नई दिल्ली: आप बचपन से पढ़ते आ रहे हैं कि पृथ्वी ठीक 24 घण्टे में 360° का एक चक्कर पूरा करती है. इस 24 घण्टे में कुल 86 हज़ार 400 सेकंड होते हैं. हमारी घड़ियां भी इसी 24 घण्टे या 86 हज़ार 400 सेकंड के सिद्धांत पर काम करती है. जिसमे 86 हज़ार 400 सेकंड के पूरे होने पर एक दिन पूरा हुआ मान लिया जाता है. लेकिन क्या अपने कभी यह सोचा कि अगर पृथ्वी 360° का एक चक्कर 24 घण्टे से कम समय मे लगा ले तो क्या होगा? हां ऐसा हुआ है और इस बार रिकॉर्ड तोड़ तरीके से हुआ है. 29 जून 2022 को पृथ्वी ने 360° का एक चक्कर 24 घण्टे से भी 1.59 मिली सेकंड कम समय मे पूरा कर लिया था.

यानी 29 जून को पृथ्वी ने 360° का एक चक्कर 86399.99841 सेकंड में पूरा किया था. साल 1973 से जब से पृथ्वी के चक्कर लगाने के समय की सटीक गणना की जा रही है तब से यह पृथ्वी द्वारा 360° का पूरा किया गया सबसे तेज चक्कर है. पृथ्वी के इस सबसे तेज मूवमेंट से साइंटिस्ट और एक्सपर्ट दोनों ये अंदेशा जता रहे हैं कि पृथ्वी की ये बढ़ी रफ्तार आपके सारे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स जैसे कंप्यूटर, मोबाइल, इंटरनेट, या फिर wifi को क्रैश भी कर सकती है. आखिर ऐसा कैसे हो सकता है आईये आपको बताते हैं.

आमतौर पर पृथ्वी 86,400.002 सेकेंड में अपना 360° का एक चक्कर पूरा करती है यानी पृथ्वी के लिए एक चक्कर लगाने में कुछ मिली सेकंड का ज्यादा समय लेना आम बात है. और रोज पृथ्वी द्वारा रोज 360° के चक्कर के लिए ज्यादा लिया जाने वाले यह 0.002 सेकंड का समय 1 साल में 2 मिली सेकंड और 3 साल में 1 सेकंड बन जाता है जिसकी वजह से International Atomic Time( IAT) का तालमेल बिगड़ जाता है और इसे सही करने के लिए Universal Time Clock में कई बार 1 सेकेंड को जोड़ दिया जाता है जिसे जोड़ने का काम फ्रांस स्थित इंटरनेशनल अर्थ रोटेशन सिस्टम करता है. और जोड़े गए इस एक सेकेंड को लीप सेकंड भी कहते हैं.

साल 1972 से अब लेकर अब तक कुल 27 बार लीप सेकंड जोड़े गए हैं. लीप सेकंड को जोड़ने की व्यवस्था कुछ इस तरह होती है कि Universal Time Clock (UTC) में 23:59:59 के बाद फिर से 23:59:60 आता है और फिर 00:00:00 समय आता है. यानी रात 11 बज कर 59 मिनट और 59 सेकंड के बाद रात 11 बज कर 59 मिनट और 60 सेकंड आता है और फिर 12 बजते हैं. जबकि सामान्य तौर पर घड़ी में 11 बज कर 59 मिनट और 59 सेकंड के 1 सेकंड के बाद 12 बजते हैं. लीप सेकंड जोड़ने के दौरान कोई राकेट लांच नही किया जाता है और यह लीप सेकंड 30 जून या 31 जुलाई को ही जोड़ा जाता है वो भी 1 महीने पहले बता कर.

लीप सेकंड जोड़ना तो आसान है क्योंकि पृथ्वी 360° घूमने में समय सामान्यतः ज्यादा लेती है लेकिन वर्ष 2020 के बाद पृथ्वी 360° का एक चक्कर तेज़ी रिकॉर्ड तेजी से लगा रही है. जहां 29 जून को पृथ्वी ने चक्कर 1.59 मिली सेकंड पहले ही पूरा कर लिया था जो अबतक का रिकॉर्ड है और इसी तरह पृथ्वी में 26 जुलाई को अपना 360° का एक चक्कर 1.50 मिली सेकंड पहले ही पूरा कर लिया. यानी हमारी पृथ्वी ने 26 जुलाई को 360° का चक्कर 86399.9985 सेकंड में पूरा किया था. वैज्ञानिकों के मुताबिक ऐसा अगर चलता रहा और ये कम होते मिली सेकंड, सेकंड बन गए तो इन्हें रिवर्स लीप सेकंड लीप सेकंड कहा जायेगा और फिर UTC से एक सेकंड कम करना होगा. यानी 23:59:58 के बाद सीधा 00:00:00.रात 11 बज कर 59 मिनट और 58 सेकंड के बाद सीधा रात 12 बजेंगे.

विशेषज्ञों की माने तो यह REVERSE लीप सेकंड अगर UTC में घटाया गया तो इसके दुष्परिणाम टेक्नोलॉजी से लेकर संचार तंत्र पर पड़ेंगे क्योंकि आज के इलेक्ट्रॉनिक गैजेट UTC टाइम के अनुसार चलते हैं और टाइम में यह बदलाव कंप्यूटर प्रोग्रामों को क्रैश कर सकता है और डेटा को करप्ट कर सकता है क्योंकि यह डेटा टाइम स्टैंप के साथ सेव होता है. विशेषज्ञों के मुताबिक जब 2012 में लीप सेकंड UTC में जोड़ा गया था तब Mozila, Linkedin, Stumble समेत कई इंटरनेट वेबसाइट क्रैश हो गयी थीं. और आज के समय मे जब सारे डिवाइस इंटरनेट से कनेक्ट हैं तो इनके क्रैश होने की भी संभावना बढ़ गई है.

खगोलवैज्ञानिकों की माने तो जिस तरह से पृथ्वी पर लगातार तूफान, बाढ़ आ रही है, जलवायु परिवर्तन हो रहा है, ग्लेशियर पिघल रहे हैं. पृथ्वी के तेजी से चक्कर लगाने का ये एक बड़ा कारण हो सकता है. वहीं वैज्ञानिकों का कहना है कि यह चांडलर वॉबल की वजह से भी हो सकता है, जो पृथ्वी के घूमने की axis में एक छोटा सा डीविएशन पैदा करती है जिससे रफ्तार कुछ तेज हो जाती है.

साइबर एक्सपर्ट पवन दुग्गल का मानना है कि आज इंटरनेट, वाईफाई, डिश सब कुछ सैटेलाइट के सहारे काम कर रही है जो पृथ्वी का चक्कर लगाती है. लेकिन जिस तरह से पृथ्वी की रफ्तार तेज हुई है उससे इनके हैंग होने की भी सम्भावना है. क्योंकि UTC में बदलाव से हो सकता है कि कुछ देर के लिए ही सही पर सैटेलाइट से सबका संपर्क टूट जाये. आधे मिलीसेकंड का हेर-फेर भी भूमध्य रेखा पर 10 इंच या 26 सेंटीमीटर तक का फर्क पड़ सकता है. ऐसे में लंबे समय तक अगर पृथ्वी के घूमने की गति तेज रही तो धीरे-धीरे जीपीएस सैटेलाइट के हैंग होने की भी संभावना है. ऐसे में आने वाले कुछ दिन तकनीक क्षेत्र के लिए काफी महत्वपूर्ण है.

हम सभी लोग लीप ईयर के बारे में अच्छे से जानते हैं. पृथ्वी पर एक साल तब पूरा माना जाता है, जब वह सूर्य का एक चक्कर पूरा कर लेती है. यह अवधि सटीक रूप से 365 दिन और छह घंटे की है. लेकिन अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक, एक साल को 365 दिन का ही माना जाता है. अब अगर पृथ्वी द्वारा लगाए गए अतिरिक्त समय 6 घंटे को 4 बार जोड़ा जाए तो यह समय एक दिन के बराबर हो जाता है. इसलिए दुनिया में हर चार साल में एक लीप ईयर पड़ता है जब फरवरी में एक दिन जोड़ा जाता है और यह 28 दिन की जगह 29 दिन की होती है. लेकिन अगर पृथ्वी तेजी से घूमती रही तो ऐसा हो कि सैकड़ों साल में एक समय ऐसा भी आये जब लीप ईयर में दिन जोड़ने की जगह रिवर्स लीप ईयर में दिन घटाने की जरूरत पड़े.