( के. पी. मलिक )
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)
किसी भी देश में एक निर्धारित समय के भीतर तैयार सभी वस्तुओं और सेवाओं के कुल मौद्रिक या बाजार मूल्य को सकल घरेलू उत्पाद यानि उसे जीडीपी कहते हैं। जीडीपी में वृद्धि होना किसी देश की आर्थिक मजबूती और वृद्धि का पैमाना होता है। और अगर जीडीपी खस्ताहाल हो यानि कमजोर हो, तो देश की आर्थिक कमजोरी यानि प्रति व्यक्ति आय में कमी का यह संकेत है। ज़ाहिर सी बात है कि जब किसी देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी, तो वहां बेरोजगारी और गरीबी कम होगी। लोग खुशहाल होंगे। बाजार में पैसा खर्च करेंगे। बाजार में पैसा आएगा, तो छोटे और बड़े व्यापारी अपने कारोबार को लेकर उत्साहित होंगे और उसमें निरंतर बढ़ोतरी के प्रयास जारी रखेंगे। लिहाज़ा कारोबार जगत काम को बढ़ाने के लिए और मांग को पूरा करने के लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों की भर्ती होगी और पहले से नौकरीपेशा लोगों का वेतन बढ़ेगा। वेतन बढ़ेगा तो वह अपने परिवार की सुख-सुविधाओं पर खर्च करेगा, तो बाज़ार में पैसे का लेनदेन बढ़ेगा। जब बाजार में पैसा बढ़ेगा, तो जाहिर तौर पर जीडीपी में वृद्धि होना तय है। ज़ाहिर है कि किसी देश के घरेलू उत्पादन का व्यापक माप का पैमाना होता है और इससे किसी देश की अर्थव्यवस्था की सेहत पता चलती है। दुनिया के कई बड़े देशों में इसकी गणना आमतौर पर सालाना होती है, लेकिन हिंदुस्तान में इसे हर तीन महीने यानी तिमाही भी आंका जाता है।
अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो वित्त वर्ष 2021-22 की चौथी तिमाही में हिंदुस्तान की आर्थिक वृद्धि दर महज 4.1 फीसदी रही, जो कि इस वित्त वर्ष की बाकी पिछली तीन तिमाहियों में सबसे कम रही थी। राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (एनएसओ) के मुताबिक, वित्त वर्ष 2021-22 की वास्तविक जीडीपी 147.36 लाख करोड़ रुपये थी, जबकि इससे भी पिछले साल यानि वित्त वर्ष यह 135.58 लाख करोड़ रुपये रही थी।हालांकि यह दोनों साल कोरोना महामारी की गिरफ्त में कटे। लेकिन इस साल जब सब कुछ ठीक-ठाक होना चाहिए था जो अभी तक ठीक नहीं हुआ है। त्योहारों का सीजन शुरू हो चुका है और बाजारों में कोई खास रौनक नहीं है। महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है। पिछले ढाई-तीन साल में महंगाई ढाई से तीन गुनी बढ़ चुकी है, जबकि आम आदमी की आमदनी बढ़ने के बजाय घटी है।
हालांकि एसबीआई के चीफ इकोनॉमिस्ट सौम्यकांति घोष ने अपने एक नोट में कहा कि वित्त वर्ष 2022-23 में वास्तविक जीडीपी वृद्धि 11.1 लाख करोड़ रुपये की होगी। यह चालू वित्त वर्ष में 7.5 प्रतिशत की वास्तविक जीडीपी वृद्धि को दर्शाता है, जो हमारे पिछले अनुमान से 0.20 प्रतिशत अधिक है। हालांकि उन्होंने कहा है कि हाई इंफ्लेशन और उसके बाद दरों में संभावित वृद्धि को देखते हुए यह उनका मत है। अर्थशास्त्रियों ने तो आर्थिक समीक्षा में इस वित्त वर्ष 2022-23 में हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था में 8 से 8.5 फीसदी की दर से ग्रोथ का अनुमान भी लगाया है। वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने हिंदुस्तान की आर्थिक वृद्धि दर के 9.2 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है।
लेकिन जीडीपी में यह वृद्धि दर कैसे रह सकती है, जब देश में चंद अरबपति सेठों की संख्या लगातार तेज़ी से बढ़ी है। ऐसे में यह क्यों नहीं कहा जा रहा है कि मजबूत जीडीपी यानि सकल घरेलू उत्पाद नहीं, बल्कि वो चंद लोग हुए हैं, जो मिलकर देश को दीमक की तरह चट कर रहे हैं। यह कमज़ोर होती अर्थव्यवस्था का दुखद संकेत है। आज जो किसान खेतों में कठिन परिश्रम करके देश की आवाम का पेट भरने के लिए अन्न उगा रहे हैं, देश की तरक्की के लिए जो पेशेवर कारीगर और मजदूर आधारभूत संरचना का निर्माण कर रहे हैं, मिलों और कारखानों में जो कामगार पसीना बहा रहे हैं, उन्हें अपने परिवार का भरण पोषण, बड़े बुजुर्गों के इलाज़ और उनकी दवा आदि करने, बच्चों के स्कूल की फीस भरने और दो जून की रोटी जुटाने की जद्दोजहद में कड़ा संघर्ष करना पड रहा है। इसके बावजूद भी उन्हें सामान्य जीवन जीना मुहाल हो रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि अमीर लोग गरीबों की मेहनत पर ऐश कर रहे हैं। इसलिए अमीर-गरीब के बीच बढ़ती खाई लगातार बढ़ती जा रही है, जो लोकतंत्र को खोखला करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रही है।
बहरहाल लगातार नौकरियों में कटौती, बढ़ती महंगाई और देश की आर्थिक वृद्धि दर में कमी होना, इन तीनों मोर्चों पर निराशा मिलने से लोगों की आर्थिक स्थिति पर इसका सीधा असर देखने को मिल रहा है। सकल घरेलू उत्पाद यानि जीडीपी गिरने से प्रति व्यक्ति की औसत आमदनी कम हो गई है। जिसमें कोरोना काल के मद्देनजर देश में लॉकडाउन के कारण भी गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों की संख्या बढी है। इसके अलावा जीडीपी में गिरावट से रोजगार दर में भी कमी दर्ज़ की गई है। दरअसल सरकार को इस अंतर को भी देखना होगा और यह भी देखना होगा कि किस-किस तबके के लोगों के पास आमदनी के संसाधनों की कमी है और किस-किस तबके के लोगों के साथ अन्याय हो रहा है। मेरे ख्याल से इसमें किसान, मजदूर, ग्रामीण कामगार, निजी क्षेत्र का निम्न-मध्य नौकरीपेशा और छोटा-मध्यम व्यापारी ही आएगा।