जालौर. राजस्थान के जालौर के एक गांव में स्कूली बच्चे को केवल मटके से पीने के कारण एक टीचर ने जिस तरह उसे पीट पीटकर मार डाला, वो वास्तव में शर्मनाक है. हमारे सामाजिक सुधार कार्यक्रमों पर ये बड़ा सवाल भी है कि इतने लंबे समय बाद भी हम अपनी मानसिकता क्यों नहीं बदल पा रहे हैं. वैसे जहां तक संविधान की बात है तो सभी नागरिकों को बराबर मानता है और दलितों को कुछ अधिकार भी देता है.

दलितों के लिए लगातार आवाज उठाने वाले दिल्ली के एडवोकेट अमित साहनी ने अपने ब्लॉग में इसके बारे में विस्तार से लिखा है. इसके अलावा संविधान और समय समय पर प्रकाशित किताबों में भी इसका जिक्र किया गया है.

भारतीय संविधान सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार के रूप में समानता का अधिकार देता है. भारतीय संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 12 से 35 तक मूल अधिकारों का वर्णन है.

आर्टिकल 14 कहता है कि कोई भी व्यक्ति विधि के समक्ष समता या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं रहेगा. भारतीय संविधान में शैक्षिक और सामाजिक रूप से कमजोर वर्ग के पक्ष में कानून बनाने और आरक्षण देने से संबंधित प्रावधान है. इसके तहत न केवल शैक्षिक और सामाजिक रूप से कमजोर वर्ग बल्कि महिलाओं और बच्चों के पक्ष में भी कानून बनाने का प्रावधान है और ऐसे कानून सांविधानिक रूप से पूर्णतय वैध होंगे.

आर्टिकल 15 और 16 में शैक्षिक और सामाजिक रूप से कमजोर नागरिकोंं के उत्थान के लिए जरूरी प्रावधान हैं, जिसके तहत इस वर्ग को शिक्षा, नौकरियों और प्रमोशन में विशेष दर्जा मिलता है. उद्देश्य यही है कि इस वर्ग के पिछड़ेपन को दूर कर सामाजिक समानता दिलाकर बाकी वर्गों के बराबर दर्जा दिया जा सके.

आर्टिकल 15 कहता है कि राज्य अपने किसी नागरिक के साथ केवल धर्म, जाति, लिंग, नस्ल और जन्म स्थान या इनमें से किसी भी आधार पर कोई भेद नहीं करेगा.

धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव किसी भी हालत में नहीं होना चाहिए. इस अनुच्छेद में ये बातें कही गई हैं
1. राज्य किसी नागरिक के साथ धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर या इनमें से किसी एक के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा.
2. किसी नागरिक के साथ धर्म, नस्ल, जाति, जन्मस्थान के आधार पर या इनमें से किसी के आधार पर निम्‍न संबंध में भेदभाव नहीं होगा.
ए. देश का हर नागरिक बगैर भेदभाव के दुकानों, सार्वजनिक रेस्त्रां, होटल और सार्वजनिक मनोरंजन के साधन तक पहुंच सकेगा.
बी. सार्वजनिक कुएं, जलाशय, स्नानघाट, सड़क और सार्वजनिक आश्रय आम जनता के हर वर्ग के इस्तेमाल के लिए समर्पित हैं, इनका इस्तेमाल हर वर्ग, जाति और धर्म का व्यक्ति कर सकेगा.
3. राज्‍य महिलाओं व बच्‍चों के लिए विशेष प्रावधान बना सकते हैं.
4. इस अनुच्छेद में या अनुच्छेद 29 (2) का कोई विषय राज्य को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े नागरिकों की प्रगति के लिए कोई विशेष प्रावधान बनाने से नहीं रोकेगा.

अनुच्छेद 15 (4) संविधान में संवैधानिक (प्रथम संशोधन) अधिनियम, 1951 के द्वारा जोड़ा गया, इसने कई अनुच्छेदों को संशोधित भी किया गया. इस प्रावधान ने राज्य को तकनीकी, यांत्रिकी और चिकित्सा महाविद्यालयों तथा वैज्ञानिक व विशेषीकृत कोर्स के संस्थान समेत शिक्षा संस्थानों में अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए सीटें आरक्षित करने हेतु अधिकार संपन्न बनाया है.