पल में तोला, पल में माशा वाले अंदाज में उत्तर प्रदेश की सियासत अपने रंग दिखाने लगी है। पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा का साथ छोड़कर कमल थामने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य ने अब भाजपा को अलविदा कह दिया और समाजवादी पार्टी में शामिल होकर साइकिल की सवारी शुरू कर दी। अब सवाल यह उठता है कि स्वामी प्रसाद मौर्य की नाराजगी भाजपा को कितनी भारी पड़ेगी? उत्तर प्रदेश की कितनी सीटों पर उनका कितना असर है और इस उलटफेर से राज्य के जातिगत समीकरण में कितना बदलाव आ गया?

100 सीटों पर खेल बिगाड़ सकते हैं स्वामी प्रसाद
स्वामी प्रसाद मौर्य गैर यादव ओबीसी समुदाय का बड़ा चेहरा माने जाते हैं। वह कुशीनगर की पडरौना विधानसभा सीट से विधायक हैं, लेकिन उनका प्रभाव रायबरेली, ऊंचाहार, शाहजहांपुर और बदायूं तक माना जाता है। दावा किया जा रहा है कि स्वामी प्रसाद मौर्य के सपा में जाने से भाजपा को इन क्षेत्रों में आने वाली करीब 100 विधानसभा सीटों पर संकट का सामना करना पड़ सकता है और उसका खेल बिगड़ सकता है, क्योंकि 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की सफलता में गैर यादव ओबीसी का काफी ज्यादा योगदान था। इसके अलावा मौर्य की बेटी संघमित्रा बदायूं से सांसद हैं। ऐसे में स्वामी प्रसाद को उसका भी फायदा मिल सकता है।

सपा को मिल सकता है जातिगण समीकरण का फायदा
स्वामी प्रसाद मौर्य का साथ समाजवादी पार्टी को उत्तर प्रदेश के चुनावी रण में बड़ी बढ़त दिला सकता है। दरअसल, दरअसल, राज्य में यादव और कुर्मी के बाद मौर्य ओबीसी समुदाय को तीसरी सबसे बड़ी जाति माना जाता है और स्वामी प्रसाद मौर्य इससे ही ताल्लुक रखते हैं। काछी, मौर्य, कुशवाहा, शाक्य और सैनी जैसे उपनाम भी इसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। आबादी के लिहाज से भी देखें तो उत्तर प्रदेश के आठ फीसदी लोग इसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं।

वहीं, वोट बैंक के आंकड़ों पर गौर करें तो उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ा वोटबैंक पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का माना जाता है। लगभग 52 फीसदी पिछड़े वोट बैंक में 43 फीसदी वोट बैंक गैर यादव समुदाय से ताल्लुक रखता है। हालांकि, यह वोट बैंक अब तक किसी भी चुनाव में एकजुट नजर नहीं आता। ऐसे में सभी राजनीतिक दल गैर यादव वोटों को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहा है।

अखिलेश ने चला मास्टरस्ट्रोक
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि स्वामी प्रसाद मौर्य को अपने खेमे में लाकर अखिलेश यादव ने मास्टरस्ट्रोक चल दिया है। दरअसल, वह काफी समय से पिछड़ों को एकजुट करने की मुहिम चला रहे थे। दावा किया जा रहा है कि पिछड़ी जातियों से ताल्लुक रखने वाले कई और विधायक भाजपा का दामन छोड़कर सपा का साथ दे सकते हैं। इससे अखिलेश यादव को गैर यादव वोट भी अपनी ओर खींचने में मदद मिल सकती है। दरअसल, समाजवादी पार्टी को गैर यादव वोट के लिए काफी समय से बड़े चेहरे की तलाश थी और स्वामी प्रसाद मौर्य के आने से इस तलाश पूरी होने की उम्मीद जताई जा रही है।

मौसम विशेषज्ञ माने जाते हैं स्वामी प्रसाद मौर्य
बात राजनीति की हो और उसमें मौसम विशेषज्ञ का जिक्र न हो, ऐसा होना नामुमकिन है। ऐसे में बात जब भी मौसम विशेषज्ञ की होती है तो उस सूची में स्वामी प्रसाद मौर्य का नाम भी लिया जाता है। माना जाता है कि वह हवा का रुख

देखकर पाला बदलने में मा
हिर हैं। 2017 विधानसभा चुनाव से पहले स्वामी प्रसाद बहुजन समाज पार्टी का अहम चेहरा थे। उनका कद इतना बड़ा था कि मायावती ने मीडिया में बोलने की इजाजत भी सिर्फ उन्हें ही दे रखी थी। जब उन्हें मोदी लहर का एहसास हुआ तो उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया था। बसपा से पहले वह जनता दल का भी हिस्सा रह चुके हैं।