लखनऊ। मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव का भी राजनीति की गलियों में अपना दबदबा है। सियासी अखाड़े में धुरंधरों को अपने चरखा दांव से चित करने वाले मुलायम उनके भाई ही नहीं राजनीति गुरु भी थे। उन्हीं से सीखे हुए सियासत के दाव-पेच लगाकर शिवपाल ने इस बार ऐसी बिसात बिछाई कि भाजपा कई सीटों पर चारों खाने चित हो गई। 2019 के लोकसभा चुनाव में शिवपाल सपा से अलग हो गए थे। उन्होंने अपनी अलग पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना ली थी। ऐसे में यादव दो फाड़ हो गया था।
एक गुट सपा के साथ था तो दूसरा प्रसपा के। इतना ही नहीं शिवपाल ने खुद फिरोजाबाद से अक्षय यादव के खिलाफ चुनाव लड़ा था। अक्षय भाजपा प्रत्याशी चंद्रसेन जादौन से महज 28781 वोट से हारे थे। जबकि उनके चाचा शिवपाल यादव 91 से भी अधिक वोट काटने में कामयाब रहे थे। ऐसे में कहीं न कहीं सपा की राह में उन्होंने ही रोड़ा अटकाया था। मैनपुरी सीट की अगर बात करें तो मुलायम सिंह यादव के सामने शिवपाल सिंह ने चुनाव तो नहीं लड़ा था, लेकिन कार्यकर्ताओं में गुटबाजी के चलते मुलायम की जीत का ग्राफ 1 लाख के नीचे आ गया था। वहीं बदायूं में भी धर्मेंद्र यादव को हार मिली थी।
अब चाचा शिवपाल और अखिलेश एक साथ थे। ऐसे में शिवपाल सिंह को अहसास था कि उन्हें 2019 में हुई गलती सुधारनी है। इसके लिए उन्होंने ऐसी चुनावी बिसात बिछाई कि भाजपा चारो खाने चित हो गई। फिरोजाबाद में उन्होंने जनसभा में खुलकर गलती स्वीकारी। जनता से अपील की कि मेरी गलती की वजह से मेरा भतीजा अक्षय हारा था, इस बार ये गलती सुधारनी है।
जनता ने भी शिवपाल पर भरोसा जताया और अक्षय ने इस बार 89312 वोटों से जीत दर्ज की। इसी तरह मैनपुरी में भी डिंपल की जीत के लिए शिवपाल ने पूरा जोर लगाया। बदायूं में बेटे को जिम्मेदारी सौंपकर उन्होंने अपने विधानसभा क्षेत्र जसवंतनगर की जिम्मेदारी संभाली। जसवंतनगर मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र का ही हिस्सा है। शिवपाल की मेहनत रंग लाई और जसवंतनगर ने डिंपल की जीत में सर्वाधिक 88132 वोट का योगदान किया।
सपा ने पहले बदायूं से धर्मेंद्र यादव को प्रत्याशी घोषित किया था। ये सीट भी 2019 में भाजपा के पाले में चली गई थी। यहां संघमित्रा मौर्य ने धर्मेंद्र यादव को हराया था। लेकिन बाद में जब शिवपाल के चुनाव लड़ने को लेकर सवाल खड़े हुए तो सपा ने यहां प्रत्याशी बदल दिया। धर्मेंद्र की जगह शिवपाल सिंह को प्रत्याशी बनाया गया। शिवपाल ने पहले बदायूं में बागियों को सपा के पक्ष में लाकर समीकरण साधे और फिर बेटे ये सीट सौंप दी। इन्हीं समीकरणों के चलते बेटे आदित्य यादव ने बदायूं ये जीत हासिल की।
जब धर्मेंद्र यादव को हटाकर शिवपाल सिंह यादव को बदायूं से प्रत्याशी बनाया गया तो शिवपाल लंबे समय बदायूं नहीं गए। सूत्रों के अनुसार शिवपाल इस बात पर अडिग थे कि जब तक धर्मेंद्र को कोई सीट नहीं मिल जाती है तब तक वह बदायूं नहीं जाएंगे। क्योंकि बदायूं में धर्मेंद्र के समर्थक इससे नाराज हो सकते हैं। धर्मेंद्र यादव को बाद में आजमगढ़ से प्रत्याशी बनाया गया और वह भी जीतकर सांसद बने।