पटियाला। भारत के विभाजन के समय हजारों परिवार अपनों से बिछड़ गए। इनमें से चंद सौभाग्यशाली ही हैं, जिन्हें दोबारा अपनों से मिलने का मौका मिला। इन्हीं में से एक हैं पाकिस्तान में रह रहींं 75 साल की मुमताज बेगम और भारत के पंजाब के उनके भाई। मुमताज कुछ माह की थीं तो अपने सिख परिवार से बिछड़ गईंं। उनको पाकिस्तान के एक मुस्लिम परिवार ने बेटी की तरह पाला-पोसा।
बंटवारे के दौरान बिछड़ गई थी पटियाला के शुतराणा की मुमताज
मुमताज बेगम 75 साल की उम्र में श्री करतारपुर कारिडोर में पहली बार अपने भाइयों से मिलीं तो भावनाओं का सैलाब उमड़ पड़ा। भावुक मुमताज ने कहा, ‘अपना खून तो अपना ही होता है। जब से पता चला था कि मेरा परिवार हिंदुस्तान में रहता है, तब से मिलने की बड़ी आस थी, जो अब पूरी हुई।’
मुमताज अभी लाहौर के शेखपुरा जिला के गांव गलोतियां में रहती हैं, जबकि उनका परिवार बंटवारे से पहले पटियाला के शुतराणा में रहता था। उनकी मां को बंटवारे के दौरान दंगाइयों ने मार डाला था। तब मुमताज कुछ माह की ही थीं।
करतारपुर कारिडाेर में भाइयों के परिवार से मिलतीं मुमताज बेगम।
वह अपनी मां के शव के बगल में पड़ी रो रही थीं, तब मोहम्मद इकबाल और उनकी पत्नी अल्ला रक्खी ने उन्हें उठा लिया। दोनों ने बच्ची को पालने का फैसला किया। बच्ची का नाम मुमताज रखा गया। बाद में इकबाल परिवार के साथ लाहौर के पास शेखपुरा जिला के गांव गलोतियां में रहने लगा।
दो साल पहले पता चला कि माता-पिता सिख थे
मुमताज को दो साल पहले ही पता चला कि उसके माता-पिता सिख थे। इकबाल व उनकी पत्नी ने मुमताज को कभी नहीं बताया कि वह उनकी बेटी नहीं हैं। वह मुमताज को अपनी बेटी की ही तरह पालते रहे। शिक्षा दी और करीब 16 साल की उम्र में शादी भी कर दी।
करीब दो साल पहले इकबाल ने मुमताज को बताया कि वह उनकी बेटी नहीं है और न ही वोह मुस्लिम परिवार से हैं। असल में वह एक सिख परिवार से हैं और बंटवारे के दौरान वह उन्हें मिली थीं। मुमताज को सच्चाई बताने के कुछ दिनों बाद इकबाल का देहांत हो गया।
इंटरनेट मीडिया की मदद से मिला परिवार
मुमताज के बेटे शहबाज ने उनके असली परिवार को इंटरनेट मीडिया के जरिए खोजना शुरू किया। इसी दौरान उन्हें मुमताज का एक वीडियो इंटरनेट मीडिया पर मिला, जिसमें पता चला कि मुमताज का असली परिवार पटियाला के शुतराणा में रहता है। इसके बाद दोनों परिवारों ने इंटरनेट मीडिया व एक स्थानीय चैनल की मदद से बातचीत शुरू की और करतारपुर में मिलना तय किया।
मुमताज के भाई गुरमीत सिंह, नरेंद्र सिंह और अमरिंदर सिंह ने परिवार के सदस्यों के साथ श्री करतारपुर कारिडोर में अपनी बहन से मुलाकात की, तो सारा परिवार भावुक हो गया। मुमताज ने कहा, जिंदगी का कोई भरोसा नहीं। 75 साल की उम्र में मेरी ख्वाहिश पूरी हो गई, अब मुझे कुछ नहीं चाहिए।
पाकिस्तान की बेकरी पर किया फोन तो मुमताज तक पहुंचे
शुतराणा में रह रहे मुमताज के भतीजे निरभै सिंह ने बताया कि कोरोना काल में उन्होंने पाकिस्तान पंजाब में अपने पैतृक गांव सेखवां को इंटरनेट मीडिया पर सर्च किया। उन्हें वहां की एक बेकरी का बोर्ड दिखा, जिस पर फोन नंबर लिखा था। जब उन्होंने इस नंबर पर काल की सामने से फोन उठाने वाले ने यह सुनते ही फोन काट दिया कि काल भारतीय पंजाब से आई है।
करतारपुर कारिडोर में भाई से गले मिलतीं मुमताज बेगम।
निरभै के अनुसार बाद में बेकरी संचालक ने गांव सेखवां के एक युवक से इसका जिक्र किया कि भारतीय पंजाब से फोन आया था। उस युवक ने अपने पिता से इस बारे में बात की तो उन्होंने बेकरी संचालक से नंबर लेकर निरभै को फोन किया। बातचीत हुई तो दोनों परिवारों में पुरानी जान-पहचान निकल आई।
इसी दौरान परिवार के अन्य सदस्यों के जिक्र के दौरान जब निरभै ने पाकिस्तान में छूट गई अपनी बुआ का जिक्र किया तो गांव सेखवां के करीम बख्स और खिजर ने उन्हें ढूंढने में उनकी मदद की। उसके बाद पता चला कि उनकी बुआ अब मुमताज बेगम के नाम से जानी जाती है और गांव गलोतियां में रहती है।
पहले 19 जनवरी को मिला बुआ से
निरभै ने बताया कि वह बुआ मुमताज बेगम से मिलने के लिए इसी साल 19 जनवरी को करतारपुर साहिब गए थे। उनकी बुआ अपने परिवार और रिश्तेदारों के साथ वहां पहुंची थीं। बाद में जब निरभै सिंह के परिवार के अन्य सदस्यों ने मुमताज से मिलना था तो पूरे परिवार के पासपोर्ट बनवाए गए। परिवार के लोग 24 अप्रैल को करतारपुर साहिब गए और मुमताज बेगम से मिले।
जल्द शुतराणा आएंगी मुमताज
निरभै सिंह ने कहा कि उनकी बुआ मुमताज जल्द शुतराणा आने की इच्छुक हैं। उनका बेटा और पुत्रवधू भी साथ आएंगे। उनकी पुत्रवधू के पास पासपोर्ट नहीं है। पासपोर्ट बनते ही अगले 20 दिन में वह भारत के वीजा के लिए अप्लाई कर देंगे।