नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावोंपर सबकी नजर है और ऐसा माना रहा है कि इन चुनावों के नतीजों से 2024 के आम चुनावों की तस्वीर साफ होगी. लेकिन अब तक का इतिहास यह बताता है कि राज्यों के चुनाव परिणाम देश के मिजाज को भांपने के विश्वसनीय माध्यम नहीं है. लेकिन फिर भी यूपी के चुनावी नतीजे कुछ सवालों के जवाब अच्छे से दे सकते हैं. क्या योगी आदित्यनाथ नरेंद्र मोदी के उत्तराधिकारी होंगे? अगर हां, तो क्या नरेंद्र मोदी 75 वर्ष की आयु में रिटायरमेंट लेंगे? क्या अखिलेश यादव विपक्ष के राष्ट्रीय गठबंधन का नेतृत्व कर सकते हैं? क्या यह मायावती का अंतिम चुनाव होगा? कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर प्रियंका गांधी वाड्रा की दावेदारी की संभावना बढ़ेगी? और क्या विकास के साथ-साथ हिन्दू राष्ट्रवाद की रणनीति अब भी प्रभावी रहेगी?

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने यूपी विधानसभा 2022 से लेकर लोकसभा चुनाव 2024 को लिंक करते हुए कहा कि, अगर आप 2024 में पीएम मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं तो योगी आदित्यनाथ को 2022 में उत्तर प्रदेश में दोबारा सीएम बनाना होगा. देखा जाए तो, गृह मंत्री अमित शाह ने मोदी के नाम पर योगी के लिए वोट मांगे, लेकिन यह साफ कर दिया है कि मोदी की सत्ता में दोबारा वापसी के लिए योगी का चुना जाना जरूरी है.

फिलहाल नरेंद्र मोदी मास लीडर हैं और पूरे देश में उनकी लोकप्रियता है लेकिन उनके रिटायरमेंट के बाद उत्तराधिकारी कौन होगा. हालांकि इसके लिए अमित शाह ने खुद को साबित किया है और दूसरे नंबर पर रहने में सक्षम हैं. हालांकि उनकी ब्रांडिंग फिलहाल सुप्रीम लीडर के तौर पर नहीं है. तमाम बीजेपी नेताओं के लिए इस बात का आकलन करना मुश्किल है कि मोदी के बाद उनका उत्तराधिकारी कौन होगा, लेकिन पार्टी सूत्रों का कहना है कि नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत इच्छा यह है कि उनका उत्तराधिकारी एक बेहतर स्वयंसेवक होगा.

योगी आदित्यनाथ ने स्वयं को मोदी की छवि के तौर पर स्थापित करने की कोशिश की है. इनमें विकास पुरुष और हिन्दू ह्रदय सम्राट जैसे फैक्टर शामिल हैं. इसके अलावा उनके अंदर मोदी की तरह चुनावों में ध्रुवीकरण की राजनीति की बेहतर समझ है. यदि मोदी-योगी की जोड़ी से उत्तर प्रदेश में जीत मिलती है तो, यूपी का सीएम प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे बड़ा दावेदार होगा. हालांकि यह भी हो सकता है कि 2024 के आम चुनाव मोदी और योगी के नेतृत्व में लड़े जाएं. क्योंकि उत्तर में योगी का नियंत्रण एक राजा की तरह होगा.

मोदी के उत्तराधिकारी के तौर पर योगी की दावेदारी पार्टी के अंदर भी निर्भर रहेगी. हालांकि उन्हें आरएसएस और बीजेपी का पूरा समर्थन है. योगी आदित्यनाथ को एक बेहतर प्रशासक के तौर पर भी जाना जाता है और उन्होंने लखीमपुर खीरी मामले को जिस तरह से संभाला, उसे लेकर उनकी काफी तारीफ की गई है. नवंबर 2021 में हुई बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में योगी आदित्यनाथ ने राजनीतिक प्रस्ताव पेश किया. कोविड-19 को लेकर पार्टी के अंदर उन्हें आलोचना का शिकार होना पड़ा और उनके नेतृत्व पर सवाल उठाए गए लेकिन उन्होंने उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के साथ अपने मतभेदों को दूर किया.

वहीं दूसरी ओर, कुछ लोग मानते हैं कि हिन्दुत्व को लेकर योगी आदित्यनाथ का नजरिया बेहद आक्रामक है और इससे इस बात का डर है कि भारत में भगवाकरण की राजनीति को लेकर वैश्विक स्तर पर एक गलत संदेश जाएगा. इसके अलावा उन्हें ठाकुरवादी भी कहा जाता है जो ब्राह्मणों से नाराजगी का कारण बनता है.

उधर उत्तर प्रदेश में कोरोना महामारी, किसान आंदोलन, महंगाई व बेरोजगारी के मुद्दे पर अखिलेश यादव विधानसभा चुनावों में योगी सरकार को घेर सकते हैं. यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने अपना चुनावी प्रचार अभियान देर से शुरू किया, लेकिन तब तक उन्होंने जीत के लिए एक विश्वसनीय योजना तैयार की, जिसमें रणनीतिक गठबंधन, जीत की संभावनाओं को लेकर उम्मीदवारों का चयन, अति पिछड़ा वर्ग को लुभाने की कोशिश और आरक्षित सीटों पर ध्यान केंद्रित किया है.

अगर अखिलेश यादव अपनी योजना में कामयाब हो जाते हैं तो विपक्षी पार्टियां उनके साथ आ सकती हैं. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ भी अखिलेश यादव बेहतर तालमेल रखते हैं और दोनों ने नेतृत्व को लेकर कांग्रेस की भूमिका को नकारा है. जबकि पश्चिम में एनसीपी और शिवसेना, तो दक्षिण में डीएमके प्रमुख क्षेत्रीय दल के तौर पर स्थापित हैं. ऐसे में अखिलेश यादव खुद को आगे बढ़ाते हुए राहुल गांधी की तुलना में स्वयं को एक राष्ट्रीय नेता के तौर पर स्थापित कर सकते हैं.

वहीं उत्तर प्रदेश चुनावों में प्रियंका गांधी वाड्रा की अपनी कहानी है. उन्होंने चुनावी प्रचार की शुरुआत करते हुए उन विधानसभा क्षेत्रों को टारगेट किया है, जहां अन्य पार्टियों का कब्जा है. उनकी नजर खासकर महिला वोटर्स पर हैं. कास्ट, क्लास और कम्युनिटी से आगे बढ़कर उन्होंने महिला मतदाताओं पर ज्यादा फोकस किया है.

यूपी में पहली बार कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों के लिए धमाकेदार कैंपेन की शुरुआत की है. यहां प्रियंका वाड्रा गांधी सरनेम के सहारे जी तोड़ मेहनत कर रही हैं. अगर उत्तर प्रदेश में प्रियंका की मेहनत रंग लाती है तो राष्ट्रीय राजनीति में उनका कद बढ़ेगा और पार्टी के अध्यक्ष के तौर पर उनकी दावेदारी भी मजूबत होगी.

आखिरी में नंबर आता है बहुजन समाज पार्टी का, जो कि आतंरिक संकट से गुजर रही है. हालांकि मायावती ने लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी की तुलना में अधिक सीटें जीती थीं, हालांकि इसके बाद से उनकी पार्टी मुश्किलों के दौर से गुजर रही है. क्या बहुजन समाज पार्टी किसी नये नेता या भतीजे के नेतृत्व में अपने अस्तित्व को बचाए रखने में कामयाब रहेगी? यह सिर्फ यूपी चुनावों के नतीजों के बाद ही साफ होगा.

बड़ा सवाल है कि क्या मंडल पार्टियां (पिछड़ों की राजनीति करने वाले दल) धर्म और राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों के खिलाफ जाकर जीत हासिल करेंगी. अगली पीढ़ी के नेता अखिलेश यादव ने बीजेपी के ओबीसी सक्सेस प्लान से काफी कुछ सीखा है. यदि बिहार की तरह समाजवादी पार्टी यूपी में भी सामाजिक गठबंधन (अल्पसंख्यक के साथ यादव) की रणनीति पर काम करने की कोशिश करती है. यदि इसके बाद भी योगी आदित्यनाथ की जीत होती है तो उन्हें अपनी रणनीति पर फिर से विचार करना होगा.

चुनाव विश्लेषक प्रशांत किशोर ने हाल ही में कहा कि 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव सत्ता का सेमीफाइनल नहीं है. लेकिन चुनावी पटकथा और रणनीति के लिहाज से इसका असर 2024 के लोकसभा चुनावों पर पड़ेगा.