नई दिल्ली : पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था का हाल किसी से छुपा नहीं है. एक दर्जन से अधिक बेलआउट के बाद पाकिस्तान की माली हालत नाजुक दौर से गुजर रही है. जाहिर सी बात है कि पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड की माली हालत भी कोई बहुत जुदा नहीं है. जिस तरह देश की अर्थव्यवस्था अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष पर निर्भर है तो पीसीबी की अर्थव्यवस्था क्रिकेट के मैदान पर उसकी टीम द्व्रारा खेले गए मैचों के नतीजों पर निर्भर है. लेकिन पाकिस्तान को वहां पर भी भारत की तरह मनमाफिक परिणाम नहीं मिल रहे हैं. जब 1987 में भारत और पाकिस्तान ने विश्व कप की संयुक्त मेजबानी की थी, तब दोनों देशों की आर्थिक स्थिति कमोबेश एक जैसी थी. लेकिन समय के साथ हालात बदलते गए. भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड आज की तारीख में दुनिया का सबसे ज्यादा अमीर बोर्ड है.
यह वाकया ज्यादा पुराना नहीं है, जब पिछले साल अक्टूबर माह में खेले गए विश्व कप में पाकिस्तान क्रिकेट टीम का अभियान अपने बोर्ड की खराब आर्थिक स्थिति के कारण पटरी से उतर गया था. खराब प्रदर्शन ने उसके क्रिकेट बोर्ड की प्रबंधकीय क्षमता की भी पोल खोल दी थी. क्रिकेट की दुनिया के सबसे बड़े टूर्नामेंट के दौरान उसके कई खिलाड़ियों ने दावा किया था कि उन्हें पांच महीने से कोई भुगतान नहीं मिला है. पाकिस्तान की विश्व कप यात्रा खिलाड़ियों के वेतन संबंधी विवादों और उनके केंद्रीय अनुबंधों में हो रही देरी से प्रभावित रही. जब टीम शुरुआती छह में चार मैच हार गई तो पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने खिलाड़ियों के साथ करार के लिए अनुबंध भारत भेजे, जहां विश्व कप खेला जा रहा था.
पीसीबी का अपना संविधान है और वह अपना राजस्व खुद पैदा करता है. इस पैसे को देश में क्रिकेट के विकास के लिए खर्च किया जाता है. उसे पाकिस्तान की संघीय या प्रांतीय सरकारों या सार्वजनिक राजकोष से कोई अनुदान या धन प्राप्त नहीं होता है. धन प्राप्ति के लिए उसे अपने संसाधनों पर निर्भर रहना होता है. पीसीबी की मुख्य कमाई अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) से उनके हिस्से, पाकिस्तान सुपर लीग (PSL) के टाइटल प्रायोजन की बिक्री, लीग, घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मैचों के प्रसारण अधिकारों से होती है.
आईसीसी ने जब 2024-2027 चक्र के दौरान होने वाली कमाई 600 मिलियन यूएस डॉलर पूल के राजस्व हिस्सेदारी प्रतिशत की घोषणा की तो उसमें भी पीसीबी को कम हिस्सा मिला. भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) को अपेक्षित रूप से सबसे बड़ा हिस्सा मिला. बीसीसीआई के खाते में 230 मिलियन यूएस डॉलर आए, जो आईसीसी के कुल राजस्व का 38.5 प्रतिशत है. दूसरी ओर पीसीबी को कुल राशि का 5.75 प्रतिशत मिला, जिससे उसे 34.51 मिलियन यूएस डॉलर की कमाई हुई.
इंडियन प्रीमियर लीग में पीएसएल की तुलना में काफी ज्यादा पुरस्कार राशि प्रदान करता है, जो दोनों लीगों के बीच वित्तीय पैमाने और वैश्विक दर्शकों की संख्या में भारी अंतर को दर्शाता है. पीएसएल 2023 जीतने के लिए लाहौर कलंदर्स को लगभग 3.40 करोड़ पाकिस्तानी रुपये के नकद पुरस्कार से सम्मानित किया गया. जबकि आईपीएल में विजेता टीम को 20 करोड़ रुपये का पुरस्कार मिलता है. पिछले सीजन में चेन्नई सुपर किंग्स ने आईपीएल खिताब जीता था.
पीसीबी की कुल संपत्ति 55 मिलियन डॉलर है और वो एशिया का दूसरा सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड हैं. लेकिन अगर भारत से तुलना की जाए तो पीसीबी उसके सामने कहीं भी नहीं ठहरता. बीसीसीआई के प्रभुत्व में आश्चर्यचकित करने वाली बात यह है कि वो बाकी देशों से मीलों आगे हैं. बीसीसीआई की कुल संपत्ति 2.25 बिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 18,700 करोड़ से अधिक) होने का अनुमान है. क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया (सीए) जो 79 मिलियन अमेरिकी डॉलर (660 करोड़ से अधिक) की कुल संपत्ति के साथ दूसरे स्थान पर है. यही वजह है कि बीसीसीआई अपने खिलाड़ियों पर पैसों की बारिश करता रहता है.
जहां आईपीएल दुनिया भर के खिलाड़ियों के लिए कमाई का बड़ा जरिया बना हुआ है, वहीं पाकिस्तानी खिलाड़ियों के लिए यह दरवाजा भी बंद है. इस लीग ने अन्य देशों के ढेरों खिलाड़ियों को करोड़पति बना दिया. लेकिन पाकिस्तानी खिलाड़ियों को साल 2008 में मुंबई में हुए आतंकी हमले के बाद इसमें भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया गया था. यह भी एक वजह है कि पाकिस्तानी खिलाड़ियों का वित्तीय सिरदर्द और बढ़ गया है. 2008 में खेले गए टूर्नामेंट के पहले एडिशन में पाकिस्तान के 11 खिलाड़ियों ने भाग लिया था.