नई दिल्ली। भारत में कोरोना वायरस का कहर इस कदर बढ़ता जा रहा है कि अब अस्पतालों में मरीजों को बेड तक नहीं मिल पा रहे हैं। अभी जब एक दिन में कोरोना के तीन लाख से अधिक केस आ रहे हैं और 2000 से अधिक मौतें हो रही हैं, तब देश की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा सी गई है। चारों ओर ऑक्सीजन से लेकर बेड और दवाइयों के लिए हाहाकार मचा हुआ है। मगर अंदाजा लगाइए कि जब एक दिन में आठ लाख से अधिक केस मिलने लगेंगे और पांच हजार मौतें होंगी, तब देश की क्या हालत होगी। दरअसल, अमेरिकी स्टडी में इस बात का अनुमान लगाया गया है कि भारत में मई के मध्य में कोरोना अपने पीक पर होगा और इस दौरान हर दिन 5 हजार से अधिक मौतें होंगी।

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी स्टडी ने चेताया है कि कोरोना वायरस से होने वाली मौतों का आंकड़ा भारत में रोजाना मई के मध्य तक 5,600 पर पहुंच सकती है। इसका मतलब होगा कि अप्रैल से अगस्त के बीच देश में कोरोना वायरस की वजह से करीब तीन लाख लोग अपनी जान गंवा सकते हैं।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) के वैज्ञानिकों ने अपने गणितीय मॉडल के आधार पर अनुमान लगाया है कि भारत में कोरोना महामारी की दूसरी लहर 11 से 15 मई के बीच चरम पर होगी और उस समय देश में उपचाराधीन मरीजों की संख्या 33 से 35 लाख तक पहुंच सकती है और इसके बाद मई के अंत तक मामलों में तेजी से कमी आएगी।

आइआइटी कानपुर और हैदराबाद के वैज्ञानिकों ने एप्लाइड दस ससेक्टिबल, अनडिटेक्ड, टेस्टड (पॉजिटिव) ऐंड रिमूव एप्रोच (सूत्र) मॉडल के आधार पर अनुमान लगाया है कि मामलों में कमी आने से पहले मध्य मई तक उपचाराधीन मरीजों की संख्या में 10 लाख तक की वृद्धि हो सकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और तेलंगाना नए मामलों के संदर्भ में 25 से 30 अप्रैल के बीच नई ऊंचाई छू सकते हैं, जबकि महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ संभवत: पहले ही नए मामलों के संदर्भ में चरम पर पहुंच गए हैं।

आइआइटी कानपुर के कंप्यूटर साइंस विभाग में प्रोफेसर मनिंदर अग्रवाल ने बताया कि हमने पाया कि 11 से 15 मई के बीच उपचाराधीन मरीजों की संख्या में वृद्धि होने की तार्किक वजह है और यह 33 से 35 लाख हो सकती है। यह तेजी से होने वाली वृद्धि है, लेकिन उतनी तेजी से ही नए मामलों भी कमी आने की संभावना है व मई के अंत तक इसमें नाटकीय तरीके से कमी आएगी। वैज्ञानिकों ने अब तक इस अनुसंधान पत्र को प्रकाशित नहीं किया है और उनका कहना है कि सूत्र मॉडल में कई विशेष पहलू हैं, जबकि पूर्व के अध्ययनों में मरीजों को बिना लक्षण और संक्रमण में विभाजित किया गया था।

नए मॉडल में इस तथ्य का भी संज्ञान लिया गया है कि बिना लक्षण वाले मरीजों के एक हिस्से का पता संक्रमितों के संपर्क में आए लोगों की जांच या अन्य नियमों के द्वारा लगाया जा सकता है। इस महीने की शुरुआत में गणितीय मॉडल के माध्यम से अनुमान लगाया गया था कि देश में 15 अप्रैल तक संक्रमण की दर अपने चरम पर पहुंच जाएगी, लेकिन यह सत्य साबित नहीं हुई।

अग्रवाल ने कहा कि मौजूदा चरण के लिए हमारे मॉडल के मापदंड लगातार बदल रहे हैं, इसलिए एकदम सटीक आकलन मुश्किल है। यहां तक कि रोजाना के मामलों में मामूली बदलाव से चरम की संख्या में हजारों की वृद्धि कर सकते हैं। अग्रवाल ने बताया कि महामारी का पूर्वानुमान लगाने के लिए मॉडल में तीन मापदंडों का इस्तेमाल किया गया है। पहला बीटा या संपर्क, जिसकी गणना इस आधार पर की जाती है कि एक व्यक्ति ने कितने अन्य को संक्रमित किया। उन्होंने बताया कि दूसरा मापदंड है कि महामारी के प्रभाव क्षेत्र में कितनी आबादी आई, तीसरा मापदंड पुष्टि हुए और गैर पुष्टि हुए मामलों का संभावित अनुपात है।