नई दिल्ली: भारतीय कुश्ती महासंघ (WFI) के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली सात पहलवानों में से एक नाबालिग है. अब दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने रजिस्ट्रार जनरल और दिल्ली सरकार के प्रमुख सचिव से जवाब मांगा है कि कौन सी अदालत उस नाबालिग पहलवान की याचिका पर सुनवाई करेगी, यह निर्धारित किया जाए.
इस मामले में नाबालिग पहलवान की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नरेंद्र हुड्डा पेश हुए. उन्होंने एकल पीठ के न्यायाधीश दिनेश कुमार से कहा कि नाबालिग पहलवान की तरफ से एक शिकायत दर्ज की गई है. नरेंद्र हुड्डा ने कहा कि, दरअसल, राउज एवेन्यू विधायक/सांसद (अदालत ) है, और पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) अदालत पटियाला हाउस में है. ऐसी कोई अदालत नहीं है जहां विधायक/सांसद और पॉक्सो के मामले एक साथ देखे जाते हों. इसलिए यह मामला सम्मानीय अदालत के समक्ष रखा जा रहा है.
इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित खबर के मुताबिक नाबालिग की शिकायत को राउज एवेन्यू अदालत से दिल्ली उच्च न्यायालय में मार्गदर्शन के लिए भेजा गया है, क्योंकि कोई भी मजिस्ट्रेट अदालत नहीं है जो पॉक्सो मामला जिसमें कोई विधायक या सांसद शामिल हो उन्हें एक साथ देखती हो. न्यायाधीश शर्मा ने कहा कि याचिकाकर्ता को प्रशासनिक पक्ष को स्थानांतरित किया जा सकता है. इस पर हुड्डा ने कहा कि जब तक प्रशासनिक पक्ष पर उच्च न्यायालय एक अदालत जहां पॉक्सो और सांसद-विधायक मामले की सुनवाई होती उसका गठन करती है, तब तक माननीय न्यायालय के पास इस मामले की निगरानी रखने का अधिकार है.
न्यायाधीश शर्मा ने रिकॉर्ड देखते हुए कहा कि राउज एवेन्यू अदालत से संबंधित अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलेटिन मजिस्ट्रेट के साथ कम्युनिकेशन किया गया था जिसमें धारा 156 सीआरपीसी के तहत ‘जांच की निगरानी की प्रार्थना’ की मांग की गई थी. आगे न्यायाधीश शर्मा ने कहा कि, कार्यालय के नोट के मद्देनजर, मुझे लगता है कि रजिस्ट्रार जनरल और एनसीटी दिल्ली सरकार के प्रमुख सचिव को अपनी प्रतिक्रिया दायर करने की जरूरत है. आदेश की एक प्रति रजिस्ट्रार जनरल और एनसीटी दिल्ली सरकार को प्रतिक्रिया के लिए भेजी जाए. मामले को 6 जुलाई को सूचीबद्ध किया जाएगा.
इसके पहले इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में हुड्डा ने कहा था कि आरोपी कौन है, इस वजह से अदालत की निगरानी अहम हो जाती है. चूंकि आरोपी सत्ताधारी दल का सांसद है, ऐसे में इस बात की आशंका होना स्वाभाविक है कि पुलिस मामले की कार्रवाई वैसे नहीं कर सकती है जैसे किसी अन्य आरोपी के खिलाफ करती है. इसलिए मामले की जांच किस तरह आगे बढ़ रही है, उस पर हम उच्च न्यायालय की निगरानी का अनुरोध कर रहे हैं.