लखनऊ. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तारीखें जैसे-जैसे नजदीक आ रही हैं, प्रदेश कांग्रेस नेताओं के बीच जैसे दूसरे दलों में शामिल होने की होड़ मच गई है. भगदड़ का आलम ये है कि बीते चुनाव में जीते कांग्रेस के 7 में से 5 विधायक दूसरी पार्टियों में शामिल हो चुके हैं. जबकि कुछ तो इस चुनाव में कांग्रेस का टिकट पा चुके उम्मीदवार भी पार्टी छोड़ चुके हैं. बावजूद इसके कि कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा खुद को उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की तरह पेश कर रही हैं. आगे बढ़कर नेतृत्व कर रही हैं. ऐसे में सवाल हो सकता है कि आखिर ऐसी कौन सी परिस्थितियां हैं, जो नेताओं को कांग्रेस में रुके रहने से हतोत्साहित कर रही हैं? जवाब कांग्रेस छोड़ चुके कुछ नेताओं से ही सुनना ठीक रहेगा.

साल के शुरुआती 20-25 दिनों में ही कांग्रेस के करीब 10 बड़े नेता पार्टी छोड़कर अन्य दलों में जा चुके हैं. इनमें पिछली बार के 5 विधायक हैं. कुल 7 में से अब 2 विधायक ही कांग्रेस के पास रह गए हैं. इनमें से एक अजय कुमार लल्लू जो कि प्रदेश कांग्रेस के प्रमुख भी हैं. दूसरी- आराधना मिश्रा, जो प्रदेश विधायक दल की नेता हैं. वहीं, पार्टी छोड़ने वाले नेताओं में हालिया नेताओं में सबसे बड़ा नाम अभी आरपीएन सिंह का है. अन्य पिछड़ा वर्ग से आने वाले उत्तर प्रदेश कांग्रेस के दिग्गज नेता आरपीएन सिंह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए हैं. जबकि वे उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल थे. केंद्र में मंत्री रह चुके आरपीएन सिंह वर्तमान में झारखंड के पार्टी प्रभारी भी थे. सुप्रिया आरोन को बरेली (छावनी) और हैदर अली खान को स्वार विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस ने इस बार चुनाव में टिकट दिया था. लेकिन इससे भी ये दोनों नहीं रुके. सुप्रिया अपने पति प्रवीण सिंह आरोन के साथ समाजवादी पार्टी में शामिल हो गईं. प्रवीण खुद कांग्रेस सांसद रह चुके हैं. वहीं रामपुर के युवा नेता हैदर अली अपना दल में शामिल हो गए, जो भाजपा की सहयोगी है. इस बार भी उसके साथ ही चुनाव लड़ रही है. एक और नामी कांग्रेसी नेता इमरान मसूद सपा में शामिल हुए हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इमरान कांग्रेस का प्रमुख चेहरा थे. वे 2014 में चर्चा में आए थे. उस वक्त उन्होंने तब के प्रधानमंत्री पद के भाजपाई उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के खिलाफ नफरतभरी बयानबाजी की थी. इसके बाद कांग्रेस ने उन्हें तेज तरक्की दी. पहले प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया, फिर राष्ट्रीय सचिव भी. लेकिन इतने सबके बावजूद वे नहीं रुके. इनके अलावा पूर्व दिग्गज कांग्रेसी मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी के बेटे ललितेश तृणमूल कांग्रेस में जा चुके हैं. जबकि एक अन्य कांग्रेसी विधायक अदिति सिंह भाजपा में. सहारनपुर जिले के दो कांग्रेसी विधायकों में से एक- नरेश सैनी भी भाजपाई हो चुके हैं. वहीं दूसरे- मसूद अख्तर सपा में शामिल हुए हैं. कांग्रेस के विधायक राकेश सिंह भी पार्टी छोड़ चुके हैं.

कांग्रेस छोड़ने के पीछे हर नेता अपने-अपने तर्क दे रहा है. हालांकि उन सभी में एक बात आम है. उनमें से किसी को भरोसा नहीं कि पार्टी अपने दम पर उत्तर प्रदेश में कोई चमत्कार कर सकती है. इस बार ही नहीं, भविष्य में लंबे समय तक भी. इमरान मसूद कहते हैं, ‘कांग्रेस ने मुझे जो सम्मान दिया, तरक्की दी, उसे मैं झुठला नहीं सकता. लेकिन पार्टी उत्तर प्रदेश में वोट हासिल नहीं कर पा रही है. इसीलिए मुझे लगा कि भाजपा से मुकाबले के लिए सपा सबसे बेहतर है.’ इसी तरह, बरेली की महापौर रहीं सुप्रिया आरोन के नजदीकी समर्थक कहते हैं, ‘उन्होंने कांग्रेस की वापसी का लंबे समय तक इंतजार किया. लेकिन जब वर्तमान और भविष्य के लिहाज से भी कोई उम्मीद नहीं दिखी तो पार्टी छोड़ना बेहतर समझा. अगर वे ऐसा नहीं तो उनकी निजी राजनीति खत्म हो जाती.’ ऐसे ही, एक अन्य नेता नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, ‘आज वही कांग्रेस में रह सकता है, जो असीम उम्मीद पालकर रखता हो. वरना, न तो यहां कोई किसी को पूछने वाला है और न किसी की सुनने वाला.’

कांग्रेस से जुड़े या छोड़ चुके नेताओं के लिए पार्टी का लगातार गिरता मत-प्रतिशत भी चिंता का एक बड़ा कारण है. आंकड़े बताते हैं कि 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 6.25% वोट मिले. यानी अब तक सबसे कम. जबकि 2012 के विधानसभा चुनाव में उसे 11.65% वोट मिले थे. यहां तक कि कांग्रेस की वजह से सपा का मत प्रतिशत भी गिर गया. उसने 2017 का चुनाव कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा था. और तब 22.23% वोट हासिल किए. जबकि 2012 में सपा को 29% वोट मिले थे. मतलब साफ है. कांग्रेस के अपने नेताओं को ही नहीं लगता कि पार्टी का भविष्य उत्तर प्रदेश में बहुत चमकदार रहने वाला है. तो फिर भला वे अपनी राजनीति किसी और दल में क्यों न चमकाएं.