नई दिल्ली. भारत में बड़े पैमाने पर आंवला की व्यावसायिक खेती की जाती है. बाजार में भी आंवले से बने हर्बल उत्पादों की काफी मांग रहती है. इसलिये किसान भी आंवला के बागों से अच्छे फलों का उत्पादन लेने के लिये उनकी भरपूर देखभाल करते हैं. बात करें आंवला के पुराने बागों की तो इन्हें समय-समय पर खाद, उर्वरक, कीट नियंत्रण, निराई-गुड़ाई और निगरानी की जरूरत होती है, जिससे कीड़े और बीमारियों के संकट को समय रहते रोका जा सके.

आंवला के बागों को हरा-भरा और फलदार रखने के लिये पेड़ों में पोषण प्रबंधन करते रहना चाहिये, जिससे अच्छी क्वालिटी के फल मिल सके. इसके लिये 10 किग्रा. गोबर की कंपोस्ट खाद, 100 ग्राम नाइट्रोजन, 50 ग्राम फॉस्फोरस और 75 ग्राम पोटेशियम आदि का मिश्रण बनाकर हर महीने आंवला के पेड़ों में डालते रहें. ध्यान रखें कि मई-जून और दिसंबर-जनवरी के बीच पेड़ों में पोषण प्रबंधन न करें.

आंवला के नये बागों में रोपाई के बाद हर 2 दिन के अंदर और एक महीने के बाद हर 7 दिन में सिंचाई काम करते रहना चाहिये. बात करें पुराने बागों की, तो गर्मियों में आंवला के पुराने पेड़ों की नमी चली जाती है, इसलिये पेड़ों को हर 15 दिन में पानी देने की सलाह दी जाती है. विशेषज्ञों की मानें तो आंवला के पेड़ों को एक निश्चित मात्रा में ही पानी देना चाहिये, नहीं तो पेड़ों में भी गलन होने लगती है और उत्पादन की क्वालिटी प्रभावित होती है. इसके अलावा, मानसून की बारिश के बाद भी अक्टूबर-दिसंबर में पेड़ों को 25-30 लीटर पानी की आवश्यकता पड़ती है.

आंवला के पेड़ों की अच्छी बढ़वार के लिये समय-समय पर उसकी कटाई-छंटाई करते रहना जरूरी है, जिससे कमजोर और रोग ग्रस्त टहनियों को हटाकर पेड़ को मजबूती मिल सके. आंवला के पेड़ों की कटाई का काम दिसंबर माह में करना चाहिये.

आंवला के पुराने पेड़ों की निगरानी में लापरवाही नहीं बरतनी चाहिये, इससे कीड़े और बीमारियां धीर-धीरे पूरे बाग में फैल जाती हैं. खासकर बागों में जल भराव को रोकने के लिये जल निकासी का प्रबंध जरूरी है, ताकि पेड़ों और फलों को फफूंदी रोग से बचाया जा सके. इसके अलावा, आंवला के बागों कीड़ों की रोकथाम के समय-समय पर नीम के कीट नाशक या नीम के तेल का छिड़काव करना चाहिये.