नई दिल्ली। दिल्ली एमसीडी नगर निगम चुनाव की घोषणा हो चुकी है। राज्य चुनाव आयुक्त विजय देव द्वारा की गई घोषणा के मुताबिक़ राजधानी में चार दिसंबर को मतदान होगा और सात दिसंबर को चुनाव परिणाम घोषित किए जाएंगे। इस चुनाव में भाजपा के सामने दिल्ली नगर निगम में 15 साल से चली आ रही सत्ता को बचाने की चुनौती होगी तो अरविंद केजरीवाल स्थानीय प्रशासन में भी अपनी सरकार बनाकर दिल्ली में अपनी पकड़ को और ज्यादा मजबूत करने की कोशिश करेंगे।
कांग्रेस भी नगर निगम चुनावों के जरिए दिल्ली की राजनीति में मजबूत वापसी करने का प्लान बना रही है। लेकिन क्या आप और कांग्रेस भाजपा के नगर निगम की सत्ता में बने रहने के 15 साल पुराने तिलस्म को तोड़ने में कामयाब होंगे, जिसे अपनी प्रचंड लोकप्रियता के दौरान शीला दीक्षित और अरविंद केजरीवाल भी नहीं तोड़ पाये?
दिल्ली नगर निगम 7 अप्रैल 1985 को अस्तित्व में आया था। भाजपा ने 2007 से ही नगर निगम पर अपनी पकड़ बना रखी है। इस दौरान केंद्र से लेकर दिल्ली तक में कांग्रेस की सरकार थी। कांग्रेस ने अपनी महत्त्वाकांक्षी योजना मनरेगा की लोकप्रियता के सहारे केंद्र में 2009 में वापसी की, तो दिल्ली में गरीबों के लिए बेहतर काम करने वाली शीला दीक्षित अपनी लोकप्रियता के सहारे वापसी करने में कामयाब रहीं। लेकिन उनके दिल्ली में मुख्यमंत्री रहने के दौरान दिल्ली नगर निगम के दो बार (2007 और 2012) चुनाव हुए और दोनों ही बार भाजपा सत्ता में वापसी करने में कामयाब रही।
आरोप लगाया जाता है कि नगर निगम पर अपनी पकड़ बनाने में असफल रहीं शीला दीक्षित ने 2011 में दिल्ली नगर निगम को तीन टुकड़ों (पूर्वी, उत्तरी और दक्षिणी दिल्ली नगर निगम) में बांट दिया था। उनका सोचना था कि इससे भाजपा की ताकत बंट जायेगी और कुछ जगहों पर कांग्रेस भी सत्ता में आने में कामयाब रहेगी। लेकिन शीला दीक्षित का यह राजनीतिक दांव बुरी तरह असफल रहा और भाजपा दोबारा 2012 में तीनों निगमों की सत्ता में काबिज होने में सफल हो गई।
2012-14 में दिल्ली की राजनीति में अरविंद केजरीवाल का उदय हो गया। वे कांग्रेस के समर्थन से 2013 में पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुए। उनके इस्तीफे के बाद 2015 में हुए चुनाव में आम आदमी पार्टी ने एतिहासिक जनमत हासिल करते हुए दिल्ली की 70 में से 67 सीटों पर जीत हासिल की। इसके बाद 2017 में दिल्ली नगर निगम के चुनाव हुए। प्रचंड लोकप्रियता के रथ पर सवार आम आदमी पार्टी को भरोसा था कि वह भाजपा को निगम से हटाने में कामयाब रहेगी। लेकिन केजरीवाल का यह सपना साकार नहीं हो पाया। भाजपा ने 2017 के नगर निगम चुनाव में 181 सीटें जीतकर दिल्ली पर अपना दबदबा बरकरार रखा।
क्या इस चुनाव में भाजपा नगर निगम में अपनी सत्ता बनाये रखने में कामयाब होगी? इस प्रश्न पर दिल्ली भाजपा की प्रवक्ता सारिका जैन ने अमर उजाला से कहा कि 2017 के निगम चुनाव के समय तक अरविंद केजरीवाल की असलियत ज्यादा लोगों के सामने नहीं आई थी। वे अपनी लोकप्रियता के शिखर पर थे, लेकिन इसके बाद भी वे भाजपा को निगम से नहीं हटा सके। इसका कारण केवल यही था कि भाजपा सीधे लोगों के बीच जुड़ी हुई है। जनता से कार्यकर्ताओं का सीधा कनेक्ट पार्टी के काम आया और जनता ने उसे लगातार तीसरी बार सत्ता में भेजा।
सारिका जैन का आरोप है कि अब जनता अरविंद केजरीवाल की असलियत और आम आदमी पार्टी की झूठ की राजनीति से बहुत अच्छी तरह परिचित हो चुकी है। लोग देख रहे हैं कि जो शिक्षा स्वास्थ्य की बात करता है, उसकी असलियत है कि वह गली-गली में शराब की दुकानें खुलवाकर दिल्ली के युवाओं-बच्चों को नशेड़ी बना रहा है। जनता ने यह भी देखा कि अरविंद केजरीवाल ने यह सब केवल इसलिए किया, जिससे वे एक्साइज घोटाले से करोड़ों की कमाई कर सकें। उन्होंने आरोप लगाया कि शायद यह दुनिया का पहला मामला होगा जहां शिक्षा मंत्री ही शराब मंत्री बनकर लोगों को नशेड़ी बनाने में जुटा हुआ है।
सारिका जैन ने कहा कि अरविंद केजरीवाल के मंत्री सत्येंद्र जैन मनी लांड्रिंग के मामले में जेल में हैं, तो उनके नेता ताहिर हुसैन दिल्ली में दंगा कराने और आईबी अधिकारी अंकित शर्मा की हत्या करने के आरोप में जेल में हैं। इसी तरह आम आदमी पार्टी के दर्जनों नेताओं की असलियत लोगों के सामने आ गई है। स्कूल में कक्षाएं बनाने के नाम पर टॉयलेट बनाकर जनता के पैसे की लूट हो रही है। दिल्ली की जनता ने अरविंद केजरीवाल का दिल्ली दंगों में भी असली चेहरा देख चुकी है। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि आम आदमी पार्टी भाजपा के सामने कोई चुनौती नहीं पेश कर पाएगी और भाजपा एक बार फिर जीत हासिल करने में कामयाब रहेगी।