मुरादाबाद।   संभल बवाल को लेकर आजम खां के बयान ने सांसद चंद्रशेखर से जेल में मुलाकात के बीस दिन बाद पर्दे के पीछे पक रही सियासी खिचड़ी में तड़का लगा दिया है। आजम खां के बयान और उनके परिवार के सदस्यों से चंद्रशेखर का एक-एक कर मिलने के अब सियासी मायने निकाले जाने लगे हैं। राजनीतिक दलों में आजम खां के बयान को कोई सपा पर दबाव बनाने की सियासत के रूप में देख रहा है तो कुछ इसे बदलाव का संकेत मान रहा है। फिलहाल मुस्लिम राजनीति का केंद्र माने जाने वाले आजम के अगले कदम पर दूसरे दलों की भी नजरें है।

इस साल हुए लोकसभा चुनाव में एक सीट जीतने वाली आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) का यूपी उपचुनाव में बसपा से बेहतर प्रदर्शन रहा। दलित-मुस्लिम गठजोड़ उनकी जीत की वजह बनी। पार्टी प्रदेश में बसपा के विकल्प के साथ मुस्लिम मतों को साधने में लगी है। इसके मद्देनजर उपचुनाव के बीच ही पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने हरदोई जेल में बंद आजम खां के बेटे पूर्व विधायक अब्दुल्ला आजम से मुलाकात कर सभी को चाैंका दिया था। इसके छह दिन बाद ही वह आजम की पत्नी डॉ. तजीन फात्मा और बड़े बेटे से मिलने रामपुर पहुंच गए।

यही नहीं, तीन दिन बाद चंद्रशेखर सीतापुर जेल पहुंच गए। जहां आजम खां से उनकी एक घंटे बातचीत हुई। मुलाकात के बाद चंद्रशेखर का बयान सोशल मीडिया पर छाया रहा। आजम खां और उनके परिवार के सदस्यों से यह मुलाकात सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बनी रही। सियासी कयासबाजी भी शुरू हो गई।

इस बीच दस दिसंबर को आजम खां ने संभल की घटना को लेकर इंडिया गठबंधन पर निशाना साधकर राजनीतिक बदलाव के संकेत को हवा दे दी। जेल से जारी बयान में आजम ने यहां तक कहा कि जब रामपुर में जुल्म और बर्बादी हुई तो इस मुद्दे को उतनी मजबूती से संसद में नहीं उठाया गया, जितना संभल का मुद्दा उठाया जा रहा है।

अब आजम के बयान और चंद्रशेखर की मुलाकात को जोड़कर राजनीतिक चर्चाएं बढ़ गई हैं। इसे 2027 के विधानसभा चुनाव से भी जोड़कर देखा जा रहा है। सपा पर दबाव या दल-बदल के संकेतों पर दो खेमों में नाइत्तफाकी हो सकती है लेकिन आने वाले दिनों में मुस्लिम सियासी धारा के मुखर स्वरूप को सभी तय मान रहे हैं।

लोकसभा चुनाव में टिकटों के बंटवारे को लेकर अखिलेश यादव और आजम खां आमने-सामने आ गए थे। मुरादाबाद मंडल में प्रत्याशियों के चयन से पहले अखिलेश यादव ने आजम खां से सीतापुर जेल में मुलाकात की थी। आजम खां ने अखिलेश यादव को रामपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का सुझाव दिया था। साथ ही मुरादाबाद सीट से बिजनौर की पूर्व विधायक रुचिवीरा को प्रत्याशी बनाने की सिफारिश की थी। अखिलेश यादव ने टिकट वितरण के समय ऐसा नहीं किया।

इसके बाद आजम खां के हवाले से रामपुर के सपा नेताओं ने लोकसभा चुनाव के बहिष्कार का एलान कर दिया था। इस खींचतान के बीच अखिलेश यादव ने आजम की पसंद को दरकिनार कर दिल्ली पार्लियामेंट्री स्ट्रीट की मस्जिद के इमाम मौलाना मोहिब्बुल्लाह नदवी को रामपुर से उम्मीदवार घोषित कर दिया था। हालांकि मुरादाबाद सीट पर उस समय के मौजूदा सांसद डॉ. एसटी हसन का टिकट काटकर रुचिवीरा को उम्मीदवार बनाते हुए आजम खां को बैलेंस करने की कोशिश भी की थी। संयोग से दोनों सीटें (रामपुर, मुरादाबाद) सपा के खाते में आने से असंतुष्टि की भीतरी आग को ज्यादा हवा नहीं मिल सकी थी लेकिन अब स्थितियां फिर बदली हैं।

उपचुनाव में कुंदरकी में सभा के बाद अखिलेश यादव रामपुर पहुंचे थे। वहां वह सिर्फ आजम खां के घर गए और उनके परिजनों से मुलाकात की थी। समय-समय पर आजम खां के साथ सरकारी स्तर से जुल्म-ज्यादती की बात कहकर इस परिवार के हितैषी होने का संदेश भी देते रहे हैं। यह भी कहा था कि सपा सरकार आने पर आजम खां के खिलाफ दर्ज झूठे मुकदमे वापस लिए जाएंगे।

आजम खां की सपा से नाराजगी कोई नई बात नहीं है। आजम खां पहले भी पार्टी से बगावत कर चुके हैं। वर्ष 2010 में पार्टी से अलग हो गए थे। उनके समर्थकों ने आजमवादी मंच बनाया था। बाद में मुलायम सिंह यादव ने उन्हें मना लिया था। इसके बाद 2012 सपा बहुमत के साथ सरकार में आई थी।

सियासी घटनाक्रम
– 11 नवंबर को चंद्रशेखर ने हरदोई जेल में अब्दुल्ला आजम से मुलाकात की थी
– 17 नवंबर को चंद्रशेखर आजम खां की पत्नी और बेटे से मिलने रामपुर पहुंचे
– 21 नवंबर को चंद्रशेखर सीतापुर जेल में आजम खां से मिले
– 10 दिसंबर को आजम खां ने सीतापुर जेल से अपना बयान जारी किया