जम्मू-कश्मीर में हाल के दिनों में बढ़े आतंकवादी हमलों को लेकर एजेंसियां बेहद सतर्क हैं। एजेंसियों के मुताबिक केंद्र शासित प्रदेश में कट्टरपंथ तेजी से पांव पसार चुका है। यह भी एक बड़ी समस्या बन रहा है और इससे आतंकवादियों को खाद-पानी मिल रहा है। नए अंदाज में हमले और आतंकी गतिविधियों में गैर प्रशिक्षित लोगों के शामिल होने के पीछे जमात और वहाबी विचारधारा के जबरदस्त प्रसार को माना जा रहा है। एजेंसियां मान रही हैं कि कश्मीर के बड़े हिस्से में कट्टरपंथ अपने पांव पसार चुका है। घाटी में वहाबी विचारधारा का प्रसार करने के लिए पाकिस्तान ने कई तरीकों से पूरा जोर लगाया है।
कई अन्य कट्टरपंथी विदेशी ताकतें भी इसके पीछे हैं। खुफिया इनपुट भी इशारा कर रहे हैं कि कश्मीर में ताजा चुनौती आतंकवाद के साथ मजहबी कट्टरपंथ है। इसके लिए मोहरे के तौर पर सोशल मीडिया में प्रभाव रखने वाले कई समूहों के इस्तेमाल पर एजेंसियों की नजर है। जिहादी आतंकी कश्मीर में आम लोगों, अल्पसंख्यकों और गैर कश्मीरियों को निशाना बना रहे हैं। इस भय के कारण प्रवासी मजदूर लगातार पलायन के लिए मजबूर हो सकते हैं। एक अधिकारी ने कहा कि घाटी में आखिरी बड़ा पलायन जनवरी, 1990 में हुआ था जब जिहादी आतंकी कश्मीरी पंडितों की चुन-चुनकर हत्या कर रहे थे। उस वक्त नारा लगाया जाता था ‘हम चाहते निजाम-ए-मुस्तफा’, ‘रलीव, गलीव, चलीव’ यानी धर्म बदल लो, मारे जाओ या भाग जाओ। सूत्रों का कहना है कि कश्मीर का बड़ा हिस्सा मजहबी उन्माद से प्रभावित हो रहा है।
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