नई दिल्ली : 23 अगस्त को शाम को भारत का चंद्रयान-3 पर लैंडिंग की तैयारी में था। बेंगलुरू के इसरो स्थित कमांड सेंटर से लेकर देशभर में दुआओं का दौर चल रहा था। इसरो सेंटर में वैज्ञानिकों की धड़कनें बढ़ी हुई थीं। जैसे-जैसे घड़ी की सुईयां 6 बजने के करीब पहुंच रही थी लोगों की धुकधुकी बढ़ती जा रही थी। आखिरकार शाम 6.04 मिनट पर चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम ने चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग कर इतिहास रच दिया। इसरो जब चंद्रमा पर इतिहास रच दिया तो ऐसे समय में एक शख्स को याद करना जरूरी हो जाता है। ये वो शख्स है जो भारत के अंतरिक्ष में कामयाबी का जिंदा प्रतीक है। ऐसे में सवाल है कि आखिर वो शख्स कहां है जो भारत की तरफ से अंतरिक्ष में पहुंचे थे।

जब भी भारत और अंतरिक्ष की बात होती है तो एक चेहरा निर्विवाद रूप से सामने आता है। राकेश शर्मा वो शख्स हैं जिन्होंने भारत की तरफ से पहली बार अंतरिक्ष में पहुंचे थे। राकेश शर्मा ने अंतरिक्ष में 7 दिन 21 घंटा और 40 मिनट बिताए थे। उन्होंने भारत के गौरव को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया था। भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान प्रयासों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद, उन्होंने अपनी योगदान के अनुरूप प्रसिद्धि और पहचान नहीं मिली।

इस साल जुलाई में देश के पहले अंतरिक्ष यात्री और भारतीय वायुसेना के पूर्व पायलट राकेश शर्मा की एक तस्वीर ऑनलाइन दिखी थी। इसके जरिये पता लगा कि वो तमिलनाडु में एकांत जीवन व्यतीत कर रहे हैं। उनके साथ उनकी पत्नी मधु भी रहती हैं। भारत के अंतरिक्ष अन्वेषण के इतिहास में राकेश शर्मा ने एक अमिट छाप छोड़ी। राकेश शर्मा साल 2021 में बेंगलुरु स्थित कंपनी कैडिला लैब्स के गैर-कार्यकारी अध्यक्ष थे। इसके अलावा, शर्मा ने इसरो के गगनयान के लिए राष्ट्रीय सलाहकार परिषद में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह परिषद् अंतरिक्ष यात्री चयन कार्यक्रम की देखरेख करती थी।

भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा का जन्म पंजाब के पटियाला में हुआ था। उन्होंने सेंट एंथनी हाई स्कूल और सेंट जॉर्ज ग्रामर स्कूल जैसे प्रतिष्ठित स्कूलों में पढ़ाई की। इसके बाद हैदराबाद के निजाम कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। सैन्य करियर के प्रति उनका जुनून उन्हें पुणे के प्रतिष्ठित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) में ले गया। एनडीए की ट्रेनिंग के बाद वह 1970 में भारतीय वायु सेना (IAF) में शामिल हुए। यहां उन्होंने एक टेस्ट पायलट के रूप में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। वह, 1984 में एयरफोर्स में स्क्वाड्रन लीडर बन गए। उन्होंने 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान मिग-21 पर 21 लड़ाकू मिशनों में उड़ान भरते हुए अपनी असाधारण क्षमताओं का प्रदर्शन किया।