लखनऊ : लखनऊ एक्सप्रेसवे पर क्रैश बैरियर होते तो तीन डॉक्टरों सहित पांच की जान बच जाती। लेकिन आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे पर सड़क सुरक्षा में गंभीर लापरवाही हो रही है।
आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे पर बुधवार तड़के भीषण सड़क हादसे में पांच जिंदगियों का दीपक हमेशा के लिए बुझ गया। मरने वालों में 3 युवा चिकित्सक भी शामिल थे। चिकित्सकों की कार डिवाइडर पर चढ़ने के बाद दूसरी लेन पर आकर ट्रक से टकराई थी। इस हादसे में एक बार फिर लखनऊ एक्सप्रेसवे पर सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े किए हैं। क्रैश बैरियर न होना सबसे बड़ी कमी है।
302 किलोमीटर लंबे आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे पर केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली (सीआरआरआई) की ओर से किए गए सड़क सुरक्षा ऑडिट में कई गंभीर खामियों का खुलासा हुआ है। सीआरआरआई ने एक्सप्रेसवे की सुरक्षा बढ़ाने के लिए कई सिफारिशें की थीं, जिन्हें लागू करने में देरी की गई। वर्ष 2023 के अंत में, लगभग 100 करोड़ की लागत से कुछ सिफारिशों को लागू किया गया, लेकिन सवाल उठता है कि इन सिफारिशों को लागू करने में देरी क्यों हुई और इस दौरान हुई दुर्घटनाओं और जनहानि के लिए कौन जिम्मेदार है।
सीआरआरआई की ओर से नवंबर 2018 से दिसंबर 2019 के मध्य लखनऊ एक्सप्रेसवे का सड़क सुरक्षा ऑडिट किया गया। नवंबर 2017 से फरवरी 2019 (16 माह) के बीच उपलब्ध सड़क डेटा के अनुसार, एक्सप्रेसवे पर 1517 लोग घायल हुए, 406 लोग गंभीर रूप से घायल हुए 118 लोगों की मौत हो गई। इसे देखते हुए यूपीडा ने सीआरआरआई से रोड सेफ्टी ऑडिट कराया। सीआरआरआई ने अपनी रिपोर्ट यूपीडा को सौंपी।
सीआरआरआई ने सुझाव दिया था कि एक्सप्रेसवे के केंद्रीय रिज पर क्रैश बैरियर लगाए जाएं , ताकि वाहनों के विपरीत दिशा में जाने से रोका जा सके। हालांकि, एक्सप्रेसवे पर अधिकांश स्थानों पर ये बैरियर नहीं हैं, जिससे हादसों का खतरा बढ़ गया है।
सड़क किनारे क्रैश बैरियर की ऊंचाई में असंगतताः- सड़क किनारे लगे क्रैश बैरियर की ऊंचाई मानक 700 मिमी से कम होकर 550 मिमी तक पाई गई है, जो भारतीय सड़क कांग्रेस (आईआरसी) के मानकों का उल्लंघन है।