मुजफ्फरनगर। उत्तराखंड में हो रही लगातार वर्षा से तीर्थनगरी शुकतीर्थ में बाण गंगाजी का जल स्तर भी तेजी से बढ़ रहा है। गंगा घाट पर कई सीढ़ियां पानी में डूब गई हैं। महिला वस्त्र परिवर्तनशाला में भी पानी भर गया है। वहीं, गंगा खादर क्षेत्र में हजारों बीघा फसल भी जलमग्न हो गई है। खेतों में पशुओं को चराने वाले चरवाहे भी अपने पशुओं को सुरक्षित स्थानो पर लेकर जाने लगे है। बाढ़ की आशंका को देखते हुए गंगा खादर में खेतों पर रहने वाले लोग घरों को लौटने लगे हैं।
पिछले कई दिनों से उत्तराखंड के पहाड़ों पर हो रही लगातार वर्षा से पौराणिक तीर्थनगरी शुकतीर्थ में बह रही पतित पावनी बाण गंगा जी में भी जलस्तर बढ़ गया है। गंगा घाट पर कई सीढ़ियां पानी में डूब गई हैं। महिला वस्त्र परिवर्तनशाला में भी पानी भर गया है। वहीं, गंगा खादर क्षेत्र में हजारों बीघा फसल भी जलमग्न हो गई है। बाढ़ की आशंका को देखते हुए गंगा खादर में खेतों पर रहने वाले लोग घरों को लौटने लगे हैं।
क्षेत्र के गांव मजलिपुर तौफीर, महाराजनगर, सिताबपुरी, बिहारगढ़ के जंगल में भी पानी बढने लगा है। खेतों में पशुओं को चराने वाले चरवाहे भी अपने पशुओं को सुरक्षित स्थानो पर लेकर जाने लगे है। ग्रामीणों को बाढ़ का खतरा सताने लगा है। एसडीएम जानसठ जयेंद्र कुमार ने बताया कि उत्तराखंड से पानी छोड़ा गया है लेकिन खतरे की कोई बात नहीं है।
ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को पृथ्वी पर मां गंगा के अवतरण दिवस पर शुकतीर्थ में गंगा स्नान पर प्रतिबंध के बावजूद हजारों श्रद्धालुओं ने गंगा स्नान कर धर्मलाभ प्राप्त किया तथा गंगा मैया की पूजा कर हवन यज्ञ सम्पन्न कराया व बच्चों का मुंडन कराया। तीर्थनगरी शुकतीर्थ में प्रशासन की पाबंदी के बाद भी हजारों श्रद्धालु बारिश के बीच दर्शन के लिए मंदिरों में पहुंचे, लेकिन मंदिरों के मुख्य द्वार बंद होने से बाहर से प्रार्थना करते हुए घरों को लौट गए। लगातार होने वाली बारिश के कारण चारों ओर कीचड़ फैल जाने के कारण श्रद्धालुओं को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा।
प्राचीन तीर्थनगरी शुकतीर्थ में प्रतिवर्ष होने वाले ज्येष्ठ दशहरा स्नान पर्व पर प्रशासन की रोकथाम को धता बताते हुए भारी भीड ने गंगा मैया में आस्था की डुबकी लगाई। मां गंगा की पूजा अर्चना कर दूध, शहद व जल को तर्पण किया। प्रशासन द्वारा कोई व्यवस्था न होने के कारण श्रद्धालु अव्यवस्था से दो चार रहे। श्रद्धालुओं ने बच्चों का मुंडन कराया व हवन यज्ञ कर वस्तु आदि का दान किया तथा भंडारा कर भोजन प्रसाद का वितरण किया। श्रद्धालु गंगा स्नान के बाद दर्शन के लिए मंदिरों में पहुंचे, लेकिन मंदिरों के मुख्य द्वार बंद होने से बाहर से प्रार्थना करते हुए घरों को लौट गए।