नई दिल्ली। इंसानियत को शर्मसार करने वाली सुल्तानपुरी की बर्बर घटना के प्रति पेशेवर मानी जाने वाली दिल्ली पुलिस का रवैया बेहद लचर और असंवेदनशील रहा। घटना की सूचना मिलने के बाद गंभीरता से जांच करने के बजाए पुलिस ने कमजोर धाराओं में मामला दर्ज कर पहले तो सिर्फ खानापूर्ति करने की कोशिश की। इसके बाद जब मामला सुर्खियों में आया तो वारदात से जुड़े अहम तथ्यों, सीसीटीवी कैमरों के फुटेज से लेकर चश्मीद की तलाश करने के बजाए पुलिस पकड़े गए आरोपितों के बयान पर दो दिनों तक गुमराह होती रही।
दिल को झकझोर देने वाली इस घटना ने पुलिस की कार्यप्रणाली से लेकर इसकी जांच पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। आरोपितों से पूछताछ के बाद पुलिस ने शुरू में बताया कहा कि कार में तेज आवाज में संगीत बज रहा था। ऐसे में आरोपितों को पता नहीं चला कि कार के नीचे कोई फंसा। जबकि अब जांच में सामने आ रहा है कि वारदात के दौरान कार दीपक खन्ना चला रहा था।
घटना के कुछ देर बाद दीपक ने साथियों से कहा कि ऐसा लग रहा है कि कार के नीचे कुछ फंसा है, इस पर साथियों ने उसे चलते रहने के लिए कहा। यदि शुरू में पुलिस आरोपितों के बयानों का सत्यापन करने और घटना के चश्मदीद की तलाश के लिए गंभीरता से काम करती तो कई सवालों के जवाब पहले ही मिल चुके होते। वारदात के दो दिनों तक पुलिस को यह नहीं पता चला कि वारदात के समय स्कूटी पर अंजलि के साथ उसकी सहेली भी थी।
बाहरी जिले के वरिष्ठ अधिकारियों ने यह भी कहा था कि पीड़िता को कई किलोमीटर तक कार से घसीटा गया। इसके बावजूद पुलिस ने शुरू में एफआइआर में धारा 279 (खतरनात तरीके से वाहन चलाने) और धारा 304ए (जब कोई व्यक्ति उतावलेपन में ऐसा कार्य करे जिससे हत्या हो जाए, जिसका उसे बिल्कुल भी अंदाजा ना हो) सिर्फ यही दो धाराएं लगाई।