बस्ती. वैसे तो लोकतंत्र में हर किसी को अपने मताधिकार का प्रयोग करने की आजादी है और सरकार द्वारा मतदान को पर्व के रुप में मनाए जाने के लिए प्रेरित भी किया जाता है. लेकिन बस्ती जनपद में एक ऐसी जगह है जहां पिछले 5 साल से लोग अपने मन पसन्द के पार्षद और प्रधान को चुनने के लिए तरस रहे हैं.
जहां पूरे प्रदेश में निकाय चुनाव की सरगर्मियां तेज हो गई हैं. वहीं बस्ती के नगर पंचायत भानपुर की जनता में उदासी छाई हुई है. कारण यहां की जनता एक बार फिर अपने स्थानीय लीडर को चुनने से वंचित रह जाएगी. मामला हाईकोर्ट में लम्बित रहने की वजह से कोई भी जिम्मेदार इस पर कुछ बोलने को तैयार नहीं है.
बस्ती जनपद के भानपुर को वर्ष 2019 में नगर पंचायत का दर्जा मिल गया था. जिसमें कुल 14 वार्ड बनाए गए थे बाद में कोठिला ग्राम पंचायत को भी नगर पंचायत में शामिल कर लिया गया था. जिस पर कोठिला के मौजूदा प्रधान गंगाराम ने अपत्ति दर्ज कर मामले में हाईकोर्ट चले गए थे. बाद हाईकोर्ट ने मामले में स्थगन का आदेश दे दिया था. तब से यहां पर न तो प्रधानी का चुनाव हो सका है और न ही पार्षदी का.
आपको बता दें कि जुलाई 2022 में एक बार फिर से इस नगर पंचायत के गठन का कार्य शुरू हुआ था. जिसमें कोठिला ग्राम पंचायत को भी शामिल कर लिया गया था. जैसे ही इसकी जानकारी वहां के प्रधान गंगाराम को हुई तो वह फिर कोर्ट चला गया और प्रमुख सचिव के खिलाफ़ न्यायालय के स्थगन आदेश की अवहेलना का वाद दायर किया. जिसको कंसीडर करते हुए हाईकोर्ट ने नाराजगी जताते हुए प्रमुख सचिव को अदालत में तलब कर लिया. तभी से यह पुरी प्रक्रिया अधर में लटकी पड़ी है और शासन भी इस पर कन्नी काट चुका है.
स्थानीय एवम् पूर्व प्रधान विनोद कुमार पाण्डेय ने बताया कि प्रधान और सभासद निर्वाचित न होने के वजह से 27 हज़ार की आबादी विकास को तरस रही है और सबसे बुरा हाल तो कोठिला ग्राम पंचायत का है. जो अब न तो नगर पंचायत में है और न ही ग्राम पंचायत में, लिहाजा यहां पर एक साल से कोई भी विकास कार्य नहीं हो सका है.
दूसरे स्थानीय राम व्रत पाठक ने बताया कि नगर पंचायत गठन के बाद से यहां पर ईओ प्रशासक के तौर पर कार्य कर रहा है. जिसका आम जन मानस से कोई सरोकार नहीं है. उनका जहा जो मन करता है वो उसी हिसाब से काम करते हैं. स्थानीय अपनी समस्याओ को लेकर जाते हैं. लेकिन उनका निराकरण नहीं हो पाता है.