नई दिल्ली। व्हाट्सएप, सिग्नल और टेलीग्राम जैसी कंपनियों से होने वाले वॉयस कॉल के कारण सरकार इन पर नकेल कसने के लिए ज्यादा जोर-शोर से प्रयास कर रही है। दरअसल इन ओवर द टॉप (ओटीटी) कंपनियों से होने वाले फोन कॉल को ट्रैक करना सरकारी एजेंसियों के लिए मुश्किल होता है और यह राष्ट्रीय सुरक्षा व वित्तीय धोखाधड़ी की वजह बनती रही हैं। ऐसे में सरकार हर हाल में इसे नियामकीय दायरे में लाना चाहती है।
दूरसंचार विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार देश में 50 करोड़ से अधिक लोग स्मार्टफोन इस्तेमाल कर रहे हैं। इनमें से 70 फीसदी लोग फोन कॉल के लिए इन प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करते हैं। उदाहरण के लिए, व्हाट्सएप के भारत में 50 करोड़ से अधिक यूजर्स हैं और कंपनी के लिए भारत दुनिया में सबसे बड़ा बाजार है। इन यूजर्स का बड़ा हिस्सा अब वॉयस कॉल के लिए इसी प्लेटफार्म का इस्तेमाल करता है।
ऐसे में अगर इन्हें अभी नियंत्रित नहीं किया गया तो सरकार के लिए भविष्य में परेशानी होगी। अधिकारियों के अनुसार यह महत्वपूर्ण है कि इसी सभी कंपनियां जो अपने प्लेटफॉर्म पर वॉयस कॉल और संदेश के आदान-प्रदान की सुविधा देती हैं, वह सुरक्षा के कुछ मानकों का पालन करें। उपभोक्ता संरक्षण और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए यह जरूरी है।
पिछले कुछ सालों में देश में डाटा का उपभोग भी कई गुणा बढ़ गया है। सरकारी डाटा के अनुसार रिलायंस जियो का एक उपभोक्ता अभी हर महीने कम से कम 21 जीबी डाटा इस्तेमाल कर रहा है जबकि एयरटेल का उपभोक्ता 20 और वोडाफोन का 15 जीबी। इसकी तुलना में 2017-18 में यह खपत एक जीबी से कुछ अधिक थी।
सरकार के लिए दूरसंचार कंपनियों के कॉल्स को नियंत्रित करना आसान है क्योंकि उन्हें सुरक्षा कारणों से हर कॉल का रिकॉर्ड कम से कम एक साल तक स्टोर करने का आदेश दिया गया है।
4जी तकनीक के साथ सिर्फ पांच साल में डाटा का उपभोग 20 गुणा तक बढ़ चुका है। ऐसे में जब देश में 5जी की शुरुआत हो चुकी है तो यह इस्तेमाल और कई गुणा बढ़ेगी। ऐसे में सरकार को अब कंपनियों पर नकेल कसने की और अधिक जरूरत महसूस हो रही है।
सरकार अब ऐसी व्यवस्था बनाना चाहती है जिसमें ओटीटी कंपनियों को डाटा एक निश्चित समय तक स्थानीय रूप से स्टोर करने के लिए बाध्य किया जा सके। साथ ही उन्हें केवाईसी के जरिये उपभोक्ता की पहचान भी सुनिश्चित करनी होगी।