नई दिल्ली। प्रदेश में किसानों को सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली नहीं मिलेगी। बुधवार को विधानसभा में सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली देने के सवाल के जवाब में ऊर्जा मंत्री अरविंद कुमार शर्मा ने कहा कि सरकार किसानों को सिंचाई के लिए 88 प्रतिशत सब्सिडी पर बिजली दे रही है। विपक्ष के सदस्यों के स्थिति स्पष्ट करने की मांग पर विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि ऊर्जा मंत्री कह चुके हैं कि मुफ्त बिजली नहीं दे सकते है। ऊर्जा मंत्री ने भी सवाल के लिखित जवाब में कहा है कि मुफ्त बिजली देने पर विचार करने का प्रश्न ही नहीं उठता है।

विधानसभा में रालोद के सदस्य अजय कुमार और सपा के जियाउर्रहमान ने किसानों की फसल लागत कम करने और आय में वृद्धि के लिए नककूपों पर मुफ्त बिजली देने का मुद्दा उठाया। अजय कुमार ने कहा कि सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने का वादा किया था। लेकिन डीजल, यूरिया, बीज और खाद के दाम बढ़ने से किसान बदहाल है। ऐसे में किसानों को मुफ्त बिजली देनी चाहिए।
ऊर्जा मंत्री ने कहा कि किसानों की फसल उत्पादन लागत को कम करने के लिए सरकार बिजली की प्रचलित दरों और टैरिफ 750 रुपये प्रति हार्सपावर प्रतिमाह के मात्र 85 रुपये प्रति हार्सपावर प्रतिमाह ले रही है। उन्होंने कहा कि किसानों को कृषि कनेक्शन पर 88.19 प्रतिशत की सब्सिडी से बिजली आपूर्ति की जा रही है। उन्होंने कहा कि वर्तमान वित्तीय वर्ष में निजी नलकूपों के लिए 7,097 करोड़ रुपये का प्रावधान है। उन्होंने बताया कि अप्रैल से 18 सिंतबर तक 23169 नलकूप पर विद्युत कनेक्शन दिए गए हैं। 7.5 हार्सपावर तक के नलकूप पर सोलर पंप लगाने पर 60 फीसदी तक सब्सिडी दी जा रही है।

नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि ऊर्जा मंत्री को स्पष्ट करना चाहिए कि क्या वे भाजपा के लोक कल्याण संकल्प पत्र की घोषणा के मुताबिक किसानों को सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली दे पाएंगे या नहीं। इसके जवाब में भी ऊर्जा मंत्री ने कहा कि 88 फीसदी से अधिक सब्सिडी पर बिजली दे रहे है। सपा के सदस्यों ने इसको लेकर हंगामा शुरू किया तो विधानसभा अध्यक्ष ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि ऊर्जा मंत्री बता चुके हैं कि मुफ्त बिजली नहीं दे पाएंगे।

सपा विधायक लालजी वर्मा ने कहा कि सपा सरकार के समय 2017 से पहले किसानों से मात्र 55 रुपये प्रति हार्सपावर प्रति माह की दर से विद्युत बिल वसूला जा रहा था। भाजपा सरकार ने इसे बढ़ाकर 85 रुपये कर दिया है।
समाजवादी पार्टी ने आरोप लगाया है कि भाजपा सरकार ने राजनीतिक लाभ के लिए नई नगर पंचायतों का गठन, नगर पालिका परिषद और नगर निगमों का सीमा विस्तार किया है। सपा का आरोप है कि नगर निकायों के गठन और सीमा विस्तार में ग्राम प्रधानों और स्थानीय जनप्रतिनिधियों की आपत्तियों का निस्तारण नहीं किया गया लिहाजा सैंकड़ों ग्राम प्रधानों के भविष्य पर तलवार लटक गई है।

विधानसभा में बुधवार को प्रश्नकाल में सपा के सदस्य महबूब अली ने नगरीय निकायों के सीमा विस्तार का मुद्दा उठाया। सवाल के जवाब में नगर विकास मंत्री अरविंद शर्मा ने कहा कि निकायों का गठन और सीमा विस्तार नियमानुसार किया गया है। उन्होंने दावा किया कि सीमा विस्तार से पहले आपत्तियां प्राप्त कर उनका निस्तारण भी किया गया है।

सपा विधायक अवधेश प्रसाद ने आरोप लगाया कि आपत्तियों का निस्तारण नहीं किया गया, महज औपचारिकता पूरी की गई है। उन्होंने कहा कि सैंकड़ों ग्राम पंचायतों को नगर निकाय सीमा में शामिल किया गया है जबकि वहां ग्राम प्रधान एक साल पहले ही चुने गए हैं। ऐसे में उनके राजनीतिक भविष्य पर तलवार लटक गई है। सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि ग्राम प्रधानों का कार्यकाल कब तक होगा।
संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने साफ किया है कि सरकार विधायकों को किसी भी दफ्तर के निरीक्षण का अधिकार नहीं दे सकती है। यदि विधायकों को निरीक्षण का अधिकार दिया गया तो इससे दफ्तरों में कामकाज पर असर पड़ेगा।

विधानसभा में बुधवार को सपा विधायक अभय सिंह ने जन समस्याओं को लेकर विधायकों की ओर से सरकारी संस्थाओं, कार्यालयों, निगमों में निरीक्षण के अधिकार का मुद्दा उठाया। संसदीय कार्य मंत्री ने कहा कि आरटीआई को लेकर 1970 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर हुई थी। उसके परिणाम में 2005 में सूचना का अधिकार बना है।

उन्होंने कहा कि आरटीआई के तहत दस रुपये शुल्क देकर कोई भी जानकारी प्राप्त कर सकते है। उन्होंने कहा कि व्यवहारिक रूप से उचित नहीं है कि विधायको को निरीक्षण का अधिकार दिया जाए। उन्होंने कहा कि यदि सभी विधायक निरीक्षण करेंगे तो कर्मचारी काम कैसे कर पाएंगे?

उन्होंने कहा कि जनप्रतिनिधियों को सुझाव देने पर आपत्ति नहीं है, विधायक की शिकायत का भी समाधान किया जाता और उन्हें मांगी गई जानकारी भी दी जाती है।
प्रदेश सरकार ने विधानसभा में एक बार फिर साफ किया है कि 2004 के बाद नियुक्त कर्मचारियों और शिक्षकों को पुरानी पेंशन देने का सरकार का कोई विचार नहीं है ना ही ऐसा कोई प्रस्ताव सरकार के पास है। वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने कहा कि पुरानी पेंशन की तुलना में नई पेंशन स्कीम कर्मचारियों और शिक्षकों के लिए ज्यादा फायदेमंद है।

विधानसभा में बुधवार को सपा विधायक रविदास मेहरोत्रा, महेंद्रनाथ यादव और अवधेश प्रसाद ने 2004 के बाद नियुक्त कर्मचारियों और शिक्षकों को पुरानी पेंशन देने का मुद्दा उठाया। रविदास मेहरोत्रा ने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी सांसद रहते हुए और विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने पिछली सरकार मे मंत्री रहते हुए पुरानी पेंशन लागू करने का समर्थन किया था।

वित्त मंत्री ने कहा कि एक अप्रैल 2005 के बाद प्रदेश सरकार के विभागों में नियुक्त कार्मिकों और स्कूलों में नियुक्त शिक्षकों के लिए राष्ट्रीय पेंशन नीति लागू की गई है। उन्होंने कहा कि अगस्त 2022 तक 5,39,607 कार्मिकों, सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं और स्वायत्तशासी संस्थाओं के 3.05,333 कर्मचारियों का पंजीकरण किया गया है। उन्होंने बताया कि अगस्त 2022 तक कर्मचारियों के परमानेंट रिटायरमेंट अकाउंट नंबर (प्रान) खाते में 25,851 करोड़ रुपये और सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं और स्वायत्त शासी संस्थाओं के कर्मचारियों के प्रान खाते में 11,771 करोड़ रुपये जमा कराए गए है।

वित्त मंत्री ने कहा कि कर्मचारियों ने नई पेंशन प्रणाली में जमा राशि मात्र 8 प्रतिशत स्थायी रिटर्न की मांग की थी जबकि सरकार ने अब तक 9.77 प्रतिशत रिटर्न दिया है। उन्होंने बताया कि जमा राशि का 85 फीसदी सरकारी योजनाओं और 15 फीसदी राशि सरकार के फंड मैनेजर संस्थाओं के पास जमा रहती है।

सुरेश खन्ना ने कहा कि सपा के संरक्षक मुलायम सिंह यादव के समर्थन से 2004 से मई 2014 तक केंद्र में यूपीए सरकार चली थी। उस समय मुलायम सिंह यादव ने राष्ट्रीय पेंशन योजना का समर्थन किया था।

विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने कहा कि वह जांच कराएंगे कि उनकी ओर से पुरानी पेंशन लागू करने का पत्र कैसे लिखा गया।
वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने दावा किया कि प्रदेश की आर्थिक स्थिति लगातार मजबूत हो रही है। उन्होंने कहा कि सरकार ने प्रदेश के विकास के लिए जो भी कर्ज लिया है उसे ब्याज सहित समय पर अदा भी किया है इससे साफ होता है कि प्रदेश की आर्थिक क्षमता कितनी अच्छी है।

विधानसभा में बुधवार को सपा विधायक मोहम्मद फइम फरफान ने राजकोषीय ऋण का सवाल उठाते हुए सरकार से जवाब मांगा। वित्त मंत्री ने कहा कि 2017-18 में राजकोषीय ऋण 4,67,842.18 करोड़ रुपये था। 2021-22 में 611218.42 करोड़ रुपये का ऋण अनुमान लिया गया है। उन्होंने कहा कि ऋण को प्रदेश की अर्थव्यवस्था में यह नहीं कहा जा सकता है कि प्रति व्यक्ति पर कितना कर्ज है। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार का जीएसडीपी औसत बहुत अच्छा है। सरकार ने कभी आरबीआई का राजकोषीय घाटे के औसत को पार नहीं किया है। उन्होंने कहा कि सरकार ने 2017-18 से लेकर 2021-22 तक लगातार कर्ज को ब्याज सहित अदा किया है।

गन्ना किसानों के बकाया गन्ना मूल्य और किसानों को गन्ना मूल्य का समय पर भुगतान नहीं करने वाली चीनी मिलों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने के मुद्दे पर विपक्ष ने गन्ना विकास मंत्री चौधरी लक्ष्मीनारायण को घेरा। विपक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार वादे के मुताबिक गन्ना किसानों को 14 दिन में गन्ना मूल्य का भुगतान नहीं करा सकी है ना ही ब्याज भी नहीं दिला सकी है।

विधानसभा में बुधवार को सपा विधायक पंकज कुमार मलिक और रालोद विधायक प्रसन्न कुमार ने चीनी मिलों में गन्ना किसानों को समय पर भुगतान नहीं होने केसवाल पर जवाब मांगा। पंकज मलिक ने आरोप लगाया कि मोदी मिल पर 571 करोड़ रुपये बकाया है। शामली और थानाभवन चीनी मिल पर भी करोड़ों रुपये का भुगतान बकाया है। उन्होंने कहा कि सरकार पूंजीपतियों के साथ खड़ी है। किसानों पर यदि बकाया होता है उनके घर पर पुलिस भेजी जाती है वहीं चीनी मिलों का बचाव किया जाता है।

नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि सपा सरकार ने किसानों को गन्ना मूल्य भुगतान कराने के लिए बजट भी दिया था। उन्होंने कहा कि सरकार दस खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था वाला प्रदेश बनाने की बात कर रही है लेकिन किसानों को गन्ना मूल्य का भुगतान नहीं हो रहा है। सपा विधायक लालजी वर्मा कहा कि सरकार यह भी बताए कि पांच साल में कितना गन्ना मूल्य बढ़ाया गया। उन्होंने कहा कि गन्ने की पैदावार बढ़ने के कारण भुगतान अधिक हुआ है या सरकार ने गन्ना मूल्य बढ़ाकर भुगतान किया है।

गन्ना विकास मंत्री चौधरी लक्ष्मीनारायण ने बताया कि 2018-19 से 2020-21 तक चीनी मिलों पर किसी किसान का गन्ना मूल्य बकाया नहीं है। चीनी मिलों पर पैराई सत्र का 440.67 करोड़ रुपये बकाया है। 2021-22 में निजी क्षेत्र की चीनी मिलों पर करीब 3964.45 करोड़ रुपये बकाया है। उन्होंने कहा कि योगी सरकार ने पांच साल में 178924 करोड़ रुपये का गन्ना मूल्य भुगतान कराया है। जबकि बसपा और सपा के दस वर्ष के शासन में 143346 करोड़ रुपये गन्ना मूल्य भुगतान हुआ था। उन्होंने कहा कि समय पर भुगतान नहीं करने वाली चीनी मिलों के खिलाफ सरकार कार्रवाई करेगी। चौधरी ने दावा किया कि यूपी से अधिक गन्ना मूल्य किसी प्रदेश में नहीं है।