नई दिल्ली. कांग्रेस के दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद ने शुक्रवार को पार्टी छोड़ दी। आजाद ने सोनिया गांधी को पांच पेज का इस्तीफा भेजा है। इसमें उन्होंने कई आरोप लगाए हैं। आजाद ने लिखा है कि कांग्रेस में वरिष्ठ नेताओं को नजरअंदाज किया जा रहा है। राहुल गांधी अनुभवहीन लोगों से घिरे हुए हैं। यह भी लिखा है कि अब कांग्रेस में न तो इच्छा शक्ति बची है और न ही काबिलियत।
इसके पहले 16 अगस्त को गुलाम नबी आजाद को जम्मू-कश्मीर कांग्रेस की कैंपेन कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया था, लेकिन आजाद ने अध्यक्ष बनाए जाने के 2 घंटे बाद ही पद से इस्तीफा दे दिया था। आजाद से दो दिन पहले ही कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने भी पार्टी छोड़ी है।
पिछले दो साल के रिकॉर्ड देखें तो इनमें कई नेताओं के नाम शामिल हो चुके हैं। फिर वह ज्योतिरादित्य सिंधिया हों या जितिन प्रसाद, कपिल सिब्बल और हार्दिक पटेल। एक के बाद एक कई दिग्गज नेता कांग्रेस का दामन छोड़ दूसरी पार्टियों में शामिल हो चुके हैं। कई ऐसे भी हैं, जो पार्टी के बड़े पदों पर नहीं बैठना चाहते हैं। इनमें आनंद शर्मा जैसे दिग्गज नेता शामिल हैं। आनंद शर्मा ने पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव संचालन समिति (स्टीयरिंग कमेटी) के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था।
ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर कांग्रेस के दिग्गज नेता पार्टी क्यों छोड़ रहे हैं? क्यों कोई बड़ा नेता पार्टी के बड़े पदों को नहीं संभालना चाहता है? आइए इसके कारण जानते हैं…
कांग्रेस छोड़ने वाले ज्यादातर नेताओं ने कांग्रेस नेतृत्व और खासतौर पर राहुल गांधी पर सवाल खड़े किए हैं। गुलाम नबी आजाद ने अपने इस्तीफा में लिखा है कि कांग्रेस में अब कुछ भी ठीक नहीं है। राहुल गांधी के आसपास अनुभवविहीन लोग हैं। पार्टी में अब न तो इच्छा शक्ति बची है और न ही काबिलियत। लगातार पार्टी में वरिष्ठ नेताओं को किनारे किया जा रहा है।
इसके दो दिन पहले पार्टी से इस्तीफा देने वाले जयवीर शेरगिल ने भी कुछ इसी तरह के सवाल उठाए थे। शेरगिल ने लिखा था, ‘मुझे यह कहते हुए दुख हो रहा है कि निर्णय लेना अब जनता और देश के हितों के लिए नहीं है, बल्कि यह उन लोगों के स्वार्थी हितों से प्रभावित है, जो चाटुकारिता में लिप्त हैं और लगातार जमीनी हकीकत की अनदेखी कर रहे हैं।’
जितिन प्रसाद, हार्दिक पटेल, ज्योतिरादित्य सिंधिया समेत कई नेताओं ने भी इस्तीफा देते हुए राहुल गांधी पर ही सवाल खड़े किए थे। सभी ने अपने इस्तीफा में लिखा था कि राहुल गांधी कांग्रेस नेताओं को मिलने का समय नहीं देते हैं। वह कार्यकर्ताओं और नेताओं की बात नहीं सुनते हैं।
हमने ये समझने के लिए कांग्रेस के एक दिग्गज नेता से बात की। उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर कई बातों से पर्दा उठाया। कहा कि पार्टी में काफी मतभेद है। लगातार चुनावों में मिल रही हार से नेता और कार्यकर्ता काफी हताश हो चुके हैं। सभी अपने राजनीतिक करियर के लिए दूसरा विकल्प तलाश रहे हैं।
1. पार्टी का नेतृत्व संकट : पार्टी में लंबे समय से चुनाव नहीं हुआ है। 2019 लोकसभा चुनाव के बाद राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद से सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष हैं। सोनिया की तबियत खराब रहती है। ऐसे में पार्टी का ज्यादातर काम राहुल ही संभालते हैं। कांग्रेस से इस्तीफा देने वाले नेताओं का आरोप है कि राहुल गांधी कभी भी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को समय नहीं देते हैं। उनकी बातों को नहीं सुनते हैं। समय पर पार्टी में फैसला नहीं होता है। एक तरह से पार्टी नेतृत्व का संकट है। शुक्रवार को इस्तीफा देने वाले गुलाम नबी ने राहुल पर ही आरोप लगाए।
2. वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी : लगातार चुनावों में मिल रही हार के चलते कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं ने G-23 गुट बनाया। इसके बाद पार्टी में नेतृत्व को लेकर विद्रोह की अटकलें शुरू हो गई थीं। इन नेताओं का आरोप था कि पार्टी में उनकी बातों को नजरअंदाज किया जा रहा है। पार्टी में नेताओं की सुनने वाला कोई नहीं है। लोकतंत्र पूरी तरह से खत्म हो गया है। इस गुट में गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, शशि थरूर, मनीष तिवारी, आनंद शर्मा, पीजे कुरियन, रेणुका चौधरी, मिलिंद देवड़ा, मुकुल वासनिक, जितिन प्रसाद, भूपेंद्र सिंह हुड्डा, राजिंदर कौर भट्टल जैसे नेता शामिल थे। अनदेखी से नाराज इनमें से कई नेता पार्टी छोड़ चुके हैं।
3. पार्टी में तालमेल नहीं होना: कांग्रेस में कोई नेता दूसरे की नहीं सुन रहा है। राहुल गांधी-सोनिया गांधी भी पार्टी नेताओं की गुटबाजी को खत्म नहीं कर पा रहे हैं। संगठन में तालमेल पूरी तरह से खत्म हो गया है।
4. राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल : पार्टी छोड़ने वाले ज्यादातर नेताओं ने साफ कहा है कि वह राहुल गांधी के नेतृत्व से खुश नहीं हैं। गुलाम नबी आजाद ने खुलकर अपनी चिट्ठी में इसका जिक्र किया है। उन्होंने तो यहां तक लिखा है कि राहुल गांधी के बचपने की वजह से ही 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को हार मिली। आजाद ने भी राहुल के नेतृत्व पर सवाल खड़ा किया।