लखनऊ : उत्तर प्रदेश में 12 नवंबर को नौ विधानसभा सीटों पर उपचुनाव है। इस चुनाव के लिए सत्ताधारी एनडीए और विपक्षी गठबंधन के सभी सीटों पर चेहरे तय हो गए हैं। इससे पहले बुधवार को अखिलेश यादव और राहुल गांधी के बीच हुई बातचीत के बाद कांग्रेस के चुनाव चिह्न पर प्रत्याशी न उतारने का निर्णय लिया गया था।
उत्तर प्रदेश में उपचुनाव से पहले सियासी हलचल तेज हो गई है। यहां की नौ विधानसभा सीटों के लिए 13 नवंबर को मतदान कराया जाएगा। गुरुवार को सत्ताधारी भाजपा ने दो सूची जारी कर आठ उम्मीदवारों के नामों का एलान कर दिया। उधर समाजवादी पार्टी ने बची हुई खैर और गाजियाबाद की सीट पर भी अपने उम्मीदवार उतार दिए। इससे पहले पहले बुधवार को अखिलेश यादव ने घोषणा की थी कि विपक्षी गठबंधन के सभी नौ उम्मीदवार सपा के निशान पर उतारे जाएंगे। सूत्रों के मुताबिक, अखिलेश यादव और कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बीच बातचीत के बाद कांग्रेस के चुनाव चिह्न पर प्रत्याशी न उतारने का निर्णय लिया गया। बता दें कि सपा ने उपचुनाव में कांग्रेस को गाजियाबाद और खैर सीट दी थी, लेकिन कांग्रेस पांच सीटें लेने पर अड़ी हुई थी। अब यह बात साफ हो गई है कि उत्तर प्रदेश में होने वाले उपचुनाव में कांग्रेस दावेदारी नहीं करेगी।
आइये जानते हैं कि यूपी में उपचुनाव का पूरा कार्यक्रम क्या है? यह उपचुनाव क्यों हो रहे हैं? एनडीए में कौन-कितनी सीटों पर चुनाव लड़ रहा है? विपक्षी गठबंधन का क्या है हाल? सपा-कांग्रेस में कैसे बनी बात? कांग्रेस के चुनाव न लड़ने के फैसले का असर क्या होगा?
राज्य में नौ विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए 18 अक्तूबर को अधिसूचना जारी हुई। नामांकन की आखिरी तारीख 25 अक्तूबर है। 28 अक्तूबर नामांकन पत्रों की जांच की तारीख है। उम्मीदवार 30 अक्तूबर तक अपने नाम वापस ले सकते हैं। 12 नवंबर को सभी नौ विधानसभा सीटों पर मतदान कराया जाएगा। वहीं, 23 नवंबर को महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनावों के साथ नतीजे घोषित किए जाएंगे।
राज्य की जिन नौ विधानसभा सीटों पर उपचुनाव है, उनमें अलीगढ़ जिले की खैर, अंबेडकरनगर की कटेहरी, मुजफ्फरनगर की मीरापुर, कानपुर नगर की सीसामऊ, प्रयागराज की फूलपुर, गाजियाबाद की गाजियाबाद, मिर्जापुर की मझवां, मुरादाबाद की कुंदरकी और मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट शामिल है। इसके अलावा अयोध्या जिले की मिल्कीपुर सीट भी रिक्त है, लेकिन इसके निर्वाचन का मामला अदालत में होने के कारण यहां अभी उपचुनाव की घोषणा नहीं की गई है।
राज्य की जिन नौ सीटों पर उपचुनाव है, 2022 के विधानसभा में इनमें से समाजवादी पार्टी ने सबसे अधिक चार सीटें जीती थीं। वहीं, भाजपा ने इनमें से तीन सीटें जीतीं थीं। राष्ट्रीय लोक दल और निषाद पार्टी के एक-एक उम्मीदवार इन सीटों पर विजयी हुए थे।
हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में कई विधायक सांसद निर्वाचित हुए थे। इनमें से पूर्व मुख्यमंत्री और सपा प्रमुख अखिलेश यादव समेत कई अन्य विधायक शामिल हैं। सांसद बनने के बाद इन विधायकों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। वहीं, कानपुर नगर की सीसामऊ सीट 2022 में यहां से जीते सपा के इरफान सोलंकी को अयोग्य करार दिए जाने से रिक्त है।
भाजपा ने गुरुवार को उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा उपचुनाव के लिए उम्मीदवारों की दो सूचियां जारी कर दीं। इनमें कुल आठ उम्मीदवारों के नाम हैं। भाजपा गठबंधन में रालोद को उसकी पुरानी सीट मीरापुर दी गई है।
उपचुनाव में सभी नौ सीटों पर इंडिया गठबंधन के संयुक्त प्रत्याशी सपा के निशान पर चुनाव लड़ेंगे। इसकी जानकारी सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बुधवार देर रात सोशल मीडिया के जरिए दी थी। गुरुवार को सपा ने गाजियाबाद और खैर सीट से उम्मीदवार घोषित कर दिया। बाकी सात सीटों पर सपा पहले ही अपने प्रत्याशी घोषित कर चुकी थी।
सपा सूत्रों के मुताबिक, बुधवार देर रात अखिलेश यादव और कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बीच फोन पर बात हुई। इसके बाद कांग्रेस के सिंबल पर प्रत्याशी न उतारने का फैसला किया गया। बता दें कि सपा ने उपचुनाव में कांग्रेस को गाजियाबाद और खैर सीट दी थी, लेकिन कांग्रेस पांच सीटें लेने पर अड़ी हुई थी।
उपचुनाव में कांग्रेस ने पांच सीट पर चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन सपा ने सिर्फ गाजियाबाद और खैर सीट छोड़ी। मंगलवार को सपा ने फूलपुर सीट भी छोड़ने के संकेत दिए लेकिन बुधवार को सपा के उम्मीदवार मुज्तबा सिद्दीकी ने पर्चा दाखिल कर दिया। जानकारों का तर्क है कि सपा ने फूलपुर में नामांकन कराकर गठबंधन के मसौदे पर पेंच फंसा दिया।
अगर कांग्रेस जिद करके यह सीट ले भी लेती है तो सियासी तौर पर अल्पसंख्यकों के बीच गलत संदेश जाएगा। जाहिर है कांग्रेस यह जोखिम नहीं उठाएगी। दूसरी बात यह है कि नामांकन के दो दिन बचे हैं। सपा के उम्मीदवार सभी सीटों पर तैयारी कर चुके हैं। ऐसे में किसी अन्य सीट पर कांग्रेस ने उम्मीदवार उतारा तो गठबंधन के लिहाज से गलत संदेश जाएगा। कहा जा रहा है कि इसी के चलते कांग्रेस ने उपचुनाव से किनारा कर लिया।
इसे समझने के लिए अमर उजाला ने वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी से बात की। वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं, ‘पहली बात तो यह है कि कांग्रेस को जो सीटें मिल रही थीं वो ऐसी थीं जहां वह कमजोर रही है। उधर हरियाणा की हार से राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठने लगे थे। अब तुरंत ही उपचुनाव हार जाते तो उनके लिए एक और मुश्किल हो जाती।’
‘दूसरी बात यह है कि कांग्रेस को लेकर अक्सर यह सवाल उठता है कि वह सहयोगियों के साथ ठीक तरह से तालमेल नहीं करती। वहीं यूपी सपा ही मजबूत रही है। ऐसे में एक तरह से यह मजबूरी में लिया गया फैसला है। इसके अलावा अखिलेश यादव महाराष्ट्र में कम से कम 12 सीटें मांग रहे थे। यूपी में कांग्रेस अपने फैसले से सपा को समायोजित करने की कोशिश कर रही है कि पार्टी को 12 नहीं तो कुछ सीटें मिल सकें। इस तरह से एक बार फिर कांग्रेस यह संदेश देने की कोशिश करेगी कि राहुल गांधी नरेंद्र मोदी से लड़ने के लिए कुछ भी कर रहे हैं और अपनी सीटें भी छोड़ रहे हैं।’
कांग्रेस के फैसले के असर पर वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन कहते हैं, ‘यह फैसला कांग्रेस के अपने कार्यकर्ताओं के मनोबल को तोड़ने वाला है। कांग्रेस दो-तीन सीट पर भी चुनाव लड़ती तो लोकसभा चुनाव के बाद उसका कैडर मोबलाइज रहता। ‘इंडिया’ में कांग्रेस और राहुल गांधी की छवि के लिए यह फैसला अच्छा हो सकता है, लेकिन कार्यकर्ताओं को नाखुश करने वाला है।’