मेरठ। बंद आंखों से चित्र बनाना, उनमें रंग भरना, किताब पढ़ना, नोट के नंबर बता देना और कोई भी कलर छू कर बता देना। यह सब सोमवार को ऋषिकाकुलम कन्या गुरुकुल की कन्याओं ने कर दिखाया। यह भले ही चमत्कार जैसा प्रतीत हो रहा हो पर कड़ी साधना और एकाग्रता के बाद ही ऐसी क्षमता हासिल की जा सकती है। भारतीय संस्कृत में गुरुकुल विधा में शिक्षण और प्रशिक्षण का अलग महत्व रहा है। यहां लेखन में कम और मनन पर ज्यादा महत्व दिया जाता रहा है। उसी तर्ज पर स्वामी कर्मवीर के मार्गदर्शन में संचालित ऋषिकाकुलम कन्या गुरुकुल में बालिकाएं साधना करती हैं। गहन एकाग्रता से हासिल क्षमता से लोगों को रूबरू कराने के लिए सोमवार को चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के बृहस्पति भवन में मिड ब्रेन या थर्ड आई एक्टिवेशन यानी तृतीय नेत्र जागृति का प्रस्तुतीकरण कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में स्वामी कर्मवीर के मार्गदर्शन में गुरुकुल की कन्याओं ने अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया।
स्कूली कक्षाओं में पढ़ रही गुरुकुल कन्याओं ने अपनी एकाग्रता की क्षमता का परिचय देते हुए आंख बंद कर विभिन्न रंगों की पहचान की। इसके बाद चित्रकला में छात्राओं ने गुलाब, बत्तख, चुकंदर, आइस क्रीम बनाएं। किताब के पन्ने से बताए गए पेज नंबर को खोज कर उसमें जो भी लिखा था, उसे पढ़ कर सुनाया। दर्शक दीर्घा से एक व्यक्ति ने 100 रुपये का नोट प्रदान किया जिसका नंबर पूछा और छात्रा ने उसका नंबर हूबहू बता दिया। एक अन्य छात्रा ने अपनी किताब पढ़ने को दी और बताए गए पेज नंबर के बाद गुरुकुल छात्रा श्रुति ने बंद आंखों में ही पढ़ना शुरू कर दिया।
दर्शक दीर्घा में बैठे एक सज्जन ने गुरुकुल कन्याओं के हुनर की पड़ताल करने के लिए अपना पेन दिया और बिना छुए बताने को कहा। उसमें थोड़ा समय लगा लेकिन छात्रा ने हाथ से छूने पर कलम में निहित अलग-अलग रंगों ने नाम बता दिए। इसके बाद उन्होंने आंख पर अपनी उंगलियां रखकर रंगों की पहचान कराई जिसमें छात्रा सफल रही। एक छोटी बच्ची अपना कलर लेकर आई थी। वह गुरुकुल कन्या में कक्षा नौवीं की छात्रा प्रीति के सामने बैठ गई और एक-एक कर अपना रंग देती रही। प्रीति रंगों की पहचान बताती गई।
स्वामी कर्मवीर ने बताया कि गुरुकुल शिक्षा पद्धति में लेखन कम और मनन ज्यादा होता है। वहां एकाग्रता बढ़ाने का अभ्यास किया जाता है। गुरुकुल में पढ़ रही कन्याओं को भगवत गीता सहित कई ग्रंथ जुबानी याद है। इसका एक मात्र कारण एकाग्रता है जो योग से आता है। उन्होंने कहा कि आंख बंद करके छात्राएं किताब पढ़ सकती हैं क्योंकि वह आंख नहीं बल्कि मन की आंखों से देखती हैं। उन्होंने बताया कि अंग्रेजी में 26 अक्षर याद होने के बाद ही हम पढ़ लिख सकते हैं। इसी तरह संस्कृत व्याकरण में कुल 4000 सूत्र हैं जिनका अध्ययन करने के बाद ही ग्रंथ याद होते हैं। अत्यधिक बुद्धिमान बच्चे संस्कृत के सभी सूत्र करीब तीन महीने से छह महीने में कंठस्त कर लेते हैं। बहुत से बच्चों को एक से दो साल तक भी लग जाते हैं। उन्होंने बताया कि गुरुकुलम में संस्कृत के साथ ही सभी आधुनिक विषय भी पढ़ाए जाते हैं। इस अवसर पर कार्यक्रम का शुभारंभ स्वामी कर्मवीर के साथ विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर संगीता शुक्ला व प्रति कुलपति प्रोफ़ेसर वाई. विमला ने किया।