नई दिल्ली। पश्चिम यूपी के मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले पूर्व विधायक इमरान मसूद ने एक बार फिर से दल-बदल किया. सपा की ‘साइकिल’ से उतरकर बसपा की ‘हाथी’ पर सवार हो गए हैं. मसूद ने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को अलविदा कहकर सपा का दामन थाम लिया था. ऐसे ही आजमगढ़ की मुबारकपुर सीट से विधायक रहे शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली भी बसपा छोड़कर सपा में गए थे. अखिलेश यादव ने इन दोनों ही मुस्लिम नेताओं को साइकिल पर बैठाया, लेकिन टिकट ना देकर विधानसभा की सवारी नहीं कराई. ऐसे में गुड्डू जमाली हों या फिर इमरान मसूद दोनों के लिए बसपा का हाथी साथी बन रहा है.
इमरान मसूद ने बुधवार को बसपा प्रमुख मायावती से लखनऊ में मिलकर पार्टी की सदस्यता ग्राहण कर ली. इस दौरान उन्होंने अखिलेश यादव पर निशाना साधा और दलित-मुस्लिम एकता बनाने की बात कही. इमरान मसूद ने कहा कि मुसलमानों ने 2022 के चुनाव में अपना सब कुछ अखिलेश के साथ दांव पर लगा कर देख लिया कि वह बीजेपी को हरा नहीं सकते. जब मुसलमानों ने सपा को मजबूत किया है, चुनाव में बीजेपी को ही फायदा हुआ. जब-जब मायावती को समर्थन दिया, तब-तब बीजेपी कमजोर हुई है. ऐसे में मायावती ने उन्हें बसपा के भाईचारा कमेटी का पश्चिमी उत्तर प्रदेश का संयोजक बना दिया है.
इमरान मसूद के सामने अपना वजूद साबित करने की चुनौती है. सहारनपुर में वह लगातार एक के बाद एक चुनाव हारते जा रहे हैं. 2006 में सहारनपुर नगर पालिका के चेयरमैन बने और एक साल बाद ही 2007 में विधायक. इसके बाद इमरान मसूद कोई भी चुनाव नहीं जीत पाए, ना दोबारा विधायक बने और ना ही कभी सांसद. हालांकि, वह हर बार चुनाव लड़ते हैं.
इमरान मसूद कांग्रेस में रहते हुए गांधी परिवार का करीबी माने जाते थे और पश्चिमी यूपी में उनकी मर्जी से फैसला होता था. इसके बावजूद वह 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस छोड़कर सपा में शामिल हो गए. अखिलेश यादव ने मसूद को पार्टी में तो लिया, लेकिन उन्हें किसी सीट से टिकट नहीं दिया और न ही एमएलसी बनाया. इतना ही नहीं, इमरान मसूद के साथ सहारनपुर देहात सीट से विधायक रहे मसूद अख्तर भी सपा में आए, लेकिन उन्हें भी टिकट नहीं दिया था.
आजमगढ़़ लोकसभा उपचुनाव के बाद व अब स्थानीय निकाय चुनाव से पहले श्री मसूद व अन्य लोगों का बीएसपी में शामिल होना यूपी की राजनीति के लिए इस मायने में शुभ संकेत है कि मुस्लिम समाज को भी यकीन है कि भाजपा की द्वेषपूर्ण व क्रूर राजनीति से मुक्ति के लिए सपा नहीं बल्कि बीएसपी ही जरूरी।
पूर्व सांसद काजी रशीद मसूद के निधन के बाद सहारनपुर में मुस्लिमों पर इमरान मसूद की पकड़ कमजोर हुई है जबकि दूसरे मुस्लिम नेता काफी मजबूती से खड़े हुए हैं. ऐसे में अखिलेश यादव ने सहारनपुर जिले की सियासी नब्ज को समझते हुए इमरान मसूद और उनके साथ आए हुए लोगों को चुनाव लड़ाने के बजाय उनकी जगह पर अपनी पार्टी के वफादार नेताओं को लड़ाया, जो जीतकर विधायक बने. इतना ही नहीं सपा ने इमरान मसूद के बजाय शाहनवाज खान को विधान परिषद भेजा.
इमरान मसूद के पास किसी तरह का सियासी विकल्प नहीं बचा था, जिसके बाद चलते उन्होंने सपा को अलविदा कहा. सहारनपुर नगर निगम में मेयर का चुनाव लड़ने के मद्देनजर इमरान मसूद ने बसपा का दामन थामा है. 2017 के नगर निगम चुनाव में हाजी फजलुर्रहमान 2000 वोटों से मेयर का चुनाव हार गए थे, लेकिन 2019 में सांसद बन गए. ऐसे में इमरान मसूद सांसद और विधायकी के बजाय मेयर का चुनाव लड़ने के लिए हाथी पर सवार हो गए हैं, लेकिन उनके लिए ये सियासी राह आसान नहीं है.
सहारनपुर में मुस्लिम सियासत के चार बड़े चेहरे हैं, जिनमें पहला सांसद फजलुर्रहमान, दूसरा सपा विधायक उमर खान, तीसरा नाम आशू मलिक और चौथा नाम एमएलसी शाहनवाज खान हैं. इन्हीं नेताओं के इर्द-गिर्द सहारनपुर की सियासत सिमटी हुई है. इसी वजह से इमरान मसूद अपना सियासी वजूद बचाए रखने के लिए साइकिल से उतरकर हाथी पर सवार हो गए हैं. ऐसे में सपा सहारनपुर नगर निगम चुनाव में मुस्लिम समुदाय के ओबीसी में से मलिक जाति से कैंडिडेट उतारने की तैयारी में है.
इमरान मसूद से पहले मुबारकपुर से विधायक रहे शाह आलम गुड्डू जमाली भी 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा छोड़कर सपा में गए थे, लेकिन अखिलेश यादव ने उन्हें टिकट नहीं दिया था. इसके बाद वो ओवैसी की पार्टी से चुनाव लड़े, लेकिन सपा के आगे जीत नहीं सके. ऐसे में आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में बसपा में वापसी कर गए, जिसके बाद मायावती ने उपचुनाव लड़ाया था. इस चुनाव में गुड्डू जमाली जीत तो नहीं सके, लेकिन सपा को हराने में कामयाब रहे.
आजमगढ़ उपचुनाव के बाद से मायावती दलित-मुस्लिम समीकरण बनाने में जुटी है, लेकिन बसपा पर लगे बीजेपी के बी टीम के आरोपों के चलते मुस्लिम साथ नहीं आ रहे हैं. मुसलमान यूपी में अभी भी सपा के साथ खड़ा दिख रहा है, जिनको साथ लेने के लिए मायावती हरसंभव कोशिश कर रही है, लेकिन विश्वास हासिल नहीं कर पा रही है. इस कड़ी में शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली के बाद इमरान मसूद की बसपा में एंट्री हुई है, लेकिन दोनों ही नेताओं के लिए मुस्लिम-दलित एकता से ज्यादा अपने सियासी वजूद को बचाए रखने की चुनौती है.