अयोध्या।  22 जनवरी 2024 को प्राण प्रतिष्ठा समारोह के कुछ साल पहले का अतीत अयोध्या में सभी के लिए कष्टदायी रहा है। वह जो कथित मस्जिद को ढहाने में आरोपी थे, नागरिक थे, और वह भी जो उस समय यहां अहम पदों पर थे। दो अक्तूबर और 30 नवंबर 1990 का मंजर किसी दूसरे राष्ट्र के साथ युद्ध जैसा था। वर्ष 1990 में विहिप ने 30 अक्तूबर को देशभर से कारसेवकों को अयोध्या बुलाया था। लाखों कारसेवक पहुंच गए। प्रशासन ने अयोध्या को आबाद क्षेत्र का टापू बना दिया था। सवाल-जवाब के बजाय कारसेवकों को गोली मारने का आदेश कर दिया गया था।
तत्कालीन जिलाधिकारी ने किताब में बयां किया सच 72 घंटे के अंतराल में दो नवंबर को एक बार फिर कारसेवकों ने धावा बोला।

सुरक्षा में लगी रोडवेज बस को हाईजैक कर वहां तक पहुंच गए। अयोध्या की गलियों में गोलियों की बरसात कर दी गई। कई और कारसेवकों की मौत हुई। कई घायल हो गए। रामनामी पहन सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी की, अराजकता फैलाई। मजबूरन गोली चलानी पड़ी। तीन एजेंसियों से जांच की बात बताई गई। फैजाबाद के तत्कालीन जिलाधिकारी राम शरण श्रीवास्तव और एसएसपी सुभाष जोशी थे। गोली चलाने का आदेश तो नहीं था, लेकिन इसका आरोप तत्कालीन डीएम पर मढ़ने का प्रयास हुआ। श्रीवास्तव ने अपनी पुस्तक एक दृष्टिकोण: राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद में साफ लिखा कि कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश उन्होंने नहीं दिया था।

पर यह उनके मत्थे मढ़ने के तमाम प्रयास किए गए। स्वीकार न करने पर उनकी उपेक्षा हुई। उत्पीड़न की हद तक घेराबंदी की गई। कार में आग लगवा दी गई। सूचना पर एसएसपी मौके पर नहीं पहुंचे। अंत में 30 नवंबर 1990 को उनका तबादला कर दिया गया। सीबीआई ने जांच शुरू की। पांच अक्तूबर 1993 को जांच के बाद 49 अभियुक्तों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया। वर्ष 1992 में स्थिति दूसरी थी। प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार थी। एक बार विहिप ने कारसेवकों का आह्वान किया। लाखों की संख्या में कारसेवक यहां पहुंचे।