मदरसों के सरकारी सर्वे में देश का सबसे बड़ा दीनी इदारा दारुल उलूम देवबंद गैर मान्यता प्राप्त मिला है, लेकिन यह सोसायटी एक्ट-1988 के तहत पंजीकृत है। इसलिए इसे गैरकानूनी नहीं कहा जा सकता है। इस संबंध में प्रशासन ने शासन को सर्वे संबंधी रिपोर्ट भेज दी है।

सूबे की योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा कराए गए गैर सरकारी मदरसों के सर्वे का काम पूरा हो गया। इसकी रिपोर्ट जिला प्रशासन की ओर से शासन को भेज दी गई। जिले में मदरसों के सर्वे में विश्वविख्यात इस्लामिक शिक्षण संस्था दारुल उलूम देवबंद भी गैर मान्यता प्राप्त मिला है। जो मदरसे सरकार से अनुदान नहीं लेते उन्हें गैर मान्यता प्राप्त बताया गया है। जिनमें दारुल उलूम भी शामिल है। हालांकि इन्हें अवैध या गैर कानूनी नहीं कहा जा सकता है।

जिला अल्पसंख्यक अधिकारी भरत लाल गोंड ने बताया कि जनपद के सभी मदरसों का सर्वे का कार्य पूरा कर लिया गया है। दारुल उलूम देवबंद समेत 306 मदरसे गैर मान्यता प्राप्त मिले हैं, जो सरकारी मदद नहीं लेते हैं। इनका उप्र मदरसा बोर्ड में पंजीयन नहीं है। इसलिए इन्हें सरकार से कोई अनुदान नहीं मिलेगा। न ही इनके छात्रों को छात्रवृत्ति मिलेगी। हालांकि ये मदरसे गैर कानूनी नहीं, बल्कि सोसाइटी आदि में पंजीकृत हैं।

उन्होंने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 29 के तहत अल्पसंख्यक शिक्षण संस्था धार्मिक पढ़ाई करा सकती है। इसी के तहत दारुल उलूम देवबंद संचालित है। इस संबंध में शासन को रिपोर्ट भेज दी है।

उधर, दारुल उलूम के मोहतमिम मौलाना मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी का कहना है कि दारुल उलूम सोसाइटी एक्ट के तहत पंजीकृत है। भारतीय संविधान में दी गई धार्मिक आजादी के तहत यहां धार्मिक और आधुनिक शिक्षा दी जाती है। पिछले 150 साल से अधिक से चल रहे इदारे ने कभी किसी भी सरकार से कोई अनुदान नहीं लिया। इसका सारा खर्च लोगों द्वारा दिए गए चंदे से चलता है।
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