लखनऊ। बसपा सुप्रीमो मायावती से विधायकों ने बगावत तो कर ली, लेकिन अब वे खुद अपने ही जाल में ही फंस गये हैं। बसपा सुप्रीमो की कार्रवाई के बाद अब यह बागी विधायक चाहकर भी नयी पार्टी नहीं बना सकेंगे। ऐसा करने पर उनकी सदस्यता जा सकती है।

पिछले 2017 के विधानसभा नतीजों से लेकर अब तक बसपा से 11 विधायक अलग हो चुके हैं। इन सभी को मायावती ने पार्टी से बगावत के आरोपों में अलग अलग समय पर निकाल दिया। पहले उन्नाव के अनिल सिंह फिर हाथरस के रामवीर उपाध्याय। इसके बाद सबसे बड़ा निकाला मायावती ने पिछले साल किया जब असलम राइनी के साथ कुल 7 विधायकों को निकाल दिया। कुछ दिनों पहले रामअचल राजभर और लालजी वर्मा निकाले गये। यानी कुल 11 विधायक लेकिन, सभी विधायकों के निष्कासन के अलग मतलब हैं।

मायावती ने रामअचल राजभर और लालजी वर्मा को अलग तरीके से निकाला है जबकि बाकी 9 विधायकों को अलग तरीके से। इनके निष्कासन में ही मायावती ने बड़ा पैंतरा खेला है। राजभर और वर्मा को पार्टी से निकालने के साथ ही मायावती ने स्पीकर को भी इस बाबत पत्र भेज दिया। उनके पत्र पर कार्रवाई करते हुए स्पीकर ने भी राजभर और वर्मा को असम्बद्ध विधायक करार दे दिया। यानी वे विधायक तो हैं लेकिन, किसी पार्टी से उनका नाता अब नहीं है। इस स्थिति में ये दोनों स्वतंत्र रूप से किसी भी पार्टी में शामिल हो सकते हैं। इनपर दल-बदल निरोधक कानून नहीं लागू होगा।

इसके बाद बाकी बचे 9 विधायकों को मायावती ने पार्टी से तो निकाल दिया लेकिन, उनके निष्कासन की औपचारिक जानकारी स्पीकर को नहीं भेजी। यही वजह है कि पार्टी से निकाले जाने के बावजूद वे आज भी रिकार्ड में बसपा के विधायक हैं। ये न तो किसी पार्टी को ज्वाइन कर सकते हैं और ना ही कोई अलग पार्टी बना सकते हैं। ऐसा करने के लिए इन्हें दो तिहाई की टूट करनी पड़ेगी। दो तिहाई से कम संख्या होने पर दल-बदल निरोधक कानून के तहत उनकी विधायकी चली जायेगी।

राजभर और वर्मा की तरह ये कहीं भी जाने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं। बताया जाता है कि मौजूदा स्थिति में बसपा के 16 विधायक हैं। अलग पार्टी बनाने के लिए ये जरूरी है कि दो तिहाई संख्या यानी 11 विधायक टूटें। 11 विधायक तो हैं लेकिन, सभी एक साथ नहीं हैं। तीन बसपा विधायकों को भाजपा के करीब बताया जाता है। ऐसे में बसपा के बागी विधायकों का अलग पार्टी बनाने का मंसूबा पूरा होता नजर नहीं आ रहा है। केवल ये बागी विधायक तभी कामयाब हो सकते हैं जब अपनी विधायकी गंवाने का जोखिम ले सकें।