पटना। भ्रष्टाचार और अपराध पर जीरो टालरेंस के कई उदाहरण बिहार में कुछ इस तरह के हैं कि मंत्री पद की कुर्सी हासिल करने के कुछ ही घंटे बाद तीन मंत्रियों को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। वैसे इनमें दो मंत्रियों पर बाद में केस खत्म हुआ और वे पुन: मंत्री बने। विधि मंत्री कार्तिकेय सिंह को शपथ लिए अभी एक दिन ही हुए हैं कि उन पर दर्ज एक मामले में अदालत से जारी वारंट प्रकरण ने तूल पकड़ लिया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से जब इस संबंध में पूछा गया तो उन्होंने साफ कहा कि इस बारे में उन्हें जानकारी नहीं थी। यह संकेत है कि अगर जानकारी रहती तो फिर…।
हालिया मामला 2020 का है। मेवालाल चौधरी को नीतीश कुमार की सरकार में शिक्षा मंत्री बनाए गए थे। उन पर यह आरोप था कि जिस समय वह बिहार एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के कुलपति थे उस समय नियुक्ति को लेकर कुछ गड़बड़ी की थी। उन दिनों तेजस्वी यादव नेता प्रतिपक्ष थे। इस मुद्दे को उन्होंने काफी जोरशोर से उठाया था। नीतीश कुमार के जीरो टालरेंस पर भी सवाल किए थे। आखिरकार मेवा लाल चौधरी को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। मेवा लाल चौधरी का निधन हो चुका है।
इसके पूर्व 2008 में नीतीश कुमार की सरकार में परिवहन मंत्री रहे आरएन सिंह को भी भ्रष्टाचार से जुड़े एक मामले में अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। इंजीनियर आरएन सिंह पर आरोप था कि जिस समय वह मुजफ्फरपुर के कांटी थर्मल पावर यूनिट में पदस्थापित थे उस समय उन्होंने थर्मल पावर यूिनट के लिए पाइप खरीददारी में गड़बड़ी की थी। तय क्वालिटी के पाइप नहीं खरीदे गए थे। इस मामले में निगरानी ब्यूरो ने 1990 में केस दर्ज किया था और एक वर्ष बाद चार्जशीट भी हो गया था। जब यह मामला सामने आया तो नीतीश कुमार ने परिवहन मंत्री का इस्तीफा ले लिया और कहा कि जब केस खत्म हो जाएगा तभी वह मंत्री बन सकेंगे। कुछ दिनों बाद उन पर केस खत्म हुआ और वह फिर से मंत्री बनाए गए।