देवरिया. बदलते दौर के साथ हर चीजों में परिवर्तन हो रहा है और उस बदलाव से लोगों के जीवन पर भी असर हो रहा है. ग्रामीण क्षेत्रों के लिए मछली पालन सबसे ज्यादा तेजी से उभरता हुआ व्यवसाय बन गया है. नई तकनीकों के माध्यम से किसान इस व्यवसाय से बढ़िया मुनाफा भी कमा रहे हैं. इसी बदलाव के बीच बायोफ्लॉक तकनीक से देवरिया में बड़ा बदलाव हो रहा है. इस कृत्रिम ढंग से हो रहे मछली पालन में ग्रामीण क्षेत्र के कृषक बड़े पैमाने पर मछली का उत्पादन कर रहे हैं.
बता दें बायोफ्लॉक तकनीक में 0.01 एयर जमीन पर 1 मीटर गहरा कृत्रिम तालाब खोदा जाता है और उस तालाब की सतह पर तारपोलिन बिछाकर तेज गति से बढ़ने वाली मछलियों की प्रजातियों को डाला जाता है. जिनकी 1 वर्ष में दो से तीन बार पैदावार हो जाती है. इस विधि से कम खर्च, कम चारा, कम जगह और कम पानी में मछली का ज्यादा उत्पादन हो रहा है.
इस तकनीक के माध्यम से देवरिया में ऐसे कई किसान है जो अपनी जमीन के एक छोटे से भाग से लगभग 8 लाख सलाना की कमाई कर रहे हैं. इस तकनीक में अब सरकार द्वारा भी लगभग 50% का अनुदान भी दिया जा रहा है. प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना किसानों के सपनों को नई उड़ान दे रहा है जो इस बायोफ्लॉक पॉन्ड बनाने में लगभग 14 लाख रुपए की लागत आती है. वहीं इस योजना से किसानों को 6 से 8 लाख रुपए तक का अनुदान मिल जा रहा है. देवरिया में हो रहे मछली पालन के इस नई विधि से देवरिया आने वाले समय में मछली उत्पादन के लिए भी जाना जाएगा.
देवरिया में बायोफ्लॉक मत्स्य पालन की इस नई विधि से किसानों को होने वाली समस्याओं को देखकर जिलाधिकारी अखण्ड प्रताप सिंह ने भी मदद करने को कहा और वह 10 हजार किसानों का लक्ष्य बनाया है ताकि यह सभी किसान मिलकर देवरिया को भी मछली पालन के क्षेत्र में आगे बढ़ाये.