नई दिल्ली। गेहूं आयात करने की कोई योजना नहीं है क्योंकि देश में घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए इसका पर्याप्त भंडार है। खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग ने रविवार को उस मीडिया रिपोर्ट को खारिज कर दिया जिसमें गेहूं का आयात किए जाने की आशंकाएं जताई गई थी। विभाग ने साफ किया कि देश में मुख्य खाद्यान्न यानी गेहूं का पर्याप्त स्टाक है। सरकार की गेहूं आयात करने की कोई योजना नहीं है।
खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग ने कहा कि देश की घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए गेहूं का पर्याप्त भंडार है इसलिए गेहूं आयात करने की कोई योजना नहीं है। गौर करने वाली बात है कि देश के गेहूं उत्पादक इलाकों में बारिश की बेरुखी और प्रचंड गर्मी ने गेहूं की फसल को प्रभावित किया था। लेकिन सरकार का कहना है कि एफसीआई के पास सार्वजनिक वितरण के लिए देश के मुख्य खाद्यान्न का पर्याप्त स्टॉक है इसलिए चिंता की कोई जरूरत नहीं है।
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के मुताबिक 2021-22 के दौरान 10.684 करोड़ टन गेहूं के उत्पादन का अनुमान है जबकि पूर्व में 11.1 करोड़ टन उत्पादन का अनुमान लगाया गया था। यानी अनुमान के लिहाज से गेहूं के उत्पादन में कमी आई है। बीते दिनों यह भी देखा गया कि रूस यूक्रेन युद्ध के चलते गेहूं के निर्यात को बढ़ावा मिला। नतीजतन स्थानीय मंडियों में गेहूं की कीमतों में भारी उछाल दर्ज किया गया। यही नहीं लू के कारण फसल खराब होने से भी कीमतों में तेजी देखी गई।
देख गया कि देश की बड़ी मंडियों में शुमार इंदौर की मंडी में गेहूं की कीमतें 2,400 से 2,500 रुपये प्रति क्विंटल पर जा पहुंचीं। गेहूं कि बढ़ी कीमतों के चलते किसान भी सरकारी मंडियों में जाने से कतराते नजर आए। इसकी मुख्य वजह यह भी थी की सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य के तहत गेहूं की कीमत 2,015 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित की थी। यह संयोग ही था कि किसानों को बाजार में गेहूं के एमएसपी से ज्यादा दाम मिल रहे थे।
सरकारी मंडियों से किसानों के मोहभंग और निर्यात में बढ़ोतरी के रुख को देखते हुए बाद में केंद्र सरकार को बड़ा कदम उठाना पड़ा। केंद्र सरकार ने समय रहते खाद्यान्न के निर्यात के संबंध में कई नीतिगत हस्तक्षेप किए जिसका असर भी बाजारों में साफ नजर आ रहा है। गेहूं की कीमतें अब स्थिर हो चली हैं। गौरतलब है कि भारत सरकार दुनिया का भारीभरकम सार्वजनिक खाद्यान्न वितरण कार्यक्रम चलाती है। जानकारों की मानें तो समय पर गेहूं निर्यात नीति में किए गए संशोधन के चलते ही खाद्यान्न की कीमतों पर काबू पाया जा सका है।