नई दिल्ली. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि देव को न्याय के देवता और कर्म फलदाता के नाम से जाना जाता है. कहते हैं कि शनि देव की टेढ़ी दृष्टि जिस भी व्यक्ति पर पड़ती है, उसे कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इतना ही नहीं, व्यक्ति का जीवन समस्याओं से घिरा रहता है.वैदिक ज्योतिष में शनि को क्रूर ग्रह माना गया है. कहते हैं कि शनि देव व्यक्ति के कर्मों के अनुसार ही फल प्रदान करते हैं.
अच्छे क्रर्म करने वाले लोगों को शनि की शुभ दृष्टि तो बुरे कर्म करने वाले व्यक्ति को अशुभ दृष्टि की प्राप्ति होती है. जिन जातकों की कुंडली में शनि की साढ़े साती या ढैय्या चल रही है, उनके जीवन में अस्थिरता बनी रहती है. ऐसे में शनि देव को प्रसन्न करने से साढ़े साती और ढैय्या के प्रभावों में कमी आती है. व्यक्ति को परेशानियों से राहत मिलती है. ऐसे में शनि की कुदृष्टि से बचने के लिए ज्योतिष शास्त्र में कुछ उपायों के बारे में बताया गया है.
ज्योतिष शास्त्र में कहा गया है कि जिन जातकों के ऊपर शनि देव की कुदृष्टि पड़ती है, उन्हें जीवन में कई तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ता है. व्यक्ति के करियर से लेकर उनकी स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां भी बढ़ने लगती हैं. व्यक्ति के कार्य में कई तरह की बाधाएं आती हैं. कार्य बिगड़ते जाते हैं.
बता दें कि इस समय मकर, कुंभ और मीन राशि के जातक शनि की साढ़े साती से गुजर रहे हैं. वहीं, कर्क और वृश्चिक राशि के जातकों पर इस समय शनि की ढैय्या चल रही है. ऐसे में शनि के दुष्प्रभावों से बचने के लिए इन जातकों को शनि देव की विशेष पूर्जा अर्जना करनी चाहिए.
ज्योतिष शास्त्र में शनि देव को प्रसन्न करने के लिए कई उपायों के बारे में बताया गया है. इनमें से एक शनि कवच स्त्रोत भी शामिल है. मान्यता है कि अगर नियमित रूप से इसका पाठ किया जाए, तो व्यक्ति को विशेष लाभ होता है. जिन लोगों की कुंडली में शनि देव पीड़ा दे रहे हों, उन्हें शनि कवच स्त्रोत का पाठ नियमित रूप से करने की सलाह दी जाती है. मान्यता है कि इससे साढ़े साती का प्रभाव कम हो जाता है और व्यक्ति के जीवन में समस्त दुखों का नाश होता है.