नई दिल्ली: अभी सिर्फ चार साल पहले की बात है। चंद्रयान-2 की नाकामयाबी से निराश उस वक्त के इसरो प्रमुख के सिवन मारे दुख के बिलख कर रो रहे थे। उस वक्त उनको गले लगाकर दिलासा देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक तस्वीर काफी वायरल हुई थी। बुधवार की शाम जब चंद्रयान तीन ने विक्रम लैंडर को चांद की सतह पर सफलतापूर्वक लैंड करा दिया तो देश खुशी से झूम उठा। सिर्फ चार साल में इसरो ने नाकामयाबी की धूल को झाड़ते हुए भारतीय वैज्ञानिकों के परचम को सारी दुनिया में फहरा दिया। चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरकर दुनिया में पहली बार इस कामयाबी को हासिल किया। इस वैज्ञानिक कामयाबी में आम लोगों के लिए भी कुछ बड़े संदेश छिपे हैं। ऐसे संदेश जो इम्तहान में फेल होने वालों, कारोबार में नुकसान होने और नौकरी चले जाने वालों को टूटने और निराश होने से बचा सकते हैं।

पिछली बार हर स्तर पर कामयाब रहने के बाद भी आखिरी के 15 मिनट में चंद्रयान ने अपना संतुलन खो दिया था। इसरो ने उन सारे कारणों को ठीक से समझा। गति को कैसे कम करना है, डिजाइन में कैसे बदलाव करने हैं, चंद्रयान के पांवों को कितना और मजबूत करना है, उन पर पूरा शोध किया गया। सारी कमियों को दुरुस्त करने के बाद चार साल में फिर से मिशन लांच किया गया। आम जिंदगी के किसी भी हिस्से में फेल होने पर अपनी कमियों पर ऐसे ही काम करके उन्हें दुरुस्त किया जाना चाहिए।

पिछली बार चंद्रयान में पांच इंजन रखे गए थे। इस बार इनकी संख्या चार ही रखी गई। पिछली असफलता की कमियों पर अध्ययन के दौरान यह पाया गया कि ज्यादा इंजन होने की वजह से उन सभी में आपसी तालमेल नहीं बन पा रहा था। इसलिए इस बार वैज्ञानिकों ने एक इंजन को कम कर दिया। इसके बावजूद इस बार मिशन कामयाब रहा क्योंकि जो इंजन थे, उनमें तालमेल बेहतर था। आम जिंदगी में भी बाहर से उतना ही सपोर्ट लेना चाहिए जितने की वाकई जरूरत हो। ज्यादा जोगी मठ उजाड़ की स्थिति नहीं बनानी चाहिए।