मेरठ. लगातार हो रहे हादसों के बावजूद स्कूल बसें बेलगाम है। मवाना में कई स्थानों पर स्कूली बसों की पड़ताल की गई तो उन्हीं मानकों की अवहेलना पाई गई जो मुख्य रूप से दुर्घटना के कारक है।

मवाना में मिल रोड पर एक स्कूल बच्चों को लेकर जा रही थी, लेकिन बस में सामने की ओर कहीं स्कूल बस नहीं लिखा था। बस में फर्स्ट एड बाक्स नहीं था। छोटे बच्चों के उतरने के लिए कोलेप्सेबल फुट स्टेप की व्यवस्था भी नहीं थी।

मवाना में ढिकौली रोड पर बच्चों को घर छोडकर आ रही चालक की सीट ही बस की खटारा स्थिति की गवाही दे रहा था। बस में कोई इमरजेंसी द्वार नहीं था। जबकि उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट रूप से बिना उक्त मानक स्कूली बसों के लिए तय किए हैं। संभागीय परिवहन विभाग की प्रवर्तन शाखा ने अप्रैल में स्कूली बसों के खिलाफ अभियान चलाया था। इसके बाद शहर के स्कूलों में मानकों का पालन करते हुए बसें चल रही हैं। कई स्कूलों ने बसों की व्यवस्था से हाथ खींच लिया है। बड़ी संख्या में बच्चों के अभिभावकों को टैंपो आदि साधनों से बच्चों को स्कूल भेजना पड़ रहा है, लेकिन शहर के बाहरी इलाकों में स्थित स्कूलों में अभी बसें चल रही हैं। उधर, एआरटीओ प्रशासन कुलदीप सिंह ने बताया कि अप्रैल में 30 बसें सीज की गई थी।

ये हैं स्कूल बसों के संचालन के नियम

वाहन का रंग पीले रंग का होना चाहिए।

वाहन पर नीली पट्टी पर स्कूल का नाम लिखा हो।

सभी वाहनों में ड्राइवर, कंडक्टर व महिला परिचारिका अनिवार्य।

जीपीएस ट्रैकिंग सिस्टम होना चाहिए। बस के भीतर सीसीटीवी कैमरा होना चाहिए।

बैठने की क्षमता वाहन क्षमता की डेढ़ गुना तक। 40 सीटर बस में 60 बच्चे तक बिठाए जा सकते हैं।