जींद। साढ़े सात एकड़ के किसान जोगेंद्र अलेवा फल, सब्जी व अनाज वाली फसलों की मिश्रित खेती करते हैं। एक एकड़ में बाग लगाया हुआ है। दो एकड़ में सब्जी की खेती करता है। जैविक तरीके से खेती करते हैं। मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन के लिए जीवामृत, वेस्ट डिकंपोजर कंपोस्ट और हरी खाद का प्रयोग करते हैं। गेहूं व धान की फसल से 42 हजार रुपये प्रति एकड़ आय होती थी। अब अमरूद और सब्जी उत्पादन से एक लाख रुपये प्रति एकड़ आमदनी ले रहे हैं।
जोगेंद्र ने जब जैविक खेती करनी शुरू की, तो लोग उसे मूर्ख कहते थे। लेकिन जब उसके खेत में कम खर्च में उत्पादन ज्यादा होने लगा, तो वही लोग उससे सलाह लेने लगे। जैविक तरीके से धान, गेहूं और गन्ने की खेती करते हैं। गन्ने का गुड़ व शक्कर बनवा कर बेचते हैं। किसान जोगेंद्र ने बताया कि वह पहले गेहूं और धान की खेती करते थे।
इसमें यूरिया, डीएपी, कीटनाशकों के प्रयोग के बावजूद बचत ज्यादा नहीं होती थी। पिल्लूखेड़ा खंड कृषि विकास अधिकारी डॉ. सुभाष चंद्र के संपर्क में आने के बाद उनका रुझान बागवानी की तरफ हुआ। खेत की रूटीन में मिट्टी जांच करानी शुरू की। एक एकड़ में अमरूद का बाग लगाया। दो एकड़ में सब्जी की खेती शुरू की। इसमें घीया, तोरी और अन्य सब्जियों का उत्पादन लिया। सब्जी की खेती में गेहूं व धान की खेती की तुलना में बचत दोगुनी से ज्यादा बढ़ गई।
जोगेंद्र ने बताया कि वह मूंग की भी खेती करता है। मूंग की फसल में पानी की खपत भी बहुत कम होती है। इसमें यूरिया भी नहीं डालते। कम लागत में उत्पादन भी अच्छा रहता है और जमीन की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है। मूंग की फलियों को तोड़ कर पौधों को खेत में मिला देते हैं। जिससे हरी खाद बनती है। जैविक खेती के लिए कृषि एवं किसान कल्याण विभाग और बागवानी विभाग का सहयोग मिला।