नई दिल्ली. क्या आपको पता है कि भारत में सांसदों, पूर्व सांसदों और विधायकों को ट्रेनों में मुफ्त सफर की सुविधा मिलती है. उनके टेलिफोन और मोबाइल फोन का बिल सरकारों द्वारा भरा जाता है. उन्हें दफ्तर खर्च के लिए सरकारों द्वारा पैसा दिया जाता है. गाड़ी में पेट्रोल और डीजल भरवाने के लिए भी सरकारें ही पैसा देती हैं. उनके मुफ्त हवाई सफर का खर्च भी सरकारों द्वारा ही उठाया जाता है. इसके अलावा उन्हें सरकारें वेतन देती है और पूर्व सांसदों और विधायकों को पेंशन दी जाती है.

उन्हें रहने के लिए सरकारी बंगला दिया जाता है. सरकारी गाड़ी दी जाती है और दूसरी सुख सुविधाएं भी हमारी सरकारों द्वारा इन नेताओं को दी जाती हैं. अब सोचिए, सरकार जो इतना पैसा इन नेताओं पर खर्च करती है, वो पैसा आता कहां से है? वो पैसा आप देते हैं. आप टैक्स के रूप में सरकार को देश चलाने के लिए पैसा देते हैं. ये पैसा अलग अलग रूप में खर्च किया जाता है और इसका एक हिस्सा हमारे देश के जनप्रतिनिधियों को भी मिलता है.

लोकतंत्र में जनता को सर्वोच्च माना गया है. लेकिन फिर ऐसा क्यों है कि सांसदों और विधायकों को तो ट्रेनों में मुफ्त सफर की सुविधा दी जाती है लेकिन आम लोगों से कहा जाता है कि सरकार उन्हें किराए में छूट भी नहीं दे सकती. भारतीय रेलवे ने एक बड़ा फैसला लिया है, जिसके तहत बुजुर्गों और खिलाड़ियों को रेल किराए में मिलने वाली छूट को अब हमेशा के लिए बन्द कर दिया गया है. इससे पहले इस रियायत को कोरोना काल में बंद कर दिया गया था लेकिन अब रेल मंत्रालय ने कहा है कि देश में वरिष्ठ नागरिकों के लिए टिकट पर मिलने वाली छूट को दोबारा बहाल नहीं किया जाएगा. इस पर रेल मंत्रालय ने कुछ आंकड़े बताए हैं कि कैसे बुज़ुर्गों और खिलाड़ियों को किराए में छूट देने से उसे नुकसान हो रहा था.

कोरोना काल से पहले 60 साल से ऊपर के पुरुषों को एक टिकट पर 40 प्रतिशत की छूट मिलती थी. जबकि 58 साल से ऊपर की महिलाओं को टिकट पर 50 प्रतिशत की छूट दी जाती थी. यानी अगर किसी बुज़ुर्ग ने 100 रुपये का टिकट खरीदा है तो 40 प्रतिशत छूट के बाद उसे ये टिकट 60 रुपये का पड़ता था. जबकि महिलाओं को यही टिकट छूट के बाद 50 रुपये में मिल जाता था. लेकिन मार्च 2020 में इस छूट को कुछ समय के लिए बंद कर दिया गया. रेल मंत्रालय का कहना है कि इससे उसे 1500 करोड़ रुपये की बचत हुई.

मार्च 2020 से 31 मार्च 2022 के बीच कुल 7 करोड़ 31 लाख बुज़ुर्गों ने ट्रेनों में सफर किया. इस दौरान उन्हें टिकट पर कोई छूट नहीं दी गई. जिससे रेलवे को कुल 3 हजार 464 करोड़ रुपये की कमाई हुई. यानी इस डिस्काउंट को समाप्त करने से रेलवे ने 1500 करोड़ रुपये अतिरिक्त कमाए. यही वजह है कि रेल मंत्रालय ने अब तय किया है कि बुज़ुर्गों को रेल किराए में रियायत नहीं देगी.

रेल मंत्रालय का कहना है कि इस फैसले से उसकी कमाई बढ़ेगी और ये पैसा दूसरी सुविधाओं और Infrastructure पर खर्च किया जा सकेगा. ये अच्छी बात है और हम भी इस बात का स्वागत करते हैं. रेलवे के मुताबिक इस डिस्काउंट की वजह से उसे हर साल औसतन 1500 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा था. 2017-18 में एक हजार 491 करोड़ का नुकसान हुआ. 2018-19 में 1 हज़ार 636 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ और 2019-20 में 1 हजार 667 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. यानी इस हिसाब से देखें तो रेलवे ने कोई गलत फैसला नहीं लिया है.

यहां सवाल ये है कि अगर सरकार बुज़ुर्गों को रेल किराए में छूट नहीं दे सकती तो वो सांसदों को मिलने वाली उस सुविधा को भी क्यों खत्म नहीं कर देती, जिसके तहत मौजूदा सांसद, उनका परिवार और कुछ शर्तों के तहत उनके रिश्तेदार AC First Class में मुफ्त सफर कर सकते हैं. इसके अलावा सरकार पूर्व सांसदों को भी ट्रेनों में मुफ्त सफर की सुविधा देती है. अगर कोई पूर्व सांसद ट्रेन में अकेला सफर कर रहा है तो उसे ट्रेन के AC First Class कोच में बैठाया जाता है. और इसका पूरा खर्च सरकार ही उठाती है. कुछ आंकड़े आपको बताते हैं.

हाल ही में एक RTI के ज़रिए पता चला था कि पिछले पांच वर्षों में भारत सरकार ने सांसदों और पूर्व सांसदों के ट्रेनों में मुफ्त सफर करने पर 62 करोड़ रुपये खर्च किए थे. 2021-22 में 3 करोड़ 99 लाख रुपये खर्च हुए, 2020-21 में 2 करोड़ 47 लाख रुपये खर्च किए, 2019-20 में 16 करोड़ 40 लाख रुपये खर्च किए, 2018-19 में 19 करोड़ 75 लाख रुपये खर्च किए और 2017-18 में 19 करोड़ 34 लाख रुपये खर्च किए. यानी सांसदों और पूर्व सांसदों ने ट्रेनों में मुफ्त सफर किया और इसका सारा खर्च सरकार ने उठाया.

नेताओं को ट्रेनों में मुफ्त सफर की ये सुविधाएं कई दशकों से मिली आ रही हैं. ऐसा नहीं है कि मौजूदा सरकार ने इस व्यवस्था की शुरुआत की है. लेकिन आज जब बुजुर्गों को रेल किराए में मिलने वाली छूट समाप्त की गई है, तब ये भी सोचना जरूरी है कि सरकार जनप्रतिनिधियों को मिलने वाली मुफ्त ट्रेन यात्रा की सुविधा खत्म क्यों नहीं कर देती?