प्रयागराज : प्रयागराज में दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक समागम महाकुंभ 2025 में भाग लेने के लिए श्रद्धालुओं का त्रिवेणी संगम पर पहुंचना जारी है. न सिर्फ देश के कोने-कोने से बल्कि विदेश से भी श्रद्धालु डुबकी लगाने संगम पहुंच रहे हैं. इस बार के कुम्भ का धार्मिक महत्व तो अपार होने के साथ एक राजनीतिक प्रोगशाला का भी रूप बन चुका है भाजपा के लिए. कुम्भ के भव्य आयोजन के बीच राजनीतिक बयानों से ऐसा माहौल बन गया है कि कुम्भ का अच्छा भाजपा की जीत और विरोध विपक्ष का हौसला बढ़ाता दिख रहा है.
इस बीच उत्तर प्रदेश के अयोध्या जिले की मिल्कीपुर सीट पर उपचुनाव हो रहा है. हालांकि यह एक मात्र एक सीट का उपचुनाव है, लेकिन भविष्य की राजनीति के लिए यह बड़ा निर्धारक हो सकता है. इस चुनाव के परिणाम कई तरह के बड़े संकेत लेकर आएंगे, जो प्रमुख राजनीतिक ध्रुवों की दिशा तय करने में मुख्य भूमिका निभाएंगे.
लोकसभा चुनाव 2024 से पहले ऐसा लग रहा था कि NDA गठबंधन भारी अंतर से चुनाव में बढ़त पाएगा. यूपी में तो भारतीय जनता पार्टी का उत्साही नेतृत्व क्लीन स्वीप की बात कर रहा था. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खुद 400 पार का चुनाव के दौरान नारा दिया था. तमाम चुनावी सर्वे भी ऐसा ही दिखा रहे थे. लेकिन इन सबके बीच उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने PDA पेश किया. दावा तो उन्होंने भी सिर्फ एक सीट छोड़कर पूरा प्रदेश कब्जाने का किया था, लेकिन परिणाम में जब गठबंधन को 39 सीटें मिलीं, तो ऐसा लगा कि सरकार बना ली.
इस परिणाम के बाद अखिलेश यादव को 2027 में प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने के लिए PDA का अस्त्र मिल गया. इसके बाद भाजपा ने “बंटोगे तो कटोगे” का नारा दिया. और इसी तर्ज पर महाकुंभ को भी “एकता का कुंभ” स्लोगन में गढ़ने की कोशिश की गई. इसी कड़ी में जब 19 जनवरी को प्रधानमंत्री ने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ (Mann Ki Baat) की 118वीं कड़ी के माध्यम से देशवासियों को संबोधित किया, तो प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ को उन्होंने एकता और समता-समरसता का असाधारण संगम करार दिया.
पीएम मोगी ने कहा, “कुंभ में दक्षिण, पश्चिम और हर कोने से लोग आते हैं. कुंभ में गरीब और अमीर सब एक हो जाते हैं और सभी लोग संगम में डुबकी लगाते हैं. एक साथ भंडारे में प्रसाद ग्रहण करते हैं. तभी तो कुंभ एकता का महाकुंभ है. कुंभ का आयोजन हमें ये भी बताता है कैसे हमारी परंपराएं पूरे भारत को एक सूत्र में बांधती हैं.”
भाजपा ने PDA के जवाब में हिंदुत्व और एकता को ही अपनी ढाल और हथियार दोनों बना रखा है. अब यह हथियार 2027 में भाजपा के उत्तर प्रदेश में सत्ता के सुख को बरकरार रखने में कामयाब रहेगा या अखिलेश का PDA 10 साल के सत्ता की दूरी को खत्म करने में कामयाब होगा, ये देखने वाली बात होगी. इसके लिए अयोध्या की मिल्कीपुर विधान सभा का उपचुनाव सेमीफाइनल माना जा रहा है. 2024 में अयोध्या की विजय को देश में अखिलेश यादव ने PDA के मेडल के रूप में प्रचारित किया था और इस बार भी मिल्कीपुर सीट से बहुत उम्मीदें हैं. वहीं भाजपा ने भी प्रदेश से लेकर केंद्र के बड़े नेताओं को मिल्कीपुर में लगा दिया है.
मिल्कीपुर उपचुनाव के लिए 14 उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किया था. शनिवार को तकनीकी समस्याओं के कारण चार निर्दलीय उम्मीदवारों के नामांकन रद्द कर दिए गए. जबकि बीजेपी के प्रत्याशी चंद्रभानु पासवान और सपा के प्रत्याशी अजीत प्रसाद सहित कुल 10 उम्मीदवारों के नामांकन को वैध माना गया है.
आजाद समाज पार्टी के सूरज चौधरी की मिल्कीपुर उपचुनाव में एंट्री ने सपा और बीजेपी के लिए नई चुनौती खड़ी कर दी है. पहले समाजवादी पार्टी सांसद अवधेश प्रसाद के करीबी रहे सूरज चौधरी ने हाल ही में सपा छोड़कर 500 समर्थकों के साथ आजाद समाज पार्टी जॉइन की. इस कदम से सपा को नुकसान हो सकता है, क्योंकि अब निराश मतदाता आजाद समाज पार्टी को अपना समर्थन दे सकते हैं.
मिल्कीपुर में करीब 3.62 लाख वोटर हैं, जिनमें 1.60 लाख दलित वोटर हैं, जो चुनाव के नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं. 5 फरवरी को वोटिंग होगी और 8 फरवरी को रिजल्ट आएंगे. यह सीट सपा सांसद अवधेश प्रसाद के सांसद बनने के बाद खाली हुई थी, अब सपा ने उनके बेटे अजीत प्रसाद को उम्मीदवार बनाया है.
मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र में तीसरी बार उपचुनाव होने जा रहा है, जो 20 साल बाद 5 फरवरी को होगा. यह उपचुनाव 26 साल बाद सपा और भाजपा के बीच मुख्य मुकाबला बनकर सामने आ रहा है. मिल्कीपुर में पहले दो उपचुनाव 1998 और 2004 में हुए थे.
पहले उपचुनाव की बात करें, तो 1996 में समाजवादी पार्टी के मित्रसेन यादव मिल्कीपुर से विधायक चुने गए थे. 1998 में वह सपा से सांसद बन गए, जिसके बाद मिल्कीपुर विधानसभा सीट खाली हो गई और इस सीट पर पहला उपचुनाव हुआ. उस चुनाव में सपा के रामचंद्र यादव और भाजपा के पूर्व विधायक बृजभूषण त्रिपाठी ने अपनी किस्मत आजमाई थी.
मिल्कीपुर में दूसरा उपचुनाव 2004 में हुआ, जो पार्टी बदलने के कारण हुआ था. 2002 में सपा के आनंदसेन यादव विधायक बने, लेकिन 2004 में उनके पिता, मित्रसेन यादव, बसपा से सांसद चुने गए. इसके बाद आनंदसेन यादव ने सपा से इस्तीफा देकर बसपा की सदस्यता ग्रहण की, जिसके कारण मिल्कीपुर में यह उपचुनाव हुआ.
इस बार भी समाजवादी पार्टी ने रामचंद्र यादव को मैदान में उतारा, जबकि बसपा ने आनंदसेन यादव को अपना उम्मीदवार बनाया. दूसरे उपचुनाव में रामचंद्र यादव ने शानदार प्रदर्शन किया और उन्हें 89,116 वोट मिले, जबकि बसपा के आनंदसेन यादव को 54,098 वोट प्राप्त हुए. रामचंद्र यादव ने 35,018 मतों से जीत हासिल की, और इस चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी देवेंद्रमणि त्रिपाठी अपनी जमानत भी नहीं बचा सके.
इन चुनावों को हुए बहुत समय हो चुका है और तब से सरयू में बहुत पानी बह चुका है. इस बार का उपचुनाव अगर सपा जीती तो अखिलेश का PDA हथियार और अधिक अजय सिद्ध हो जाएगा और भाजपा को 2027 के लिए अपनी रणनीति पर पुनः विचार करने की आवश्यकता होगी. वहीं, अगर भाजपा को जीत मिलती है तो भाजपा का हिंदुत्व और एकता का संदेश और मजबूत होगा. अब ये तो 8 फरवरी को ही पता चलेगा कि किसका अस्त्र 2027 के लिए अचूक है और किसे अपने हथियार में धार देने की आवश्यकता है.