नई दिल्ली. क्या आपने कभी सोचा है कि इंसानों की औसत उम्र 70-80 साल क्यों होती है जबकि हमारे आसपास रहने वाले चूहे, कुत्ते, बिल्ली आदि जानवर कुछ ही साल जिंदा रह पाते हैं. शरीर के अंदर ऐसा क्या होता है कि कुछ जीवों की उम्र का असर धीरे-धीरे दिखता है, जबकि कुछ तेजी से बूढ़े होकर मर जाते हैं. वैज्ञानिकों ने इस गुत्थी को सुलझाने का दावा किया है. स्तनपायी जीवों पर हुई एक रिसर्च के बाद ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने बताया है कि जीवों की उम्र का राज उनके डीएनए में छिपा होता है. इस डीएनए में बदलाव की रफ्तार जितनी तेज होगी, जीव के जिंदा रहने का वक्त उतना ही कम होगा.

ब्रिटेन के वेलकम सेंगर इंस्टिट्यूट के साइंटिस्टों ने इंसानों के अलावा चूहे, बिल्ली, कुत्ते, घोड़े, जिराफ, शेर, खरगोश जैसे 16 स्तनपायी जानवरों के डीएनए की स्टडी करके ये नतीजे निकाले हैं. उन्होंने देखा कि इन सभी के डीएनए में होने वाले म्यूटेशंस की संख्या लगभग एक जैसी होती है. इन सभी जीवों की पूरी जिंदगी में डीएनए लगभग 3200 बार म्यूटेट होता है. लेकिन जिसमें जितनी जल्दी-जल्दी म्यूटेशन होते हैं, वह उतने ही कम समय जिंदा रह पाता है. आमतौर पर 4 साल से कम जिंदा रहने वाली चुहिया के डीएनए में साल में औसतन 800 बार बदलाव होते हैं. कुत्तों में साल में लगभग 249, शेर में 160, जिराफ में 99 और इंसानों में करीब 47 बार डीएनए में म्यूटेशन होते हैं. इसी हिसाब से इनकी औसत उम्र में अंतर दिखता है.

ये रिसर्च करने वाली टीम के वैज्ञानिक डॉ. एलेक्स केगन ने बीबीसी से कहा कि अगर इंसानों का डीएनए चुहिया के डीएनए में म्यूटेशन की रफ्तार से बदलता तो मनुष्यों की पूरी जिंदगी में औसतन 50 हजार से ज्यादा बार डीएनए म्यूटेट हो जाता, लेकिन ऐसा नहीं होता. इंसानों में डीएनए में बदलाव साल में महज 47 बार ही होता है. डॉ कैगन ने कहा कि अलग-अलग उम्र होने के बावजूद जीवन के अंत में स्तनधारियों में डीएनए म्यूटेशन की संख्या लगभग बराबर पाई गई. ऐसा क्यों है, ये हमारे लिए अभी भी राज है. उन्होंने बताया कि अब हम ग्रीनलैंड शार्क जैसी मछलियों पर यही रिसर्च करने जा रहे हैं. इस मछली की उम्र 400 साल से भी ज्यादा होती है और इसे दुनिया में सबसे ज्यादा समय तक जीवित रहने वाला रीढ़ वाला प्राणी माना जाता है.

वैज्ञानिकों की इस रिसर्च का मकसद उम्र की गुत्थियां सुलझाना तो था ही, एक और वजह थी- कैंसर का इलाज ढूंढना. कहा जाता है कि जिस जीव में जितनी ज्यादा कोशिकाएं होंगी, उसकी उम्र उतनी ही अधिक होगी और उसे कैंसर होने की संभावना भी ज्यादा होगी. डॉ. केगन कहते हैं कि ये सच नहीं लगता क्योंकि व्हेल मछली में तो इंसानों के मुकाबले अरबों-खरबों सेल्स होते हैं जबकि उनसे ज्यादा कैंसर मनुष्यों में फैलता है. इसका जवाब भी म्यूटेशन में छिपा हो सकता है. जितनी धीमे म्यूटेशन होगा, कैंसर होने की संभावना उतनी कम होगी.

ये भी कहा जाता है कि जो जीव जितना ज्यादा बड़ा होगा, वह उतना ही ज्यादा जिएगा. लेकिन हमारी रिसर्च कहती है कि ये सच नहीं है. छछूंदर और जिराफ की उम्र लगभग एक जितनी होती है, उनके डीएनए में म्यूटेशन की रफ्तार भी एक जैसी होती है, जबकि छछूंदर के मुकाबले जिराफ साइज में बहुत विशाल होता है.