स्कूल या कॉलेज में अक्सर बच्चे बुलिंग का शिकार हो जाते हैं। यह बुलिंग शारीरिक, मौखिक या साइबर हो सकती है। ऐसे बच्चे अक्सर चुपचाप सहते हैं। अक्सर स्कूल, कॉलेज या फिर कोचिंग सेंटर में बच्चों के साथ बुलिंग की घटनाएं सामने आती हैं। बच्चे एक-दूसरे को छेड़ते हैं, छोटी उम्र में दादागिरी दिखाते हैं, इमोशनली एक-दूसरे को टॉर्चर करते हैं। पहले बुलिंग मस्ती-मजाक, धक्का-मुक्की, छेड़छाड़ और टांग खिंचाई तक ही सीमित थी, लेकिन अब यह इमोशनल, सेक्सुअल और यहां तक कि साइबर बुलिंग बहुत ज्यादा बढ़ गई है। जो बच्चे दूसरे की बुलिंग करते हैं, वे खुद एक कमजोर मानसिकता का शिकार रह चुके होते हैं, या फिर परिवार में इसी तरह के माहौल को देखकर बड़े हुए होते हैं, इसलिए वे एक पीड़ित ढूंढते हैं और उस पर भड़ास निकालते हैं। कई बच्चों का यह स्वभाव होता है कि वे दूसरों को नियंत्रित करें या उन पर अपना रौब दिखाएं, ताकि वे उन्हें शक्तिशाली और बड़ा समझें। ऐसे बच्चों को लगता है कि उनका व्यवहार आम है, वे तो बस मस्ती कर रहे हैं, लेकिन उनकी मस्ती दूसरों के लिए बहुत गंभीर साबित हो जाती है और उन्हें अपनी गलती का अहसास तक नहीं होता है।

कई बच्चे मानसिक रूप से कमजोर होते हैं। उनकी कमजोरी का फायदा उठाकर दूसरे बच्चे उनके साथ छेड़छाड़ करते हैं। कई बार जेंडर, रंग, जात-पात आदि कारणों से बच्चों की बुलिंग होती है। इसके अलावा जिन बच्चों को घर में ज्यादा प्यार या अटेंशन नहीं मिलती, या फिर परिवार में झगड़े होते रहते हैं, वे अंदर से अकेला महसूस करते हैं और चिड़चिड़े हो जाते हैं। ऐसे बच्चे बुलिंग ज्यादा करते हैं। कुछ बच्चे घर में भाई-बहनों के साथ भी बुलिंग करते हैं, इसलिए स्कूल में भी उनका ऐसा ही व्यवहार होता है।

बच्चा कैसे बात करता है, उसके संवाद में कोई दिक्कत तो नहीं? वह डरा-डरा सा तो नहीं रहता है? परेशान होना या पीछे हटना, खासकर फोन, कंप्यूटर या डिवाइस को देखने के बाद वह सहम जाने लगे।

अगर आपके बच्चे के साथ फिजिकल बुलिंग हो रही है तो आप उसके साथ खड़ी हों, उसके शारीरिक परिवर्तन पर ध्यान दें। उसकी दोस्त बनें और उसके आत्मविश्वास को बढ़ाने का प्रयास करें। अतीत से बाहर निकालने के लिए आप उसे बिहेवियर थेरेपी दे सकती हैं। कई बार बच्चे इस तरह की बातें घर या शिक्षकों को नहीं बता पाते हैं। ऐसे में माता-पिता, बच्चे की एक्टिविटीज में शामिल होकर उसे समझने की कोशिश करें, उसकी बात सुनें और उससे पूछें कि वह हालात से कैसे निपटना चाहता है।

जरूरत पड़े तो काउंसलर से बात करें और बच्चे के स्कूल भी जाएं। जब बच्चा घर पर हो, तो ऐसी गतिविधियां करें, जिन में उसे मजा आता हो। बच्चे द्वारा उपयोग किए जाने वाले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर रिसर्च करें और समझें कि साइबर ब्लॉकिंग से निपटने के लिए वह ब्लॉक और रिपोर्ट टूल का उपयोग कैसे कर सकता है। बच्चों को मेडिटेशन, संगीत और काउंसलिंग बहुत मदद करती है।

बाल मनोवैज्ञानिक डॉ. अंजली गुप्ता कहती हैं, बुलिंग ज्यादातर क्लास 6 के बाद होती है, क्योंकि बच्चे पांचवीं के बाद अपना स्कूल बदलते हैं। यह उम्र 9-12 साल की होती है। जब कोई बच्चा दूसरे शहर से आता है या एक से दूसरे स्कूल में दाखिला लेता है तो उस वक्त बुलिंग का ज्यादा माहौल बनता है।

कई बार बड़े भी बच्चों की बुलिंग करते हैं, जो उन पर ऐसा गहरा असर छोड़ती है कि बड़े होने के बाद भी उनके स्वभाव में एक तरह का डर दिखाई देता है। वे अतीत से बाहर नहीं निकल पाते और उन्हें किसी पर विश्वास नहीं होता है। ऐसे बच्चे रिश्तों को लेकर बहुत उदास रहने लगते हैं और फिर तनाव की जिंदगी जीते हैं।