नई दिल्ली! भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका की यात्रा पर हैं. अपने दौरे में वो संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करेंगे मगर उससे पहले वो अमेरिका और कुछ और देशों के राष्ट्राध्यक्षों तथा कंपनियों के प्रमुखों से भी मिलेंगे.
नरेंद्र मोदी के इस दौरे को लेकर सोशल मीडिया पर दिलचस्प चर्चा देखने को मिली. कोविड संक्रमण से बचाव के लिए उन्होंने पूर्ण रूप से भारत में बनी कोवैक्सीन का टीका लगवाया है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने अभी तक कोवैक्सीन को मान्यता नहीं दी है. अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने भी इसे मान्यता नहीं दी है.
इसकी वजह से हज़ारों भारतीय कोवैक्सीन की दोनों डोज़ लेने के बाद भी विदेश नहीं जा पा रहे हैं. लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अमेरिका जाने की अनुमति कैसे मिल गयी, इसे लेकर सोशल मीडिया में ढेरों सवाल पूछे जा रहे हैं.
नरेंद्र मोदी ने एक मार्च को नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में कोरोना वैक्सीन की पहली खुराक ली थी.
तब उन्हें टीका के वीडियो में और उन्हें टीका लगाने वाली नर्सों ने बताया था कि प्रधानमंत्री मोदी ने पूरी तरह से भारतीय और भारत बायोटेक की बनाई कोवैक्सीन की डोज ली थी. इसके बाद अप्रैल महीने में उन्होंने इस वैक्सीन की दूसरी डोज़ ली थी.
भारतीय प्रधानमंत्री ने जो कोरोना वैक्सीन लगवाई है, उसकी मान्यता न होने के चलते उनकी विदेश यात्रा को लेकर लोग सवाल पूछ रहे हैं.
मशहूर रियलिटी टीवी शो इंडियन आयडल के निर्माता निखिल अल्वा ने ट्वीट करके पूछा है कि नरेंद्र मोदी ने कौन सी वैक्सीन लगवाई है?
उन्होंने ट्वीट किया, “पीएम की तरह मैंने भी ‘आत्मनिर्भर’ कोवैक्सीन लगवाई थी. ईरान और नेपाल और कुछ गिनती के देशों को छोड़ दें, तो मैं किसी और देश की यात्रा नहीं कर सकता. मैं यह सुनकर हैरान था कि प्रधानमंत्री अमेरिका की यात्रा कर रहे हैं, जहाँ कोवैक्सीन की मान्यता तक नहीं है. इसलिए उन्होंने वास्तव में कौन-सी वैक्सीन ली थी?”
कांग्रेस पार्टी के सोशल मीडिया कार्डिनेटर विनय कुमार ढोकनिया ने भी सवाल उठाया है कि कोवैक्सीन लगवाने वाले मोदी जी अमेरिका कैसे गए? उन्होंने निखिल अल्वा के ट्वीट में ही लिखा, “प्रधानमंत्री को अमेरिका जाने की अनुमति कैसे मिली? वह भी तब जब उन्होंने जो कोवैक्सीन लगवाई है, जो कि अमेरिका में मान्य नहीं है.”
राजनीतिक पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी ने भी ट्वीट किया कि ‘कोवैक्सीन को अमेरिका में मान्यता नहीं है. ऐसे में भारत के प्रधानमंत्री मोदी को अमेरिका जाने की अनुमति कैसे मिली?’
इस सवाल के जवाब में अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार शैलेंद्र देवलांकर ने बताया, “वैक्सीन का मामला केवल भारत से जुड़ा नहीं है. यह दुनिया के तमाम देशों से जुड़ा है. हर देश के पास तो वह वैक्सीन उपलब्ध नहीं हो सकती, जिसे अमेरिका में मान्यता है. ऐसे में प्रावधानों में रियायत दी जाती है.”
भारतीय प्रधानमंत्री अमेरिकी दौरे पर शनिवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76वें सत्र को संबोधित करेंगे. इसमें दुनिया भर के 193 देशों के शासन प्रमुख शामिल होंगे.
शैलेंद्र देवलांकर कहते हैं, “जब भी विदेशी संबंधों वाले दौरे होते हैं, राजनयिकों को विशेष रियायत दी जाती है. इसी तरह की रियायत इस बार भी मिली होगी.”
बीबीसी मराठी से बात करते हुए कई देशों में भारत के राजदूत रहे अनिल त्रिगुणायत ने बताया, “कोरोना संकट का समय हर किसी के लिए नया अनुभव है. राजनीतिक संवाद के लिए मेज़बान देश नियमों में रियायत दे सकता है. यह संयुक्त राष्ट्र की बैठक के लिए भी संभव है.”
मुंबई की नीता परब (बदला हुआ नाम) को अमेरिका की वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी से उच्च शिक्षा हासिल करनी है. उन्हें कोर्स भी मिल गया था. लेकिन उन्होंने कोवैक्सीन की दोनों डोज़ ले ली थी.
उन्होंने बताया, “मुझे कोवैक्सीन की डोज़ मिली थी. इस वैक्सीन को न तो विश्व स्वास्थ्य संगठन की मान्यता है और न ही अमेरिकी सरकार की. हमेशा यही चिंता बनी हुई है कि इस वैक्सीन को क्या अमेरिका में अनुमति मिलेगी?”
सोमवार को व्हाइट हाउस ने कहा कि नवंबर से भारत सहित दुनिया के 33 देशों के उन लोगों को अमेरिका आने की अनुमति होगी, जो वैक्सीन की दोनो डोज़ ले चुके होंगे.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, सोमवार को व्हाइट हाउस ने कहा है कि नवंबर महीने से भारत सहित दुनिया के 33 देशों के उन लोगों को अमेरिका आने की अनुमति होगी, जो वैक्सीन की दोनों डोज़ ले चुके होंगे.
कोरोना संक्रमण के बाद अमेरिका ने दूसरे देशों से अमेरिका आने पर रोक लगा दी थी. हालांकि आपातकालीन परिस्थितियों में अमेरिका अपने यहां लोगों को आने के लिए वीज़ा प्रदान कर रहा था.
मौजूदा समय में विदेश से अमेरिका आने वाले लोगों को यात्रा से तीन दिन के भीतर की कोरोना निगेटिव रिपोर्ट दिखानी होती है. इसके अलावा, 90 दिनों के अंदर कोरोना से ठीक होने का प्रमाण-पत्र देना होता है. अमेरिकी सरकार के मुताबिक, हर यात्री को अलग-अलग मामले के तौर पर देखती है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, कोवैक्सीन के निर्माताओं ने वैक्सीन की मान्यता के लिए आवेदन दिया है, लेकिन अभी उन्हें कई जानकारियां मुहैया करानी है.
कोवैक्सीन को कब तक अनुमति मिलेगी? इस बारे में जून में पूछे गए एक सवाल के जवाब में विश्व स्वास्थ्य संगठन की चीफ़ साइंटिस्ट डॉक्टर सौम्या स्वामीनाथन ने कहा था, “भारत बायोटेक से बातचीत चल रही है. वैक्सीन की मान्यता के लिए तीसरे चरण के ट्रायल के नतीजे और वैक्सीन उत्पादन से जुड़ी जानकारियाँ जमा करानी होती है.”
विशेषज्ञों के मुताबिक विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोवैक्सीन के निर्माताओं से क्लिनिकल ट्रायल संबंधित जानकारी को पूरा करने को कहा है.
17 सितंबर को भारत बायोटेक ने बताया है कि आपातकालीन परस्थिति में वैक्सीन के उपयोग को मंजूरी देने के लिए सभी क्लीनिकल ट्रायल के आंकड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन को सौंप दिया गया है.
कंपनी ने ये भी दावा किया कि ”विश्व स्वास्थ्य संगठन के सवालों के जवाब दे दिए गए हैं. अब उनकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार है, लेकिन हमारी वैक्सीन को कब तक अनुमति मिल पाएगी, इसका अनुमान लगाना उचित नहीं होगा.