सपेयर्स के लिए कई बड़ी घोषणाएं की है। अब नई कर व्यवस्था में सात लाख रुपये तक की इनकम पर कोई टैक्स नहीं देना होगा। उन्होंने इसमें स्लैब की संख्या छह से घटाकर पांच करने की घोषणा की। अब नौ लाख रुपये तक की इनकम पर केवल 45 हजार रुपये देने होंगे। इसी तरह 15 लाख रुपये तक को 1.5 लाख रुपये इनकम टैक्स देना होगा। उन्होंने कहा की तीन से छह लाख रुपये तक टैक्स रेट 5 फीसदी होगा। छह से नौ लाख तक यह 10 फीसदी, नौ से 12 लाख रुपये तक की इनकम पर 15 फीसदी, 12 से 15 लाख रुपये तक 20 फीसदी और 15 लाख से ऊपर की इनकम पर 30 फीसदी टैक्स लगेगा। नौ लाख की आय वाले को 45 हजार देना होगा जो कि पांच परसेंट होगा। अभी 60 हजार देना होता है। मतलब 25 परसेंट घट जाएगा। 15 लाख आय वाले को सिर्फ 10 प्रतिशत देना होगा। पहले उसे 187000 रुपए देने होते थे। यानी अब उन्हें 20 फीसदी कम टैक्स देना होगा। न्यू टैक्स रिजीम में 15.5 लाख रुपये और उससे ज्यादा के लिए 52,500 रुपये तक स्टैंडर्ड डिडक्शन दिया गया है। अधिकतम सरचार्ज रेट 37 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत कर दिया गया है।
वित्त मंत्री ने कहा कि नया टैक्स रिजीम अब डिफॉल्ट टैक्स रिजीम होगा लेकिन टैक्सपेयर्स पुरानी कर व्यवस्था का विकल्प चुन सकते हैं। वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार ने टैक्सपेयर्स पर अनुपालन को बोझ कम किया है। एक दिन में अधिकतम 72 लाख आईटी रिटर्न भरे गए हैं। इस साल 6.5 करोड़ आईटी रिटर्न भरे गए हैं। आईटी रिटर्न प्रोसेस करने की औसत अवधि 2013-14 में 93 दिन हुआ करती थी जो अब घटकर 16 दिन रह गई है। 45 फीसदी आईटी रिटर्न फॉर्म 24 घंटे में ही प्रोसेस किए गए हैं। सरकार एक कॉमन आईटी फॉर्म बनाने पर काम कर रही है जिससे टैक्सपेयर्स पर कंपलाएंस का बोझ और कम होगा।
इनकम टैक्स स्लैब
3 से 6 लाख रुपये 5%
6 से 9 लाख रुपये 10%
9 से 12 लाख रुपये 15%
12 से 15 लाख रुपये 20%
15 लाख से ऊपर 30%
यह मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का आखिरी फुल बजट है। इस साल नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और फिर अगले साल देश में आम चुनाव होंगे। मंगलवार को पेश इकॉनमिक सर्वे के मुताबिक अप्रैल से नंवबर के बीच डायरेक्ट टैक्स में पिछले साल के मुकाबले 26 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। साथ ही जनवरी में जीएसटी कलेक्शन 1,55,922 करोड़ रुपये रहा जो अब तक का दूसरा सबसे ज्यादा कलेक्शन है। इस फाइनेंशियल ईयर में यह तीसरा मौका है जब जीएसटी कलेक्शन 1.50 लाख करोड़ रुपये से अधिक रहा है। यानी सरकार का खजाना भरा हुआ है और सरकार के पास टैक्सपेयर्स को राहत देने के लिए पर्याप्त गुंजाइश है। नौ साल से टैक्स के मोर्चे पर कोई बदलाव नहीं हुआ है। यही वजह है कि टैक्सपेयर्स को इस बार राहत मिलने की उम्मीद थी।
इससे पहले अंतिम बार 2014 में पर्सनल टैक्स छूट की सीमा में बदलाव किया गया था। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल का पहला बजट पेश करते हुए तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसे दो लाख रुपये से बढ़ाकर 2.5 लाख रुपये करने की घोषणा की थी। इस समय दो तरह की कर व्यवस्था हैं। सरकार ने दो साल पहले वैकल्पिक कर व्यवस्था की घोषणा की थी। लेकिन इसे ज्यादा भाव नहीं मिला। माना जा रहा था कि इसे लोकप्रिय बनाने के लिए सरकार इसमें बदलाव कर सकती है।
पुरानी कर व्यवस्था में 2.5 लाख रुपये सालाना इनकम पर कोई टैक्स नहीं देना होता है। 2.5 लाख से पांच लाख रुपये के इनकम पर पांच प्रतिशत स्लैब रेट लागू है। 5 लाख से 10 लाख रुपये के इनकम पर 20 फीसदी स्लैब रेट है। 10 लाख से 20 लाख रुपये सालाना इनकम पर 30 फीसदी स्लैब रेट लागू है। इसी तरह 20 लाख रुपये से अधिक की इनकम पर 30 फीसदी स्लैब रेट है। माना जा रहा था कि सरकार कर पर छूट की सीमा 2.5 लाख रुपये से बढ़ाकर पांच लाख रुपये कर सकती है। इससे टैक्सपेयर्स को राहत मिलेगी और उनके हाथ में निवेश के लिए ज्यादा पैसा रहेगा।
पुरानी कर व्यवस्था में सेक्शन 80 सी और 80 डी का इस्तेमाल करके टैक्सपेयर्स टैक्स बचा सकते हैं। लेकिन नई व्यवस्था में इस तरह की कई छूट खत्म कर दी गई। यही वजह है कि इसे टैक्सपेयर्स ने कोई भाव नहीं दिया। इसमें 2.5 लाख रुपये तक कोई टैक्स नहीं है। 2.5 लाख से पांच लाख रुपये तक पांच फीसदी, पांच से 7.5 लाख रुपये तक 10 फीसदी, 7.5 लाख से 10 लाख रुपये तक 15 फीसदी, 10 से 12.5 लाख रुपये तक 20 फीसदी, 12.5 लाख से 15 लाख रुपये तक 25 फीसदी और 15 लाख रुपये से अधिक की सालाना इनकम पर 30 फीसदी टैक्स लगता है।