लखनऊ। लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर अब एजेंडा तय करने की तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार की ओर से ओबीसी वोट बैंक को साधने के लिए योजना तैयार कर ली गई है। ओबीसी के सभी सेक्शन को सरकार की योजनाओं का कितना लाभ मिल रहा है? इस सवाल का जवाब तैयार कराया जा रहा है। यूपी सरकार ने प्रदेश में नौकरियों में ओबीसी के प्रतिनिधित्व का आकलन करने के लिए एक एक्सरसाइज शुरू किया है। इसके तहत देखा जा रहा है कि अन्य पिछड़ा वर्ग के तहत आने वाली जातियों को एक समान सरकारी सुविधाओं का लाभ मिल पा रहा है या नहीं। अगर यह लाभ समान रूप से नहीं मिल पा रहा है तो फिर कौन से वर्ग विकास योजनाओं से अछूते रह गए हैं।

यूपी सरकार की इस कवायद का बड़ा राजनीतिक मतलब निकाला जा रहा है। दरअसल, सरकार की ओर से लोक उद्यम ब्यूरो को सरकारी सेवाओं में कार्यरत ओबीसी कैटेगरी के कर्मियों का पूरा डेटा जुटाने के निर्देश दिए गए हैं। इस कवायद के पीछे पिछड़ा वर्ग आयोग की ओर से अनुरोध का हवाला दिया गया है। पिछड़ा वर्ग आयोग की ओर से इस संबंध में सरकार से रिपोर्ट मांगी गई है। इस जांच का उद्देश्य प्रदेश में ओबीसी के दायरे में आने वाली 79 उप जातियों को सरकारी नौकरियों में कितनी भागीदारी मिली हुई है। दरअसल, ओबीसी वर्ग को सरकारी सेवाओं में 27 फीसदी आरक्षण का लाभ मिलता है। दावा किया जाता है कि ओबीसी वर्ग को मिलने वाले लाभ का बड़ा हिस्सा कुछ ओबीसी जातियों तक ही सीमित है।

ओबीसी वर्ग चुनावों में एक बड़ा फैक्टर बनकर उभरे हैं। वर्ष 2014 के बाद से भारतीय जनता पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सहारे इस वर्ग को साधने में सफलता हासिल की है। ओबीसी वर्ग को पार्टी से जोड़कर रखने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। यूपी चुनाव 2022 में भी ओबीसी वोट बैंक का बड़ा समर्थन भाजपा को मिलता दिखा है। वहीं, समाजवादी पार्टी के पक्ष में यादव और मुस्लिम वोट बैंक एकजुट रहा। भाजपा, सपा के खिलाफ एक जाति वर्ग को समर्थन देने का आरोप लगाती रही है। ऐसे में योगी सरकार की कवायद को लोकसभा चुनाव 2024 से भी जोड़कर देखा जा रहा है। ओबीसी वोट बैंक के एक वर्ग को छांटकर अन्य सभी को अपने पाले में करने की कवायद के रूप में इसे देखा जा रहा है।

यूपी सरकार की ओर से राज्य के लोक उद्यम ब्यूरो को पिछड़ा वर्ग आयोग के अनुरोध पर सभी विभागों में ‘ग्रुप ए’ से ‘ग्रुप डी’ श्रेणी के पदों पर कार्यरत कर्मियों के संबंध में डेटा प्रस्तुत करने को कहा है। इसके लिए एक परफॉर्मा जारी किया गया है। इसमें कई कॉलम दिए गए हैं, जिन्हें भरा जाना है। इसके तहत संबंधित विभाग में ओबीसी श्रेणी की स्वीकृत संख्या के तहत भरे गए पद, कुल भरे हुए पदों के विरुद्ध भरे गए पदों का प्रतिशत और भरे गए पदों में 79 ओबीसी उप-जातियों का प्रतिनिधित्व शामिल हैं।

राज्य सरकार ने जनवरी 2010 से मार्च 2020 के बीच हुई ओबीसी नियुक्तियों का ब्योरा मांगा है। तिथियों पर अगर गौर करेंगे तो साफ हो जाएगा कि सपा और बसपा शासनकाल में जिन नियुक्तियों को शुरू किया गया या पूरा कराया गया, उनमें ओबीसी के किस वर्ग को कितना लाभ मिला है।

यूपी सरकार में पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) नरेंद्र कश्यप कश्यप का कहना है कि योगी सरकार विसंगतियों को दूर करने का प्रयास कर रही है। आंकड़ों के आधार पर यह पाया जाता है कि कुछ उप जातियों को आरक्षण का लाभ अब तक नहीं मिल पाया है। वे इन लाभों से वंचित हैं। सरकार इस प्रकार की विसंगतियों को दूर करने के लिए उपयुक्त योजनाएं बनाएगी। नीतिगत फैसले भी लिए जा सकते हैं। मंत्री का कहना है कि ओबीसी श्रेणी की विभिन्न जातियों के के प्रतिनिधियों की सरकार से अपील के बाद यह मामला उठाया गया है।

उत्तर प्रदेश में ओबीसी सबसे बड़े वोट बैंक के रूप में माने जाते हैं। प्रदेश की आबादी में यह वर्ग करीब 45 फीसदी की भागीदारी रखता है। हालांकि, इस वर्ग के ताकतवर जाति समूह यादव, पटेल और जाटों पर आरोप लगता है कि वे राज्य सरकार की नौकरियों और एडमिशन के मामले में बड़े हिस्से पर अपना अधिकार जमा लेते हैं। अन्य गैर ओबीसी जातियों को उस प्रकार का लाभ नहीं मिल पाता है। भाजपा ने पिछले सालों में गैर यादव ओबीसी और अति पिछड़ा वर्ग को अपने पक्ष में लाने में सफलता हासिल की है। योगी सरकार इस कदम को आम चुनाव 2024 से पहले अपने वोट बैंक को साधने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।

यूपी में वर्ष 2001 में ओबीसी को लेकर एक बड़ा फैसला लिया गया था। तब भी भाजपा की सरकार थी। राजनाथ सिंह सीएम थे। उन्होंने हुकुम सिंह की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की थी। कमेटी ने ओबीसी वर्ग को दो भागों में बांटने की सिफारिश की थी। इसके तहत यादवों को ओबीसी कोटे के तहत मिलने वाले आरक्षण लाभ को 5 फीसदी पर सीमित करने का निर्णय लिया गया था।

भाजपा ने वर्षों से गैर-यादव ओबीसी और अति पिछड़ा वर्ग को सफलतापूर्वक अपने पक्ष में लामबंद किया है और वर्तमान कदम 2024 के आम चुनावों से पहले किया जा सकता है। मोस्ट बैकवर्ड क्लास यानी एमबीसी को 14 फीसदी आरक्षण का लाभ देने का निर्णय लिया गया था। हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी। अब एक बार फिर योगी सरकार इसी प्रकार की कवायद करती दिख रही है।

यूपी की 80 लोकसभा सीटों पर भारतीय जनता पार्टी की नजर है। अगर भाजपा गैर यादव ओबीसी वोट बैंक को अपने पाले में जोड़कर रखने में कामयाब होती है तो जीत का गणित तैयार करने में अधिक मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी। पिछले दो लोकसभा चुनाव में भाजपा के वोट में लगातार वृद्धि हुई है। भाजपा अब 50 फीसदी वोट शेयर के आंकड़े को पार करने की कोशिश करती दिख रही है। सवर्ण+ओबीसी+दलित वोट बैंक तैयार करने की तैयारी है। इसमें योगी सरकार का ओबीसी सर्वे का फॉर्मूला कारगर साबित हो सकता है। राजनीतिक रूप से यह काफी महत्पूर्ण है और आने वाले समय में इस पर राजनीति भी गरमानी तय है।