नई दिल्ली. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अब ज्यादा दिन का समय नहीं बचा है. 10 फरवरी को पहले चरण में पश्चिमी यूपी में वोट डाले जाएंगे, लेकिन पश्चिमी यूपी से जिस तरह की खबरें आ रही हैं वह अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी की चिंताओं को बढ़ाने वाली हैं. दरअसल मेरठ की सिवालखास सीट पर जिस तरह जाटों ने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार का विरोध किया है, वह अखिलेश यादव और जयंत चौधरी के ‘भाईचारे’ पर सवाल खड़ा करता है. यही नहीं अपर्णा यादव ने बीच चुनाव जिस तरह बीजेपी ज्वॉइन की है, वह भी अखिलेश यादव की छवि को कमजोर करती है. भले ही वह शुभकामनाएं और बधाई देकर मामले को संभालने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन बीजेपी लगातार यह दर्शाने की कोशिश कर रही है, कि अखिलेश अपना परिवार भी नहीं संभाल पा रहे हैं. आइए आपको बताते हैं समाजवादी पार्टी की उन कमियों के बारे में जो सियासी बिसात पर अखिलेश की किलेबंदी में सुराख की तरह दिख रही हैं.

पश्चिमी यूपी में इस बार जयंत चौधरी की अग्नि परीक्षा है. उन्हें साबित करना है कि रालोद का सियासी वजूद अब भी यूपी का इतिहास लिखेगा. पश्चिमी यूपी में मुसलमानों की बड़ी आबादी है और जयंत चौधरी लगातार अपनी सभाओं में भाईचारे का नारा देते रहे हैं. लेकिन पश्चिमी यूपी की कई सीटों पर सपा-रालोद गठबंधन ने एक प्रयोग किया है, लेकिन जमीन पर इस प्रयोग को विरोध का सामना करना पड़ा है. मेरठ जिले की सिवालखास विधानसभा सीट से सपा रालोद गठबंधन की तरफ से राष्ट्रीय लोकदल के चुनाव चिह्न पर समाजवादी पार्टी के नेता गुलाम मोहम्मद को प्रत्याशी घोषित किया गया है. वहीं जाट समुदाय के लोग गुलाम मोहम्मद का विरोध कर रहे हैं, अगर सिवालखास जैसी स्थिति अन्य सीटों पर भी बनी तो अखिलेश-जयंत की जोड़ी को यह प्रयोग उल्टा पड़ जाएगा.

बीजेपी लगातार अखिलेश यादव को यादवों का नेता और समाजवादी पार्टी को यादवों की पार्टी बताती रही है. अखिलेश पर मुस्लिमों और यादवों की राजनीति करने का आरोप लगता रहा है, वहीं अखिलेश यादव ने इस बार बीजेपी से नाराज कई पिछड़े नेताओं को अपने साथ लेकर इन आरोपों को निराधार करने की कोशिश की है, लेकिन अब भी दलितों का एक बड़ा हिस्सा सपा से दूर है. हालांकि बसपा यूपी में दलितों की राजनीति करती है और उसका वोट बैंक भी दलित वर्ग ही है, लेकिन जिस तरह से चंद्रशेखर आजाद ने सपा के साथ गठबंधन की पेशकश की थी, उसमें अखिलेश के पास यह मौका था कि भीम आर्मी को साथ लेकर संदेश दें कि दलित वर्ग भी उनका समर्थन कर रहा है. याद रहे कि पिछली बार के चुनाव में दलितों का एक बड़ा हिस्सा बीजेपी के साथ गया था. बसपा से छिटकते नेताओं और बीजेपी के सत्ता बचाने की कवायद के बीच दलित वोटरों का पाला बदलना सियासी रण में निर्णायक हो सकता है.

अपर्णा यादव 2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ी थीं, और नतीजों के बाद से लगातार बीजेपी के प्रति अपने लगाव को दर्शाती रहीं. 2022 के विधानसभा चुनाव में अपर्णा यादव ने पूरी तरह बीजेपी का दामन थाम लिया. बीजेपी लगातार इस बात को प्रोजेक्ट कर रही है कि अखिलेश यादव अपना कुनबा नहीं संभाल पा रहे हैं, उनकी लीडरशिप पर उनके अपने भरोसा नहीं कर पा रहे हैं. अभी चाचा शिवपाल यादव के साथ सीटों पर अंतिम घोषणा बाकी है. वहीं अपर्णा यादव ने 21 जनवरी की सुबह मुलायम सिंह यादव का आशीर्वाद लेकर भी बड़ा संदेश दे दिया है कि नेताजी का आशीर्वाद उनके साथ है. भले ही अपर्णा यादव के पास व्यापक जनाधार ना हो, लेकिन अखिलेश पर बीजेपी को हमला करने का मौका तो मिल ही गया है. अगर इसमें प्रमोद गुप्ता के आरोपों को भी जोड़ लें तो अखिलेश की छवि को ध्वस्त करने की बीजेपी की कोशिशों को बल मिल रहा है.

एक बात ध्यान रखने वाली है कि समाजवादी पार्टी ने अभी तक अपने सहयोगियों के साथ 403 सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान नहीं किया है. सिर्फ पश्चिमी यूपी की सीटों पर प्रत्याशियों का ऐलान हुआ है. लेकिन, जिस तरह से अखिलेश यादव ने बीजेपी और अन्य दलों के नेताओं को अपनी पार्टी में जगह दी है, उससे उनके अपने समर्थकों और पार्टी के लिए संघर्ष करने वाले नेताओं के नाराज होने का खतरा है. आखिर अखिलेश यादव ने जिन बाहरियों को पार्टी में शामिल किया है, अगर उन्हें टिकट देते हैं, तो पिछले 5 साल से संघर्ष करने वाले नेताओं के नाराज होने का खतरा है. अखिलेश के लिए यह बड़ी चुनौती है और देखना ये है कि वे इसे कैसे संभालते हैं.

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने पहले शामली की कैराना विधानसभा सीट से नाहिद हसन को अपना उम्‍मीदवार बनाया. टिकट के ऐलान के बाद राजनीतिक सरगर्मी बढ़ी तो गैंगस्टर एक्ट में फरार चल रहे सपा नेता ने कैराना कोर्ट में सरेंडर कर दिया. नाहिद हसन के खिलाफ पुलिस में कई आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिसमें धोखाधड़ी से जमीन खरीदने के अलावा लोगों को जबरदस्‍ती पलायन के लिए मजूबर करने के मामले भी हैं. यही नहीं, शामली जिले की स्‍पेशल कोर्ट ने गैंगस्टर एक्ट में फरार रहने की वजह से हसन को भगोड़ा भी घोषित किया था. बीजेपी ने नाहिद हसन को दोबारा टिकट दिए जाने को समाजवादी पार्टी का ‘जिन्नावाद’ कहा और सपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. बाद में अखिलेश को नाहिद हसन का टिकट काट उनकी बहन इकरा हसन को देना पड़ा.